केयू आईआईएचएस एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में भाषा परम्परा एवं आत्म गौरव विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 27 अप्रैल : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड एंड ऑनर्स स्टडीज के संस्कृत विभाग एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास हरियाणा के संयुक्त तत्वाधान में ’भाषा परंपरा एवं आत्म गौरव’ विषय पर शनिवार को विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य एवं दर्शनशास्त्र के विद्वान डॉ. ताकाहिरो काटो मुख्य वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए।

डॉ. काटो ने शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि जापान में भाषा के गौरव का बहुत महत्व है। वे अपनी संस्कृति ,भाषा एवं परंपरा से अत्यंत प्रेम करते हैं। संस्कृत के महत्व को एक रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि टोक्यो विश्वविद्यालय में वेद , व्याकरण, दर्शन आदि छः प्रोफेसर कार्यरत हैं और वहां पर स्नातक से पीएचडी तक का कार्य सफलतापूर्वक हो रहा है। इस अवसर पर डॉ. काटो ने संस्कृत के क्षेत्र में ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (ओसीआर) परियोजना की विस्तृत जानकारी भी विद्यार्थियों के साथ साझा की। उन्होंने कहा कि गूगल के इस क्षेत्र में हिंदी के लिए प्रयास को सफल हैं परंतु संस्कृत के क्षेत्र में अभी गूगल को पूरी सफलता नहीं मिली है। अगले एक-दो वर्षों के बाद ओसीआर की पूर्ण सफलता के बाद संस्कृत की किसी भी पांडुलिपि को प्रामाणिक रूप से तुरंत अंकित करना आसान हो जाएगा। उनके सुपुत्र महावृक्ष (डायजु) ने जापानी की भाषा में अपने विचार एवं भाव प्रकट करके सबको आनंदित कर दिया।

आईआईएचएस संस्थान की प्राचार्या प्रो. रीटा ने इस महत्वपूर्ण विचार संगोष्ठी का आयोजन के लिए संस्कृत विभाग को बधाई दी और मुख्य वक्ता को सत्यार्थ प्रकाश भेंट करके उनका अभिनंदन किया।

संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र ने कहा कि प्रोफेसर काटो के उद्बोधन से भारत एवं जापान के सदियों पुराने रिश्ते एवं सांस्कृतिक गौरव की जानकारी हमारे विद्यार्थियों को प्राप्त हुई। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि भविष्य में टोक्यो विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के साथ में पारस्परिक विचार विमर्श का संपर्क भी बढ़ना चाहिए जिसे डॉ. काटो ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस अवसर पर प्रो. पूनम, डॉ तेलू राम, राजीव, दीपक कुमार, मनदीप, गुंजन, दीपिका, वंदना, वंशिका सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं छात्र सम्मिलित हुए।

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