इंदिरा किसलय
चीड़ों पर चाँदनी का भावुक अक्स उकेरते हुए “निर्मल वर्माजी” हों, आँखिन देखी कहने वाले “हरिशंकर परसाई”, आषाढ़ का एक दिन की यादों में भीगी “अनिता राकेश”,तमस के दर्द से व्यथित “भीष्म साहनी”, आवारा मसीहा के रूबरू करवाने वाले ” विष्णु प्रभाकर”, हंस वाले”राजेन्द्र यादव”, शुभतारिका के महाराज कृष्ण जैनजी,तथा अन्यान्य विभूतियों के साथ कृति के लेखक सुख्यात कथाकार पत्रकार “कमलेश भारतीय” स्वयं अपनी सृजन गाथाओं के साक्षीत्व में पाठकों को शामिल कर लें तो इससे बड़ी सौगात क्या होगी !
“यादों की धरोहर”महज साक्षात्कारों का संचयन नहीं वरन एक संदर्भ ग्रंथ की गरिमा समेटे है।एक दीप स्तंभ जो राहों को आलोकित कर मंजिल का पता देता है।रचनाधर्म का मर्म समझाता है।एक अनूठी कृति।एक शेर कृति से उद्घृत करना चाहूंगी–जो हर रचनाकार के लिए वरणीय है।’-
“तुम्ही तुम हो एक मुसाफिर
यह गुमान मत रखना
अपने पाँवों तले कभी
आसमान मत रखना।।”