हालांकि नवम्बर, 2018 में  कुलदीप जैन हुए   जिला  एवं सत्र न्यायाधीश  के  रैंक में   सेवानिवृत, वहीं  ललित बत्रा उसी माह बन गये हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज 

अगस्त, 2019 में हुए  कानूनी संशोधन के पश्चात आयोग के  चेयरमैन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष  की बजाए 3  वर्ष — एडवोकेट हेमंत 

चंडीगढ़ –हरियाणा मानवाधिकार आयोग अर्थात हरियाणा ह्यूमन राइट्स कमीशन जहाँ  पिछले  19 महीनों से नियमित  चेयरमैन (अध्यक्ष) नही था एवं  गत 14 माह  से उसमें एक भी   सदस्य नहीं था, सोमवार 25 नवम्बर को हरियाणा सरकार के गृह विभाग द्वारा जारी एक नोटिफिकेशन मार्फ़त पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस (जज) ललित बत्रा को आयोग का चेयरमैन  जबकि सेवानिवृत जिला एवं सत्र न्यायधीश कुलदीप जैन को आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया. वहीं आयोग के एक अन्य  सदस्य के तौर पर एडवोकेट दीप भाटिया, जो   सितम्बर,2018 से सितम्बर, 2023 तक भी इसी  आयोग में सदस्य रहे थे, उन्हें एक बार पुन: सदस्य नियुक्त किया  गया है. 

इस बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट  के एडवोकेट  हेमंत कुमार  ने एक रोचक जानकारी देते हुए बताया कि आयोग के नव-नियुक्त चेयरमैन ललित बत्रा अप्रैल,1984 में हरियाणा न्यायिक सेवा में नियुक्त होकर सिविल जज कम जुडिशल मजिस्ट्रेट बने थे  (जिस पद को हालांकि तब  सब-जज कहा जाता था) एवं वह जून, 2001 में हरियाणा वरिष्ठ न्यायिक सेवा अर्थात अतिरिक्त जिला एवं सेशंस जज बने  जिसके बाद वह नवम्बर, 2011 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश  प्रोमोट हुए जबकि नवम्बर, 2018 में उन्हें हाई कोर्ट में अतिरिक्त जज बनाया गया एवं आज से 6 महीने पूर्व  मई, 2024 में 62 वर्ष की आयु पूरी करने पर वह हाईकोर्ट जज के पद से सेवानिवृत्त हुए. 

वहीं आयोग के सदस्य बने कुलदीप जैन हालांकि  ललित बत्रा से करीब दो वर्ष पूर्व अगस्त, 1984 में हरियाणा न्यायिक सेवा में नियुक्त होकर सिविल जज कम जुडिशल मजिस्ट्रेट बने थे  एवं वह सितम्बर, 1999 में हरियाणा वरिष्ठ न्यायिक सेवा अर्थात अतिरिक्त जिला एवं सेशंस जज बने थे जिसके करीब दस वर्ष बाद  वह जिला एवं सेशंस न्यायाधीश  प्रोमोट हुए एवं उसी रैंक ,में वह  नवम्बर, 2018 मे 60 वर्ष की आयु पूरी करने पर वह  सेवानिवृत्त हो गये थे. रिटायरमेंट के समय जैन  हरियाणा के लीगल रेमेम्ब्रेंसर (विधि परामर्शी) कम प्रशासनिक सचिव, विधि एवं विधायी विभाग, हरियाणा सरकार के  पद पर कार्यरत थे. 

