लोकायुक्त ने शहरी निकाय विभाग को 15 दिन में जाँच रिपोर्ट न देने पर एंटी करप्शन ब्यूरो से विस्तृत जाँच करवाने की दी चेतावनी

-अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी ।

चंडीगढ़ 11 जनवरी – याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे घोटाले की सुनवाई करते हुए लोकायुक्त जस्टिस हरी पाल वर्मा ने शहरी स्थानीय निकाय विभाग के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई और 15 दिन में जाँच रिपोर्ट न देने पर एंटी करप्शन ब्यूरो से मामलेे की विस्तृत जाँच करवाने की चेतावनी दी । मामले की सुनवाई की पिछली तारीख पर एंटी करप्शन ब्यूरो ने लोकायुक्त को दी अपनी प्राथमिक जाँच में एंटी करप्शन ब्यूरो ने प्रॉपर्टी टैक्स सर्वे में फर्जीवाड़े के आरोपों को प्रथम दृष्ट्या सही पाते हुए विस्तृत जाँच करने की जरूरत बताई थी।इस पर लोकायुक्त ने शहरी निकाय विभाग के प्रधान सचिव से 11 जनवरी तक जाँच रिपोर्ट तलब की थी । लेकिन आज सुनवाई के दौरान शहरी निकाय विभाग के आधिकारी रिपोर्ट पेश नहीं कर सके। लोकायुक्त अब मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी को करेंगे ।

ये है मामला:
पानीपत के आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने लोकायुक्त जस्टिस हरि पाल वर्मा को गत वर्ष 19 जुलाई को निकाय मंत्री कमल गुप्ता, 12 आईएएस सहित शहरी निकाय विभाग के 88 अधिकारियों के खिलाफ़ शिकायत देकर याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे में घोटाले के गम्भीर आरोप लगाए थे। लोकायुक्त का नोटिस मिलते ही सरकार ने याशी कम्पनी को ब्लैक लिस्ट करते हुए 8 करोड़ रुपये की बकाया पेमेंट रोक दी थी व लाखों रुपये की परफॉर्मेंस बैंक गारन्टी भी जब्त कर ली थी । आरोप लगाया था कि प्रॉपर्टी आईडी का सर्वे बोगस होने के बावजूद अधिकारियों ने 58 करोड़ रुपये की पेमेंट कम्पनी को कर दी। इस बोगस सर्वे की त्रुटियों को ठीक कराने के लिए पब्लिक धक्के खा रही है ।

एंटी करप्शन ब्यूरो ने विस्तृत जाँच की बताई जरूरत:
लोकायुक्त के आदेश पर की गई अपनी प्राथमिक जाँच में एंटी करप्शन ब्यूरो (मुख्यालय) के डीएसपी शुक्र पाल ने पीपी कपूर के आरोपों को सही पाते हुए घोटाले के पूरे खुलासे के लिए विस्तृत खुली जाँच की जरूरत बताई है । बताया कि मामले में फर्जीवाड़े की जांच पूरे रिकॉर्ड को अपने कब्जे में लिए बगैर और सम्बन्धित अधिकारियों के ब्यान लिए बगैर सम्भव नहीं है ।

एंटी करप्शन ब्यूरो की प्राथमिक जाँच में हुआ खुलासा:-
टेंडर एग्रीमेंट की शर्त मुताबिक याशी कम्पनी को भुगतान से पहले सर्वे की गई सम्पतियों में से 10 पर्सेंट सम्पत्तियों का फिजिकल वेरिफिकेशन पालिका सचिवों नगर परिषदों के ई ओ और नगर निगमों के जिला पालिका आयुक्तों को करना था । लेकिन य़ह कार्य सही ढंग से नहीं किया गया। इन अधिकारियों ने इस फिजिकल वेरिफिकेशन का रिकॉर्ड भी उचित ढंग से नहीं रखा, जिससे इस पूरे सर्वे कार्य के सही और प्रमाणिक होने का पता चल पाए। जबकि इसी के आधार पर साइन ऑफ सर्टिफिकेट्स जारी करके याशी कम्पनी को करोड़ों रुपये की पेमेंट कर दी। इसमें अधिकारियों की लापरवाही नजर आती है।
टेंडर एग्रीमेंट अनुसार याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे में 5 पर्सेन्ट तक त्रुटियां स्वीकार्य होनी थी।लेकिन फिजिकल वेरिफिकेशन के उपरांत अधिकारियों द्वारा जारी किए गए साईन ऑफ सर्टिफिकेट्स में 5 पर्सेन्ट की निर्धारित सीमा के अंदर त्रुटियों का बताया जाना उचित प्रतीत नहीं होता। इसी प्रकार शहरी निकाय विभाग का नोटिस मिलने के बावजूद भी याशी कम्पनी जानबूझ कर जरूरी रिकॉर्ड नहीं सौंप रही है । बिना पूरा रिकॉर्ड अपने कब्जे में लिए और सम्बन्धित अधिकारियों के ब्यान दर्ज किए बगैर अभी इस मामले में क्रिमिनल पक्ष होने का निष्कर्ष नही निकाला जा सकता। पूरे मामले का खुलासा करने के लिए विस्तृत खुली जाँच शुरू करने की जरूरत है ।

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