हरियाणा रोडवेज का निजीकरण कर इसे बंद करने पर उतारू गठबंधन सरकार

रोडवेज का प्रबंधन खराब, पीएसी भी उठा चुकी कार्यप्रणाली पर सवाल

चंडीगढ़,10 मार्च।अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवम उत्तराखंड की प्रभारी कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार बसों के परमिट जारी कर हरियाणा रोडवेज को निजी हाथों में सौंपना चाहती है। निजी हाथों में देते ही सरकारी महकमे परिवहन विभाग को ही राज्य सरकार बंद कर देगी। सार्वजनिक परिवहन सेवा की हरियाणा रोडवेज को गठबंधन सरकार जिंदा रखना चाहती है तो फिर उसे स्टैट कैरिज बसों के परमिट जारी करने की बजाए सरकारी बसों की खरीद कर रोडवेज के बेड़े को बढ़ाना चाहिए।

मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि राज्य सरकार स्टैट कैरिज बसों के परमिट को लेकर नई पॉलिसी तैयार कर रही है, जिसके तहत नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे व मेजर डिस्ट्रिक्ट रोड पर पड़ने वाले 362 रूटों के लिए परमिट जारी किए जाएंगे। यही नहीं, आने वाले समय में किसी भी रूट पर स्टैट कैरिज बसों के परमिट 50 प्रतिशत तक कर दिए जाएंगे। यानी, आधे रूटों पर निजी क्षेत्र की बसें संचालित होंगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह रोडवेज का निजीकरण की दिशा में शुरुआती कदम है। धीरे-धीरे परमिट वाली बसों की संख्या को बढ़ाकर 50 प्रतिशत से अधिक कर दिया जाएगा और फिर एक दिन रोडवेज को बंद करने या पूरी तरह निजीकरण करने का फरमान सुना दिया जाएगा। वहीं, दूसरी ओर जिस तरह से बसों की औसत स्पीड को लेकर आदेश जारी किए गए हैं, वह भी रोडवेज कर्मचारी विरोधी कदम है। इससे कर्मचारियों पर मानसिक दबाव बढ़ेगा और हादसों में बढ़ोतरी हो सकती है।

कुमारी सैलजा ने कहा कि पीएसी की रिपोर्ट में खुलासा हो चुका है कि सरकारी लापरवाही व दिलचस्पी न लेने के कारण हरियाणा रोडवेज घाटे में है। नई बसें न होने व लाचार प्रबंधन के कारण ही रोडवेज की बसें अपने लक्ष्य से कम दौड़ रही हैं। साल 2015-16 में प्रति किलोमीटर घाटा 10.61 रुपये था, जो 5 साल में बढ़कर 23.62 रुपये हो चुका है। जबकि, डीजल खर्च भी अनुमान के मुकाबले 39.86 लाख लीटर अधिक रहा। इसी तरह ब्रेकडाउन भी बार-बार होता रहा, जिससे बसें लक्ष्य के मुकाबले 7 करोड़ किलोमीटर कम दौड़ सकी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गठबंधन सरकार का ध्यान रोडवेज के बेडे में नई बसें शामिल करने की ओर न होकर निजी परमिट जारी करने में है। इसलिए ही पुरानी हो चुकी बसों को चलाने से ब्रेकडाउन के मामले बढ़ रहे हैं, जबकि मेंटेनेंस का खर्च भी बढ़ रहा है। इन्हीं सब पॉइंट पर पीएसी द्वारा सवाल खड़े के बावजूद गंभीरता नहीं दिखाई गई। जबकि, 13 जिलों में ही 700 नई बसों की तुरंत जरूरत है, जबकि 636 चालक व परिचालकों की कमी है।

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