बहरहाल, हेमंत ने आगे  बताया कि हालांकि मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की मूल धारा 21(2) के   अंतर्गत केवल हाई कोर्ट का रिटायर्ड चीफ जस्टिस (मुख्य न्यायाधीश) ही प्रदेश मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन नियुक्त हो सकता था इस कारण  हरियाणा मानवाधिकार आयोग के पहले  दोनों चेयरमैन विजेंद्र जैन और सतीश मित्तल दोनों हाई कोर्ट के  रिटायर्ड चीफ जस्टिस थे.  बहरहाल, मोदी सरकार द्वारा वर्ष 2019 में संसद मार्फ़त  उपरोक्त  कानूनी धारा में  संशोधन कर  यह प्रावधान कराया  गया  कि राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष न केवल हाई कोर्ट  का रिटायर्ड चीफ जस्टिस  हो सकता है, बल्कि  हाईकोर्ट  का सेवानिवृत जस्टिस (जज)  भी हो सकता है.  इसलिए इस बार आयोग के चेयरमैन के तौर पर हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस ललित बत्रा की नियुक्ति संभव हो पायी  है. जहाँ तक आयोग में न्यायिक पृष्ठभूमि से एक सदस्य की नियुक्ति का प्रावधान है, तो वह या तो हाई कोर्ट का रिटायर्ड जज अथवा   जिला जज भी हो सकता है जिसकी न्यूनतम  सात वर्ष की न्यायिक सेवा हो चुकी हो. आयोग में तीसरा सदस्य वह हो सकता है जिसे मानव अधिकारों सम्बन्धी  मामलों का ज्ञान अथवा उनका व्यावहारिक अनुभव हो.

 भारतीय संसद द्वारा  अधिनियमित   मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 जिसके अंतर्गत ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और सभी प्रदेशो में  राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया जाता है की धारा 22(1) के अनुसार हालांकि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति प्रदेश के राज्यपाल द्वारा  एक चार सदस्यीय कमेटी  की सिफारिशें प्राप्त होने के बाद की जाती है   जिस कमेटी में प्रदेश के मुख्यमंत्री अध्यक्ष होते हैं  जबकि कमेटी के  अन्य तीन सदस्यों में राज्य विधानसभा के स्पीकर, प्रदेश के गृह मंत्री एवं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शामिल होते हैं. अब चूँकि हरियाणा की मौजूदा नायब सैनी सरकार में प्रदेश का गृह विभाग भी  मुख्यमंत्री के पास ही है, अत: हरियाणा में उक्त कमेटी तीन सदस्यीय हो जाती है. वहीं जहाँ आज तक  नेता प्रतिपक्ष के न होने अर्थात कमेटी में उनकी अनुपस्थिति का विषय है, तो हेमंत ने बताया कि धारा 22(2) के स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केवल इस कारण से अविधिमान्य (गैर-कानूनी)  नहीं होगी क्योंकि उपरोक्त कमेटी में कोई रिक्ति है. 

जहां तक राज्य मानवाधिकार आयोग  के अध्यक्ष और सदस्यों की  नियुक्ति के पश्चात कार्यकाल  सम्बन्धी ताज़ा लागू  कानूनी प्रावधानों  का विषय  है, तो हेमंत ने बताया कि  वर्ष  2019 से  संशोधित धारा 24  अनुसार   राज्य मानवाधिकार आयोग  के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल,  जो उससे  पहले  पांच वर्ष हुआ करता था उसे   घटाकर तीन वर्ष अथवा अध्यक्ष/सदस्यों की   70 वर्ष की आयु पूरी होने  करने तक, जो भी पहले हो, तक कर दिया गया.  हालांकि  राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य  70 वर्ष की आयु सीमा से पहले तक  पुनर्नियुक्ति के लिए भी  पात्र हैं,.

इसी कारण आयोग में पहले  सदस्य रह चुके दीप भाटिया को  एक बार पुनः सदस्य बनाया गया है हालांकि उनका कार्यकाल इस बार पांच वर्ष नहीं अपितु  तीन वर्ष ही होगा. वहीं  कार्यकाल समाप्त होने के  पश्चात आयोग का चेयरमैन और सदस्य   राज्य सरकार अथवा भारत सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन (नियुक्ति) के लिए पात्र नहीं होंगे.   

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