कानूनन एक वर्ष से कम अवधि की रिक्त सीट पर नहीं होता उपचुनाव परन्तु गैर-विधायक मुख्यमंत्री के निर्वाचन के लिए उपचुनाव संभव — एडवोकेट हेमंत सामान्यत: सीट रिक्त होने के 6 महीने के भीतर होता है उपचुनाव हालांकि चुनाव आयोग अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव के साथ करा सकता है करनाल उपचुनाव चंडीगढ़- मंगलवार 13 मार्च को हरियाणा विधानसभा के एक दिन के विशेष सत्र में, जिसमें नव-नियुक्त मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने ध्वनिमत से सदन में विश्वास मत हासिल किया, के पश्चात निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उनके धन्यवाद संबोधन दौरान करनाल सीट से विधायक के तौर पर त्यागपत्र देने की घोषणा की और कहा कि अब से प्रदेश के नए मुख्यमंत्री नायब सैनी करनाल विधानसभा सीट को संभालें. बहरहाल, मनोहर लाल को करनाल लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी घोषित कर दिया गया है. बहरहाल, अब इस सबके बीच प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा चल उठी है कि क्या भारतीय निर्वाचन आयोग आगामी अप्रैल-मई 2024 में निर्धारित लोकसभा आम चुनाव के साथ करनाल वि.स. सीट पर उपचुनाव करा सकता है और ऐसा तब जबकि सात माह बाद अक्टूबर,2024 में प्रदेश के अगले विधानसभा आम चुनाव ही निर्धारित हैं. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और चुनावी कानूनों के जानकार हेमंत कुमार ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री और करनाल सीट से विधायक मनोहर लाल द्वारा लिखित तौर पर उनका त्यागपत्र विधानसभा स्पीकर को देने के उपरान्त उसे स्वीकार किया जाएगा एवं विधानसभा सचिवालय द्वारा एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर करनाल विधानसभा रिक्त को रिक्त घोषित किया जाएगा एवं भारतीय चुनाव आयोग को इस बारे में सूचना भेजी जायेगी. उन्होंने बताया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 150 के तहत राज्य विधानसभा में मौजूदा विधायक की मृत्यु, त्यागपत्र एवं उनका निर्वाचन रद्द होने अथवा उसके अयोग्य घोषित होने के कारण आदि कारणों से रिक्त हुई सीट पर भारतीय चुनाव आयोग द्वारा उपचुनाव करवाया जाता है. धारा 151 ए के अनुसार ऐसा उपचुनाव करवाने की समय सीमा रिक्त घोषित की गयी विधानसभा सीट के छः माह के भीतर होती है. हालांकि अगर रिक्त हुई विधानसभा सीट की शेष अवधि एक वर्ष से कम हो, तो उपचुनाव नहीं कराया जाता है. हेमंत ने बताया कि चूँकि 4 नवंबर 2019 को प्रदेश की मौजूदा 14 वी विधानसभा का पहला अधिवेशन ( सत्र) बुलाया गया था एवं भारत के संविधान के अनुच्छेद 172 अनुसार इसका कार्यकाल 3 नवंबर 2024 तक है, इसलिए आज की तारीख में वर्तमान हरियाणा विधानसभा में किसी भी रिक्त सीट की अवधि आठ माह से भी कम होगी एवं इस कारण लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 151(ए) के अंतर्गत किसी रिक्त सीट पर चुनाव आयोग द्वारा उपचुनाव नहीं कराया जा सकता है. हालांकि हेमंत का कहना है कि चूँकि गत 12 मार्च को प्रदेश की कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से सांसद नायब सिंह सैनी हरियाणा के मुख्यमंत्री बने हैं एवं वह प्रदेश विधानसभा के सदस्य अर्थात विधायक नहीं है, इसलिए वह बगैर विधायक बने अधिकतम 6 महीने तक अर्थात आगामी 11 सितम्बर 2024 तक ही मुख्यमंत्री के पद पर रह सकते हैं. भारत देश के संविधान के अनुच्छेद 164(4) का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि उसमें स्पष्ट उल्लेख है कि कोई मुख्यमंत्री जो निरंतर 6 माह की किसी अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मुख्यमंत्री नहीं रहेगा. इसी बीच उपरोक्त का एक तोड़ बताते हुए हेमंत ने बताया कि अगर विधानसभा के कार्यकाल के अंतिम वर्ष की अवधि दौरान किसी ऐसे गैर-विधायक व्यक्ति को प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है, जैसे नायब सैनी को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया है, तो उस परिस्थिति में रिक्त हुई किसी विधानसभा सीट पर चुनाव आयोग द्वारा उपचुनाव कराया जा सकता है बेशक उस रिक्त सीट की अवधि एक वर्ष से कम हो. चूँकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने करनाल वि.स. सीट से त्यागपत्र दे दिया है और अब वह करनाल से सांसद का चुनाव लड़ेंगे, इसलिए प्रदेश के गैर-विधायक मुख्यमंत्री नायब सैनी को हरियाणा विधानसभा का सदस्य बनने के लिए चुनाव आयोग एक मौका देकर करनाल वि.स. सीट पर उपचुनाव करा सकता है. हेमंत ने भारतीय चुनाव आयोग के आधिकारिक रिकॉर्ड से जानकारी प्राप्त कर बताया कि हरियाणा में वर्ष 1986 में भी ऐसा हुआ था जब हरियाणा में तत्कालीन मुख्यमंत्री भजन लाल को बदल कर लोकसभा सांसद बंसी लाल को मुख्यमंत्री बनाया गया था एवं तत्कालीन हरियाणा विधानसभा की एक वर्ष से कम अवधि शेष होने बावजूद भिवानी जिले की तोशाम विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया था जिसमें बंसी लाल रिकॉर्ड मार्जिन से निर्वाचित होकर विधायक बने थे. उस अल्प-अवधि उपचुनाव को हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गयी परन्तु दोनों शीर्ष अदालतों ने उसमें हस्तक्षेप नहीं किया था. इसी प्रकार वर्ष 1999 में ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री और लोकसभा सांसद गिरिधर गमांग के लिए भी अल्प-अवधि के लिए विधानसभा उपचुनाव कराया गया था जिसे जीतकर वह विधायक बने थे. Post navigation चेहरा बदल कर होगा बदलाव ? …..अनुभव और सत्ता की चाबी…. भाजपा सत्ता की डोर तो संघी मनुवादी व्यवस्था में विश्वास रखने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास है : विद्रोही