58 साल में हरियाणा से 14 चुनाव और सिर्फ छह महिलाएं संसद पहुंचीं सुबह से हुई शाम नहीं लगा फोन, जब हरियाणा की इस महिला सांसद ने उठाया था मामला अशोक कुमार कौशिक हरियाणा को बने 58 साल पूरे हो चुके हैं और 14 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। लेकिन प्रदेश से अब तक सिर्फ छह महिलाएं संसद भवन तक पहुंचने में कामयाब हुई हैं। हालांकि टिकट की उम्मीदवार काफी महिलाएं होती हैं, मगर जब टिकट देने की बारी आती है तो महिलाओं को दरकिनार कर दिया जाता है। महिला सशक्ति करण को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाली भाजपा ने इस बार केवल एक महिला प्रत्याशी को अंबाला आरक्षित से टिकट दिया है। दूसरी और 2019 की सिरसा आरक्षित से सांसद सुनीता दुग्गल का पत्ता काट कर उनके प्रतिद्वंद्वी रहे अशोक तंवर को भाजपा में शामिल कर टिकट दे दिया। 10 सीटों वैसे एक सीट पर महिला प्रत्याशी को टिकट देकर भाजपा के इस दावे की पोल पट्टी खुल गई है कि वह महिलाओं की कितनी हितैषी है। साल 2019 में 11 महिलाएं चुनावी मैदानी में खड़ी हुई थीं। इनमें से सिर्फ एक भाजपा के टिकट पर सुनीता दुग्गल जीत कर आईं। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में 32 महिलाएं मैदान में उतरी थीं, मगर इनमें से एक भी महिला उम्मीदवार को जीत नसीब नहीं हुई। 2009 में दो महिलाएं कुमारी सैलजा और श्रुति चौधरी कांग्रेस के टिकट पर संसद भवन में पहुंची थीं। हालांकि महिलाओं को जब भी मौका मिला है तो उन्होंने दिग्गजों को सियासी पिच पर बोल्ड किया है। हरियाणा के लोकसभा चुनाव में चौधरी बंसीलाल, कुलदीप शर्मा, राव इंद्रजीत, अजय चौटाला जैसे मंझे हुए नेता महिलाओं के सामने परास्त हो चुके हैं। बंसीलाल को हराकर चंद्रावती बनीं पहली महिला सांसद चंद्रावती हरियाणा की पहली महिला सांसद के साथ विधायक भी हैं। चरखी दादरी की रहने वाली चंद्रावती ने 1977 में भिवानी लोकसभा क्षेत्र से राजनीति के दिग्गज चौधरी बंसीलाल को हराकर सबको चौंका दिया था। दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने वाली चंद्रावती छह बार विधायक और एक बार सांसद रहीं। बात 16 मार्च 1978 की है। देश की छठीं लोकसभा के चौथे सत्र में हरियाणा की पहली महिला सांसद चंद्रावती द्वारा पूछे गए प्रश्न पर सदन में दिया गया यह जवाब शायद आज के समय में किसी को भी अचरज में डाल सकता है। मंत्री से मिला ये जवाब जब संचार मंत्रालय से केंद्रीय मंत्री नरहरि प्रसाद सुखदेव ने एक नया टेलीफोन कनेक्शन देने में लगने वाली समय सीमा को थोड़े दिनों से लेकर अन्य मामलों में दस वर्ष तक बताया। दो पेज के अपने जवाब में बताया कि हरियाणा के 2158 सहित पूरे देश भर में 1 लाख 99 हजार 788 लोग टेलीफोन कनेक्शन मिलने का इंतजार कर रहे हैं। साथ ही, इस बात के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और आशा की जाती है कि देश के कुछ खास इलाकों और कुछ बड़े नगरों को छोड़कर इस समय जो भी टेलीफोन कनेक्शनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन सभी लोगों को साल 1980 (करीब दो साल बाद) के अंत तक टेलीफोन कनेक्शन दे दिए जाएंगे। छोटे एक्सचेंजों से बहुत लंबी दूरी के कुछ कनेक्शन को देना भी संभव न हो सकेगा। दरअसल, सांसद चंद्रावती ने संचार मंत्री से नाराजगी व्यक्त करते हुए यह भी पूछा था कि बुक कराई जाने वाली कॉलों को एक्सचेंज में रिकॉर्ड तो कर लिया गया जाता है, परन्तु उनकी बारी नहीं आती। खुद उन्होंने एक कॉल सवेरे बुक कराई थी और शाम होने तक उसकी बारी नहीं आई। जिस पर केंद्रीय मंत्री ने बताया कि सभी टिकट, चाहे कॉल प्रभावी हो या ना नहीं हो, अगले दिन लेखा कार्यालय में भेज दी जाती है। लेकिन, अलग से यह रिकॉर्ड नहीं रखा जाता कि कौन सी ऐसी काल थी जो प्रात: कॉल में बुक कराई गईं और सायंकाल तक भी नहीं लगाई जा सकी हो। उन्होंने 1964 से 1966 तक पंजाब सरकार में और 1972 से 1974 तक हरियाणा सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया। 1990 में 11 महीने के लिए वह पुंडुचेरी की उप राज्यपाल भी रहीं। जब वीपी सिंह की सरकार गिरी तो चंद्रावती ने उप राज्यपाल के पद से इस्तीफा नहीं दिया। इस पर नई सरकार ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। 92 वर्ष की आयु में चंद्रावती का नवंबर 2020 में कोविड की वजह से निधन हो गया। सैलजा के नाम हरियाणा से सबसे अधिक बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड कुमारी सैलजा कांग्रेस का जाना-पहचाना दलित चेहरा हैं। वह सिरसा से चार बार सांसद रहे अपने पिता चौधरी दलबीर सिंह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। सैलजा 1991 और 1996) में सिरसा और 2004 व 2009 में अंबाला लोकसभा क्षेत्र से सांसद रही हैं। वे 2014 से 2020 तक राज्यसभा सदस्य भी रह चुकी हैं। पंजाब विश्वविद्यालय से पढ़ी कुमारी सैलजा ने 1990 में महिला कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। वह केंद्र सरकार में तीन बार मंत्री रह चुकी हैं। नरसिम्हा राव सरकार में उप शिक्षा मंत्री और मनमोहन सरकार में आवास एवं गरीबी उन्मूलन, सामाजिक अधिकारिता और पर्यटन मंत्री रही हैं। 