अशोक कुमार कौशिक

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में हरियाणा के युवाओं के लिए प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण की गारंटी देने वाले हरियाणा सरकार के कानून को रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट के इस फैसले ने बीजेपी और जेजेपी सरकार को बड़ा झटका दिया है. एक तरफ जहां राज्य सरकार इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की योजना बना रही है. वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने भी राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. विपक्षी पार्टियों का राज्य सरकार पर आरोप है कि उन्होंने कोर्ट में इस मामले को मजबूती से नहीं उठाया है.

दरअसल निजी क्षेत्रों में 75 फीसदी आरक्षण की गारंटी का कानून ही जननायक जनता पार्टी का एक ऐसा बड़ा चुनावी वादा था जिसके दम पर हरियाणा के युवाओं ने उन्हें वोट दिए थे.

हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद जेजेपी और बीजेपी ने गठबंधन के साथ सरकार बनाई और सत्ता में आते ही जेजेपी ने अपना चुनावी वादा निभाया. हालांकि अब हाईकोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया है.

ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि हरियाणा में प्राइवेट सेक्टर में 75 फीसदी आरक्षण को हाईकोर्ट ने किस आधार पर रद्द किया है…

कब हुआ था बिल पास

साल 2020 के नवंबर महीने में हरियाणा सरकार ने विधानसभा से प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल पास किया था. विधानसभा से पास होने के बाद इस बिल को 2 मार्च 2021 को राज्यपाल से मंजूरी मिली और यह कानून 15 जनवरी 2022 को लागू हुआ.

इस कानून में क्या था

इस बिल के पास होने के बाद राज्य के किसी भी प्राइवेट कंपनी या फैक्ट्री को 75 फीसदी नौकरी हरियाणा के स्थानीय निवासियों को देना अनिवार्य किया गया था. इसके बाद बचे हुए 25 प्रतिशत में राज्य के बाहर के लोगों को भर्ती किया जा सकता है.

इसके अलावा यह कानून 50 हजार रुपये प्रति माह से कम वेतन वाली नौकरियों पर लागू होगा. यह कानून कंपनियों, ट्रस्ट या फर्म पर लागू होता है जिनमें 10 से ज्यादा कर्मचारी हैं.

कानून के मुताबिक राज्य के सभी कंपनियों को 3 महीने के अंदर सरकार के पोर्टल पर बताना होता है कि उनके यहां 50 हजार तक के वेतन वाले कितने पद हैं और इन पदों पर कितने हरियाणा के लोगों को नौकरी दी गई है.

इस कानून को किसने दी चुनौती

हरियाणा में 75 फीसदी नौकरी में स्थानीय लोगों को आरक्षण मिलने के इस कानून को फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन और हरियाणा के दूसरे एसोसिएशन ने चुनौती दे दी. इन एसोसिएशन ने तर्क दिया कि राज्य में ‘मिट्टी के पुत्र’ की पॉलिसी के तहत प्राइवेट क्षेत्र में आरक्षण दिया जाना नियोक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.

इस कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्राइवेट सेक्टर में मिलने वाली नौकरियों को पूरी तरह से स्किल पर आधारित होना चाहिए. इसके अलावा किसी भी राज्य के कर्मचारियों को भारत के किसी भी हिस्से में काम करने का मौलिक अधिकार है.

याचिकाकर्ताओं का मानना था कि सरकार इस कानून के जरिए नियोक्ताओं को प्राइवेट सेक्टर में स्थानीय लोगों को नियुक्त करने के लिए मजबूर कर रही है और ऐसा करना संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन है.

कानून के अनुसार इन नियमों का पालन नहीं करने वाली कंपनियों पर इस बिल के प्रावधानों के तहत कार्रवाई होगी. जिसमें पेनल्टी लग सकती है और सब्सिडी रद्द की जा सकती है. यह कानून अगले 10 साल तक लागू रहेगा.

