कमलेश भारतीय

जब जालंधर की यादें लिखनी शुरू की थीं, तब लगता था कि दो चार दिन लिखकर आपसे विदा ले लूंगा लेकिन यादें जालंधर से चलती हुईं मुझे न जाने कौन कौन से देश में लिए जा रही हैं ! जालंधर से चलतीं ये यादें, कहाँ से कहाँ लिए जा रही हैं! थोड़ा सा चंडीगढ़ की ओर भी आ निकला हूँ तो प्रसिद्ध कवि कुमार विकल और पत्रकार निरूपमा दत्त को एक साथ याद कर रहा हूँ क्योंकि जब कुछ समय के लिए निरूपमा दत्त दिल्ली पत्रकारिता के लिए चली गयी थीं तब कुमार विकल ने एक कविता लिखी थी :

निरूपमा दत्त !
मैं बहुत उदास हूँ
तुम चाहे यहाँ से चली गयी हो
लेकिन मैं तुम्हारे आसपास हूँ !

इस तरह इन दोनों को एक साथ ही याद कर रहा हूँ ! वैसे यह अकेलापन या प्रेम सिर्फ कविता तक ही सीमित है न कि कुमार विकल या निरूपमा दत्त किसी और तरह जुड़े रहे । निरूपमा दत्त ने कुमार विकल की कविताओं की निरंतर चर्चा कर उनकी प्रतिभा की ओर आकर्षित किया और‌ यही एक अच्छे पत्रकार का काम भी है और होना भी चाहिए ! यह भी सच है कि कुमार विकल की कविताओं या प्रतिभा को किसी सहारे की जरूरत नहीं थी । साम्प्रदायिक दंगों पर लिखी कविता की याद आ रही हैं कुछ पंक्तियाँ :

यह जो सड़क पर बहता खून है
इसे सूंघ कर बताओ
यह किसका है?

यानी सबके खून का रग एक जैसा ही है, फिर इसे आप हिंदू या मुस्लिम में कैसे बांट रहे हो?

साइकिल से गिरे
मज़दूर के बिखरे डिब्बे की रोटी
खून से लाल है गयी है

कुछ ऐसी पंक्तियां भी रही हैं जो मेहनतकश की ओर ध्यान खींचती हैं !

यह सिर्फ एक बानगी भर है , कुमार विकल की कविताओं की लेकिन कुछेक लोग इनकी शराब पीने की बात उठा कर इनकी कविताओं और व्यक्तित्व को कम करने की कोशिश करते हैं, जो कभी सफल नही हुए और न ही इनका लेखन कभी इनको सफल होने देगा ! यह यक्ष प्रश्न जरूर है‌ कि कुमार विकल‌ के बाद फिर पंजाब या चंडीगढ़ का कोई कवि इतनी ऊंचाई को क्यों नहीं छू पाया?

ऐसे ही किस्से पंजाबी के प्रसिद्ध कवि शिव कुमार बटालवी के बारे में चर्चित हैं लेकिन उनके गीत आज भी बड़े लोकप्रिय हैं और ऐसे ही उन्हें विरह का सुल्तान नहीं कहा जाता है!

खैर, कुमार विकल पंजाब विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग में काम करते थे और यदि इनसे कोई हिंदी के प्रसिद्ध कवि धूमिल से कम आंके तो यह नादानी होगी ।

अब रही बात निरूपमा दत्त की तो वे पत्रकार के साथ साथ एक्टिविस्ट हैं और आधी दुनिया की आवाज़ बड़े ज़ोर शोर से उठाती आ रही हैं । मैं इन्हें चंडीगढ़ आने से पहले से जानता था और चंडीगढ़ आकर और ज्यादा जाना ! एकदम खुली किताब जैसी ज़िंदगी और खुला व्यक्तित्व ! इन्होंने एक किताब पंजाबी में प्रकाशित की थी, जो मुम्बई की किसी महिला वकील की सच्ची कथा पर आधारित थी और उसका एक वाक्य नहीं भूलता कि मेरा पति मुझे बुरी तरह मारता था । उसकी मार से मिले ज़ख्म तो कुछ दिन बाद भर जाते और भूल जाते पर आत्मा से उनके निशान कभी न जाते! निरूपमा दत्त बहुत अच्छी कवयित्री भी हैं और एक्टिविस्ट तो हैं ही! निरूपमा दत्त ने एक बार इंडियन एक्सप्रेस के अपने काॅलम में मेरे बारे में लिखा था- गुडमैन द लालटेन! यह सर्टिफिकेट की तरह आज भी मेरी फाइलों में से कभी कभी झांक जाता है !

निरूपमा दत्त के खिलंदड़दने की एक रोचक याद है । ‌उस दिन मेरे मित्र रमेंद्र‌ जाखू के काव्य संग्रह पर पंजाब विश्वविद्यालय के आईसीसीएसआर के सभागार में विचार गोष्ठी थी और मैं और‌ निरूपमा सबसे पीछे बैठे थे। निरूपमा दत्त अपने स्वभाव के अनुसार सुन रही थी दत्तचित्त होकर । गोष्ठी खत्म हुई। ‌हम अपने अपने अखबार के दफ्तर भागे । दफ्तर में रमेंद्र का फोन आया कि यार, किसी तरह निरूपमा को रोक लो, वह मेरे बारे में पता नहीं क्या लिख दे । मैंने कहा कि आप आ जाओ, आपको निरूपमा के घर ले चलता हूँ और ऐसा ही हुआ। हम निरूपमा के सेक्टर आठ स्थित घर पहुंचे और निरूपमा को मैंने कहा कि मेरी दोस्ती दोनों से है। रमेंद्र को जो लग रहा है कि आप अच्छा नहीं लिखने जा रही तो इतना ही करो कि कुछ भी न लिखो। यह मित्र इसी में खुश है। ‌निरूपमा ने हमें उस बरसात में ही बढ़िया चाय पिलाई और‌ हंसते हंसते विदा किया। रिपोर्ट से जाखू गद्गद्‌ हो गये!

निरूपमा में दूसरों की प्रशंसा करने और कवरेज की सराहना करने का बहुत बड़ा गुण है, जो सीखने लायक है। मैंने प्रयाग शुक्ल के दामाद सिद्धार्थ की कला प्रदर्शनी पर राइट अप लिखा जो निरूपमा दत्त को बहुत पसंद आया और उसने मुझे फोन पर बधाई दी ! यह गुण सीखने की बात है । वह आज भी अपने अंदाज में जी रही है, कोई और महिला पत्रकार चाह कर भी वैसी ऊंचाई को छू नहीं पाई !

ज्यादा न कह कर इतना ही कहूँगा कि मेरी बात को महसूस कर रहे होंगे कि निरूपमा जैसी होना बहुत मुश्किल है!
9416047075

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