दिवंगत पत्रकारों के परिजनों को मिलने वाली पेंशन सरकार ने बढ़ाने की जगह घटा दी: पूर्व केंद्रीय मंत्री

सरकार ने पत्रकारों को एक हाथ से दी सुविधा तो दूसरे हाथ तत्काल छीन ली

चंडीगढ़, 27 नवंबर। प्रदेश की गठबंधन सरकार ने समाज के हर वर्ग के साथ धोखा किया है। समाज को आइना दिखाने का कार्य करने वाले समाज के सबसे प्रबुद्ध नागरिक पत्रकारों के साथ छलावा करने में भी ये सरकार पीछे नहीं रही। सरकारी योजनाओं के नाम पर भी पत्रकारों को गुमराह करने का काम किया गया। फिलहाल सरकार ने पत्रकारों की पेंशन में इजाफा किया तो दूसरी ओर अधिसूचना जारी कर साफ कर दिया कि एक परिवार में एक ही सदस्य को पत्रकार पेंशन का लाभ दिया जाएगा। यानि सरकार एक हाथ से देकर दूसरे हाथ से छीनने का काम कर रही है, अगर पति- पत्नी दोनों पत्रकार है तो एक को ही पेंशन मिलेगी यानि सरकार महिलाओं को उनके मौलिक हकों से वंचित कर रही है।

मीडिया को जारी बयान में अखिल भारतीय कांग्रेस की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य और हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा कि  सरकार की इस धोखाधड़ी को लेकर पत्रकारों में भारी रोष है। इतना ही नहीं पहले पेंशन पाने वाले पत्रकार के निधन पर उसके जीवन साथी ( यानि पत्नी या पति, जैसी भी स्थिति हो) को पूरी पेंशन पाने का हक़ था, लेकिन अब उसे घटाकर आधा कर दिया है। अर्थात् पहले पत्रकार के निधन होने पर उसके जीवन साथी को 10 हज़ार पेंशन मिलती थी और अब उसकी पेंशन 10 हज़ार से बढ़ाकर 15 हज़ार करने की बजाय सरकार ने घटाकर 7500 रुपए कर दिया है। इतना ही नहीं अब सरकार ने यह भी शर्त जोड़ दी है कि पत्रकार के खिलाफ कोई भी मामला दर्ज होते ही ( चाहे मामला झूठा ही हो) पत्रकार की पेंशन बंद कर दी जाएगी। आम तौर पर किसी को अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने या सजा सुनाए जाने के बाद ही कोई कार्रवाई की जाती है, लेकिन खट्टर सरकार पत्रकारों की पेंशन बंद करने के लिए इतनी उतावली है कि पत्रकार के खिलाफ अगर कोई झूठा मामला भी दर्ज करवा दे तो सरकार तुरंत उसकी पेंशन बंद कर देगी। कुमारी सैलजा ने सवाल किया कि क्या सरकार किसी अधिकारी, कर्मचारी, मंत्री या विधायक के खिलाफ कोई मामला दर्ज होता है तो उसके खिलाफ मामला दर्ज होते ही उसकी सभी सुविधाएं बंद कर देती है या उसे दोषी ठहराए जाने तक इंतजार करती है।

कुमारी सैलजा ने कहा कि अगर मामला दर्ज होते ही कार्यवाही होनी चाहिए तो मुख्यमंत्री खट्टर को राज्यमंत्री संदीप सिंह को तुरंत अपनी कैबिनेट से हटाना चाहिए और उन्हें मंत्री व विधायक के तौर पर मिलने वाली तमाम सुविधाएं भी वापस लेनी चाहिए। क्योंकि उनके खिलाफ मामला दर्ज होने के अलावा यौन उत्पीड़न मामले में चार्जशीट भी कोर्ट में दायर हो चुकी है।

उन्होंने कहा कि  सरकार समाज के हर वर्ग के साथ भेदभाव करती है जबकि दावा यह है कि वह बिना किसी भेदभाव के काम करती है। सरकार की कथनी और करनी में अंतर है जो जनता को साफ दिखाई दे रहा है। सरकार ने पिछले दिनों पत्रकारों की पेंशन बढ़ाई तो पत्रकारों ने उसके लिए सरकार का आभार किया था पर पत्रकारों का क्या पता था कि अधिसूचना जारी कर सरकार ने पत्रकारों के हको पर कैंची चला दी है। सरकार की नई नीति के तहत परिवार में एक ही सदस्य को इस पेंशन का लाभ मिलेगा अगर एक परिवार में पति-पत्नी दोनों पत्रकार है तो आयु के हिसाब से पति को पहले पेंशन मिलनी शुरू हो जाएगी और पत्नी की आयु 60 वर्ष होने पर सरकार उसे पेंशन नहीं देगी।  सरकार का  यह फैसला सीधे सीधे महिलाओं के खिलाफ है, सरकार महिलाओं को उनके मौलिक हक से वंचित कर रही है। उन्होंने कहा कि अगर  एक परिवार में पति-पत्नी दोनों विधायक है, सांसद है, कर्मचारी और अधिकारी है तो क्या सरकार केवल एक को ही पेंशन देती है। जब वहां पर दोनों पेंशन के हकदार है तो पत्रकारों की पेंशन के मामले में ये भेदभाव क्यों।  कुमारी सैलजा ने कहा कि मुख्यमंत्री ने पत्रकारों की पेंशन को महंगाई भत्ते के साथ जोड़ने की घोषणा की थी, लेकिन अधिसूचना में उसका कोई उल्लेख ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना से प्रदेश भर के पत्रकारों में भारी रोष है।  सरकार को अपने फैसले को वापस लेना चाहिए।

पेंशन नियमों में संशोधन को लेकर पत्रकार संगठनों ने सीएम को लिखा पत्र
दूसरी ओर चंडीगढ़ एंड हरियाणा जर्नलिस्ट यूनियन के प्रधान राम सिंह बराड़, हरियाणा पत्रकार संघ के प्रधान केवी पंडित और हरियाणा यूनियन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रधान मनमोहन कथूरिया सहित प्रदेश के अन्य पत्रकार संगठनों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि मीडियाकर्मियों की पेंशन नियमों में संशोधन किया जाए क्योंकि जारी की गई अधिसूचना में कुछ शर्त तर्कसंगत नहीं है। पत्रकारों को अन्य श्रेणी के कर्मचारियों की भांति पेंशन का लाभ दिया जाए। पत्रकारों की मांग पर सरकार द्वारा अभी तक कोई ध्यान ही दिया जा रहा है और न ही सरकार के कान पर जूं रेंग रही है। पत्रकार संगठनों का कहना है कि एक ओर सरकार पत्रकारों को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानती है, साथ  ही यह भी मानती है कि पत्रकार समाज को आइना दिखाते है पर सरकार ने तो पत्रकारों को ही आइना दिखा दिया।  प्रदेश के पत्रकार संगठनों में इस अधिसूचना में शामिल की गई अतर्कसंगत मांगों को लेकर भारी रोष है। उनका कहना है कि मीडियाकर्मियों की पेंशन भी अन्य श्रेणी के पेंशनधारियां के समान राज्य सरकार की सामाजिक सुरक्षा पेंशन के तहत आती है।

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