सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को मंगलवार शाम तक इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा सौंपने को कहा था। एसबीआई ने मंगलवार शाम 5.30 बजे चुनाव आयोग को डेटा सौंप दिया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने गुरुवार को इसे सार्वजनिक किया। नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से मिला डेटा गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को मंगलवार शाम तक इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा सौंपने को कहा था। एसबीआई ने मंगलवार शाम 5.30 बजे चुनाव आयोग को डेटा सौंप दिया था. इसके बाद चुनाव आयोग ने गुरुवार को इसे सार्वजनिक किया। 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को फटकार लगाई थी और 12 मार्च शाम तक यह डिटेल देने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान बेंच ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी. साथ ही एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को देने का निर्देश दिया था. 4 मार्च को एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था। इसके बाद एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म ने 7 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी थी। एडीआर ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए एसबीआई का 30 जून तक की मोहलत मांगना इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। एडीआर ने तर्क दिया कि एसबीआई का आईटी सिस्टम इसे आसानी से मैनेज कर सकता है। हर बॉन्ड में एक यूनीक नंबर होता है. इसके जरिए रिपोर्ट तैयार कर इलेक्शन कमीशन को दी जा सकती है। इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में एसबीआई की याचिका पर सोमवार (11 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट ने करीब 40 मिनट सुनवाई की थी। एसबीआई ने कोर्ट से कहा था- बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा- पिछली सुनवाई (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया? सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- एसबीआई 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। Post navigation मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिले नायब सिंह सैनी हरियाणा में छोटी पार्टियों की राजनीति खतरे मे ?