हरियाणा सरकार ने क्या तर्क दिया

वहीं दूसरी तरफ जब मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा तो हरियाणा सरकार ने तर्क दिया कि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत आरक्षण देने का अधिकार है.

संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, राज्य सरकारें अपने नागरिकों के उन सभी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण हेतु प्रावधान कर सकती हैं, जिनका राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है.

हाईकोर्ट ने क्या तर्क दिया

इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र में नौकरी के लिए 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को आरक्षण देने वाले कानून को रद्द करते हुए कहा कि राज्य स्थानीय उम्मीदवारों के रोजगार अधिनियम, 2020 अत्यंत खतरनाक है और संविधान के भाग-3 का उल्लंघन है.

संविधान भाग 3 यानी मौलिक अधिकार के उल्लंघन होने पर न्यायालय अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए किसी भी विधि को संविधान का उल्लंघन करने की सीमा तक अवैध घोषित कर सकते हैं. यह समीक्षण शक्ति विधायिका के साथ ही कार्य-पालिका के विरूद्ध भी प्रयोग की जा सकती है.

इससे पहले भी रोक लगा चुकी है हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने सबसे पहले 3 फरवरी 2022 को एक अंतरिम आदेश में इस कानून पर रोक लगाया था. हालांकि रोक लगाने के कुछ समय बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे हटा दिया. इस रोक को हटाने वाले जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि उच्च न्यायालय ने इस कानून पर रोक लगाने के लिए पर्याप्त कारण नहीं दिए हैं. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने 4 हफ्ते के अंदर अंदर एक्ट की वैधता तय करने का भी निर्देश दिया था.

इस कानून से कंपनियों के सामने क्या थी चुनौतियां

स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन विधेयक, 2020 कानून से कंपनियों के सामने बड़ी चुनौती ये आ रही थी कि उन्हें स्किल्ड लेबर की कमी के साथ-साथ सरकारी तंत्र से भी जूझना पड़ रहा था .

बीबीसी की एक रिपोर्ट में मानेसर इंडस्ट्रीज वेल्फेयर एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी कहते हैं, “हरियाणा के लोग बहुत ज्यादा मेहनती होते हैं लेकिन मुख्य समस्या ये आ जाती है कि सरकार ने इन युवाओं के कौशल को विकसित करने में कोई खास प्रयास नहीं किया है. हरियाणा में औद्योगीकरण तो काफी ज्यादा हुआ है लेकिन कंपनियों को राज्य में उतने कुशल लोग नहीं मिलते हैं. यही कारण है कि ज्यादातर कंपनियां बाहर से लोगों को बुलाती है और जो लोग यहां पर कौशल रखते हैं उन्हें काम मिल जाता है.”

उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि हमारे यहां सिलाई के कामगारों की काफी जरूरत होती है, हमारे पास यूपी, बिहार और राजस्थान से कामगार आते हैं. वो अपने काम में माहिर हैं क्योंकि वो कई पीढ़ियों से सिलाई का काम कर रहे हैं.

क्योंकि उनमें स्किल है इसलिए वह हफ्ते भर के अंदर ही काम अच्छे से सीख जाते हैं. लेकिन अगर हमारी कंपनी इस काम के लिए स्थानीय लोगों को लेती है तो उन्हें शुरू से सिखानी पड़ेगी और अगर हम सिलाई सिखा भी दें तो उतना अच्छा काम नहीं कर पाएंगे. हम वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे.

अब आगे क्या

हाईकोर्ट के फैसले को लेकर डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने कहा है कि प्राइवेट नौकरियों में 75% आरक्षण रोजगार कानून और राज्य व उद्योगों को हित में रखकर बनाया गया है. वो हाईकोर्ट के फैसले का अध्धयन करेंगे.

हाईकोर्ट की तरफ से जो भी आपत्तियां उठाई गई है. उस पर वो गंभीरता से समीक्षा करेंगे. वहीं हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ वो सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे.

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