सामाजिक न्याय के लिए जहां पिछडे, दलित, आदिवासी वर्ग की सत्ता व प्रशासन में उच्च पदों पर भागीदारी के साथ सामाजिक न्याय का एजेंडा भी जरूरी है : विद्रोही

जब नीतिया ही पिछडे, दलित, आदिवासी विरोधी हो, उनको हकों के छीनने वाली हो, फिर इन वर्ग के नेताओं को मंत्री या मुख्यमंत्री पदों पर सजावटी कठपुतलियों की तरह बैठाने का क्या औचित्य है? विद्रोही 

14 मार्च 2024 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने सवाल किया कि जब प्रधानमंत्री मोदी जी अपने को ओबीसी कहते है व हरियाणा में खट्टर को हटाकर ओबीसी के नाम पर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है, फिर भी ओबीसी वर्ग को सामाजिक न्याय देने भाजपा जातिगत गणना से क्यों भाग रही है? विद्रोही ने सवाल किया कि ओबीसी वर्ग के व्यक्ति को उच्च पद पर बैठा दो और संघी हिन्दुत्व की मनुवादी व्यवस्था के अनुसार भाजपा समाज, देश का निर्माण करे, ऐसी स्थिति में पिछडे, दलित, आदिवाासी वर्ग को सामाजिक न्याय कैसे मिल सकता है? सामाजिक न्याय के लिए जहां पिछडे, दलित, आदिवासी वर्ग की सत्ता व प्रशासन में उच्च पदों पर भागीदारी के साथ सामाजिक न्याय का एजेंडा भी जरूरी है। साम्प्रदायिक उन्माद, नफरत, बटवारे की संघी मनुवादी व्यवस्था का एजेंडा कभी भी सामाजिक न्याय का वाहक नही बन सकता। भाजपाई-संघीयों की यह सोच पिछडे, दलित, आदिवासी वर्गो के हितों की विरोधी है।  

विद्रोही ने कहा कि अपने को ओबीसी कहने वाले प्रधानमंत्री मोदीजी के होते हुए जब उच्च प्रशासनिक अधिकारियों की बिना यूपीएससी परीक्षा पास किये पर्र्दे के पीछे से सीधी संयुक्त सचिव पद पर केन्द्र में नियुक्तियां हो रही है और वे सभी नियुक्तियां भी उच्च स्वर्ण वर्ग से हो रही है तो फिर ऐसा प्रधानमंत्री ओबीसी वर्ग का है या नही इससे क्या फर्क पडता है। पिछडों, दलितों व आदिवासी वर्ग के अधिकारों को जब तक सत्ता दुरूपयोग से सुनियोजित ढंग से छीना जाता रहेगा तब तक मोदी-भाजपा-संघी सरकार में कितने पिछडे, दलित व आदिवासी केन्द्र व राज्यों के मंत्री या मुख्यमंत्री है, इससे क्या असर पडता है? जब नीतिया ही पिछडे, दलित, आदिवासी विरोधी हो, उनको हकों के छीनने वाली हो, फिर इन वर्ग के नेताओं को मंत्री या मुख्यमंत्री पदों पर सजावटी कठपुतलियों की तरह बैठाने का क्या औचित्य है?  

विद्रोही ने कहा कि भाजपा सत्ता की डोर तो संघी मनुवादी व्यवस्था में विश्वास रखने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास है। नागपुर में बैठा संघ पिछडे, दलितों व आदिवासी वर्ग की सत्ता में सजावटी कठपुतलियों पर अपने इशारे पर नचाकर इन वर्गो के पैरों पर कुल्हाडी मरवाता है। ऐसी स्थिति में पिछडे, दलितों, आदिवासियों को सामाजिक न्याय व सत्ता में स्वतंत्र भागीदारी कैसे मिल सकती है? विद्रोही ने पिछडे, दलितों व आदिवासी वर्ग से सीधा सवाल किया कि वे भाजपा-संघ के साथ रहकर मनुवादी कठपुतली बनना चाहते है या कांग्रेस-इंडिया एलायंस का साथ देकर सामाजिक न्याय के एजेंडे के आधार पर देश को चलाना चाहते है, यह उन्ही तो तय करना होगा।                      

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