अमृत काल का विज्ञापन, गली-गली, नुक्कड़, समाचार पत्र, टेलीविजन हर जगह प्रचारित
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 80 करोड़ लोग धनतेरस को क्या धन – तरस मनायेंगे  
दिल्ली एनसीआर में  5 करोड़ लोग 24 घंटे बिना सिगरेट पिए प्रदूषित हवा में सांस ले रहे 

फतह सिंह उजाला                                       

पटौदी 9 नवंबर । 1947 में जब अपना देश भारत आजाद हुआ, तो देश की कुल जनसंख्या मात्र 36 करोड़ थी। आज अब 76 सालों के बाद जब देश में अमृत काल का विज्ञापन,  गली-गली, नुक्कड़, समाचार पत्र, टेलीविजन और सोशल मीडिया पर हर जगह प्रचारित हो रहा है । ऐसे में हमारे देश में 80 करोड लोग सरकारी सहायता पर हर महीने अपने जीवन को जीने के लिए मजबूर  हैं । यानि हमने इतना विकास का परचम लहराया है कि भारत को और गरीब बना के रख दिया है। यह तीखी प्रतिक्रिया पटौदी के पूर्व एमएलए स्वर्गीय भूपेंद्र चौधरी की पुत्री कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी के द्वारा व्यक्त की गई है।   

उन्होंने कहा कि आज हर जगह ऐसा पढ़ने में आता है कि अगर आज के दिन आप सोना या चांदी का एक सिक्का खरीदो तो आपकी जिंदगी बदल सकती है जरा आप सोचिए ये 80 करोड देशवासी अगले साल तक भी अपनी जिंदगी नहीं बदल पाएंगे ?  क्योंकि इनके पास सोना और चांदी का एक सिक्का खरीदने का आज भी पैसे नहीं है । मोदी सरकार को चाहिए कि अबकी बार धनतेरस पर 5 किलो अनाज के साथ-साथ इन 80 करोड लोगों को एक-एक चांदी का सिक्का भी दे दे। ताकि भगवान धन्वंतरि अपना आशीर्वाद इन भारतीयों को भी दे सके।

पर्ल चौधरी ने कहा कि ऐसा कहा जाता है पहला सुख निरोगी काया और अमीर लोग इसलिए भी धनतेरस का त्यौहार मनाते हैं। लेकिन आज जब दिल्ली एनसीआर के करीब 5 करोड लोग 24 घंटे बिना सिगरेट पिए प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं तो क्या इस धनतेरस इन लोगों को निरोगी काया का आशीर्वाद दे पाएगा ? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अक्सर हम सोचते हैं कि कोई क्षेत्र अगर जिला बन जाए तो इसका विकास हो जाएगा। कल कमिश्नरी बन जाए , तो शायद विकास और भी ज्यादा बढ़ जाएगा ।

  पर्ल चौधरी ने कहां की इसके साथ ही यह भी हम सभी के लिए सोचना जरूरी है दिल्ली तो देश की राजधानी है , अब यह और क्या बन सकता है ? यहां तो हमारे राष्ट्रपति, हमारे प्रधानमंत्री और तमाम राजनीतिक दलों के महत्वपूर्ण लोग रहते हैं । उद्योग जगत के भी तमाम मजबूत लोग दिल्ली में रहते हैं।  अगर उसके बाद भी प्रदूषण का यह हाल है तो सोचिए कि आज धनतेरस को जब हम निरोगी काया की बात कर रहे होंगे, तो उसमें यह पूजा कितनी खोखली साबित होगी ?

   

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