33 साल के सियासी सफर में उन्होंने इस बार पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। कैलाशो ने कुरुक्षेत्र में तोड़ा बाहरी की जीत का मिथक प्रो. कैलाशो सैनी दो बार कुरुक्षेत्र से सांसद रही हैं। 1998 और 1999 में इनेलो के टिकट पर सांसद चुनी गईं। कुरुक्षेत्र के गांव प्रतापगढ़ निवासी प्रो.कैलाशो सैनी ही एकमात्र ऐसी सांसद हैं जो कुरुक्षेत्र की निवासी थीं। आमतौर पर इस सीट पर बाहरी उम्मीदवार ही जीत हासिल करते रहे हैं। हरियाणा में जब इनेलो का ग्राफ गिरने लगा तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने लाडवा से दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा, मगर सफलता नहीं मिली। उसके बाद भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला ने उन्हें भगवा परचम थमाया। इस बार भी कैलाशो सैनी कुरुक्षेत्र से भाजपा की टिकट की प्रबल दावेदार हैं। सुनीता दुग्गल के नाम सबसे ज्यादा वोटों से जीत का रिकॉर्ड भाजपा के टिकट पर साल 2019 में सिरसा सुरक्षित सीट से चुनी गई सुनीता दुग्गल हरियाणा की छठी सांसद हैं। अब तक प्रदेश में किसी महिला का सबसे ज्यादा वोटों से लोकसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड सुनीता दुग्गल के नाम है। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अशोक तंवर को 3,09,918 वोटों से हराया था।तंवर इस बार भाजपा के टिकट पर सिरसा से उम्मीदवार हैं। 2014 से पहले सुनीता दुग्गल आईआरएस अधिकारी थीं। भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने वीआरएस ले लिया था। 2014 में उन्होंने रतिया विधानसभा से चुनाव लड़ा, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सुनीता के पति राजेश दुग्गल आईपीएस अधिकारी हैं। उनके भाई सुमित कुमार एचसीएस अफसर हैं। बंसीलाल की विरासत को आगे बढ़ा रहीं श्रुति बंसीलाल परिवार की तीसरी पीढ़ी की नेता श्रुति चौधरी 2009 में भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुनी गईं। उनकी मां किरण चौधरी कांग्रेस की वरिष्ठ नेता हैं और नेता प्रतिपक्ष रह चुकी हैं। पिता सुरेंद्र सिंह की मौत के बाद श्रुति ने राजनीति में कदम रखा था। 2014 और 2019 में भी उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी करारी हार हुई थी। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी श्रुति को भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से कांग्रेस के टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। वह हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। मोदी के कहने पर मैदान में उतरी थीं सुधा यादव सुधा यादव 1999 में गुरुग्राम लोकसभा से भाजपा के टिकट पर सांसद चुनी गईं। उन्होंने अहीरवाल के दिग्गज नेता और भाजपा के मौजूदा लोकसभा उम्मीदवार राव इंद्रजीत सिंह को 1 लाख 39 हजार से अधिक वोटों से हराया था। राव इंद्रजीत को हराने के बाद सुधा काफी चर्चा में आ गई थीं। सुधा के पति सुखबीर यादव बीएसएफ के डिप्टी कमांडेंट थे और कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। रुड़की विश्वविद्यालय से स्नातक सुधा यादव को राजनीति में लाने वाले पीएम नरेंद्र मोदी ही हैं। 1999 में मोदी के कहने पर उन्होंने गुरुग्राम लोकसभा से चुनाव लड़ा था। 2022 में उन्हें भाजपा संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया। संसदीय बोर्ड में शामिल वह एकमात्र महिला थीं। सियासी पिच पर इन महिलाओं ने दिग्गजों को किया बोल्ड वर्ष सीट विजेता पार्टी प्रतिद्वंद्वी 1977 भिवानी चंद्रावती बीएलडी बंसीलाल 1991 सिरसा कुमारी सैलजा कांग्रेस हेतराम 1996 सिरसा कुमारी सैलजा कांग्रेस सुशील कुमार 1998 कुरुक्षेत्र कैलाशो सैनी इनेलो कुलदीप शर्मा 1998 भिवानी-महेंद्रगढ़ सुधा यादव भाजपा राव इंद्रजीत सिंह 1999 कुरुक्षेत्र कैलाशो सैनी इनेलो ओमप्रकाश जिंदल 2004 अंबाला कुमारी सैलजा कांग्रेस रतनलाल कटारिया 2009 भिवानी-महेंद्रगढ़ श्रुति चौधरी कांग्रेस अजय सिंह चौटाला 2009 अंबाला कुमारी सैलजा कांग्रेस रतनलाल कटारिया 2019 सिरसा सुनीता दुग्गल भाजपा अशोक तंवर Post navigation क्या रणजीत सिंह के इस्तीफा के बाद विज की होगी मंत्रिमंडल में एंट्री? भाजपा ने हरियाणा की सभी दस लोकसभा सीटों पर घोषित उम्मीदवारों में 6 कांग्रेसी 5 परिवारवादी : विद्रोही