शरद गोयल ………….. चीफ एडिटर, विचार परिक्रमा

अभी हाल ही में लोक सभा स्पीकर ओम बिरला जी ने 45 सांसदों को संसद से निलंबित किया। इससे पहले भी राज्य सभा, लोकसभा के कुल मिलाकर लगभग 139 सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया।

हालाँकि कोई इसको राजनीतिक चश्मे से देख रहा हो। लेकिन मेरा मानना है कि 140 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों को संयम में रहना अत्यंत आवश्यक है। लोकसभा, राज्यसभा देश के गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने व भविष्य की नीतियां बनाने का एक मंच है नाकि एक दूसरे पर अभद्र व्यवहार व गाली-गलोच करने का। अभी हाल ही में लगभग 1 वर्ष पूर्व संसद की सर्वदलीय कमेटी ने सांसदों के लिए एक आचार-सहिंता बनाई थी जिसमें स्पष्ट रूप से बहुत से शब्दों को संसद में इस्तेमाल
न करने के निर्देश दिए थे और इस पर आम सहमति भी बनी थी कि सभी दलों के सदस्य इस आदर्श आचार-सहिंता का पालन करेंगे लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। संसद में अभद्र व्यवहार की घटनाएँ रोज देखने को मिलती है। संसद के नव निर्मित भवन के निर्माण के साथ यह उम्मीद बनी थी कि इसमें बैठने वाले सांसद अपने आचार, विचार और व्यवहार में कुछ परिवर्तन लाएंगे लेकिन स्थिति वैसी की वैसी रही।

दरअसल मुझे लगता है जब से संसद की कार्यप्रणाली का सीधा प्रसारण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से प्रसारित होने लगा है। तब से सांसदों और विधायकों की बत्मिजियाँ बढती जा रही है। वो अपने द्वारा किए गए अभद्र व्यवहार का भी राजनीतिक फायदा उठाने का प्रयास करते है और दुर्भाग्य से आम नागरिक जोकि बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है इसको उनकी काबिलियत मानता है। सांसद, विधायक अपने द्वारा किए गए अभद्र व्यवहार की वीडियो अपने क्षेत्र के लोगों को दिखा कर तालियाँ बटोरते है।

इन सबमें कहीं- न-कहीं दोषी आम जनता भी है। अक्सर ये देखा गया है कि भाषण देने वाला जब कोई अभद्र बात बोलता है तो जनता तालियाँ बजाती है। इसका जीता-जागता उदाहरण हैदराबाद से विधायक और इस प्रकार के अनेकों विधायक व सांसद है।

मेरा ऐसा मानना है कि सांसद विधायक चुनने के बाद उस व्यक्ति को कम से कम 6 महीने के गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता होनी चाहिए और उसके बाद ही वो संसद में प्रवेश करने के लायक होना चाहिए।

21वीं सदी का भारत दुर्भाग्य से संसद की विश्व स्तरीय ईमारत तो देख रहा है। किन्तु उसमें बैठने वाले सांसद, विधायकों का चाल-चलन, चेहरा वैसा ही है जैसा कि आज से 40 साल पहले था।

लोकसभा अध्यक्ष ने इन सांसदों को निलंबित करके एक नई मिसाल पैदा की है और भविष्य में भी इसका सख्ताई से पालन हो। यहाँ तक मेरा मानना यह भी है कि सारे दल मिलकर एक विधेयक पास करे कि यदि किसी सांसद को एक साल के भीतर दो बार और 4 साल में 4 बार निलंबित किया गया है तो उसकी सदस्यता स्थाई तौर पर समाप्त कर दी जाए। फिर चाहे वो किसी भी दल का हो सत्ता रूढ़दल का या विपक्ष दल का।

लोकसभा अध्यक्ष का स्थान लोकसभा में और राज्यसभा की सभापति का राज्य सभा में सर्वोच्च स्थान होता है। अगर इस प्रकार का नियम बना दिया जाएगा तो भविष्य में एक स्वच्छ संसदीय प्रक्रिया का लोग-बाग़ अनुसरण करेंगें और चुनाव लड़ने से पहले सभी सांसदों और विधायकों को एक शपथ पत्र के द्वारा यह शपथ लेनी होगी कि वो संसद की आचार-सहिंता का पालन करेंगे। सांसद, विधायक बनने से पहले उनको ये भली-भांति मालूम चल जाए कि सदन में रहना है तो अनुशासित सदस्य की भांति व्यवहार करना होगा।

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