देश के विकास को उत्तरोत्तर प्रगति की ओर ले जाने वाली महान नेता इंदिरा जी की उच्चतम कार्यशैली एवं दृढ़ इच्छाशक्ति से एक सशक्त एवं समृद्ध राष्ट्र के निर्माण हेतु लिए गए उनके निर्णय अद्वितीय हैं। उनका संपूर्ण जीवन एक मिसाल है। भारत को इंदिरा गांधी जैसी नीयत, साहस और दूरदर्शिता की जरुरत आज भी है, उनके देश के प्रति समर्पित सेवा भाव एवं प्रेम सदा कांग्रेस विचारधारा के प्रेरणा स्रोत रहेंगे। 31/10/2023 :- एक लौह पुरुष, दूसरी आयरन लेडी। दोनों कांग्रेस अध्यक्ष व भारत रत्न। एक भारत को सूत्र में पिरोता रहा, तो दूसरे ने आक्रमणकारी को दो हिस्सों में अलग कर दिया। 31 अक्टूबर को एक ने आज़ादी के लिए ही जन्म लिया तो दूसरे ने देश के लिए प्राण दिए सरदार वल्लभ भाई पटेल और प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी को कृतज्ञ राष्ट्र की तरफ से मेरा कोटिश: नमन। जब देश लगातार आर्थिक, सामरिक तथा विदेश नीति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर लगातार नीचे खिसक रहा था एसे समय में गुड़िया की छवि लेकर इंदिरा जी भारत गणराज्य की प्रधानमंत्री बनी। उस वक्त ‘सहिष्णुता’ व ‘तटस्थता’ की नीतियों ने विश्व में भारत का महत्व अन्य देशों के लिए कम सा कर दिया था। चीन से मिली करारी हार ने जहां ‘नेहरू’ के प्रताप को आभाहीन कर दिया था वहीं 1965 में पाकिस्तान से मिली जीत को लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद संधि ने प्रभावहीन कर दिया। ऐसे संकट के दौरान में इतिहास को बारीकी से समझ कर प्रियदर्शिनी ने अमेरिका और सोवियत संघ दो शक्तियों के ध्रुवीकरण में ‘तटस्थता’ , ‘निशस्त्रीकरण’ जैसे खोल से विदेश नीति को निकाल कर भारत की दोस्ती रूस से जोड़ी और ‘भारत – रूस – संधि’ की। उस वक्त ‘एशिया – पैसिफिक – संधि’ पर हस्ताक्षर न करके उन्होंने अपना नाम विश्व के मजबूत राजनेताओं में शुमार कर लिया। निरंतर एक शक्तिशाली और अखंड राष्ट्रनिर्माण में तल्लीनता से समर्पित इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छा शक्ति के बलबूते ही भारत को हाशिए पर रखने की सोच रखने वाले अमेरिका को भी खुद के देश में ही इंदिरा का ‘रेड कॉरपेट’ बिछा कर सम्मान करना पड़ा। उनके व्यक्तित्व का एक बड़ा महत्वपूर्ण अपराजित गुण था, उनके फैसलों और नीतियों का राष्ट्र की बहुसंख्या से जुड़ना।शास्त्री जी के आकस्मिक निधन के पश्चात नेता की समस्या उत्पन्न हुई, तो श्रीमती गांधी जी ने प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। बाद में उन्होंने चुनाव में मोरारजी देसाई को हराकर देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल किया। राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में जन्मी इन्दिरा गाँधी वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। आत्म गौरव से भरपूर सशक्त भारत इंदिरा जी का लक्ष्य था। गरीबों, किसानों और वंचितों के लिए चिंता उनके सभी फैसलों में झलकती थी। मैं जब-जब इंदिरा गांधी जी के साहसिक कार्यों एवं निर्णयों के बारे में पढ़ती हूॅं, तब-तब स्तब्ध रह जाती हूॅं। उनके जैसा साहसी प्रधानमंत्री, लोकतांत्रिक भारत को न कभी मिला था, न ही भविष्य में मिलेगा। केरल से देश के पहले महिला थानों की शुरुआत करने वाली इंदिरा गांधी ने अशिक्षा, गरीबी, असमानता आदि को दूर करने के लिए अथक प्रयास किया जिसके तहत आम जनता को आर्थिक सहूलियतें देने के मकसद से उन्होंने 14 निजी बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। ये सच है की आज अगर वो होती तो देश से जातिवाद, धर्मिकवाद, आतंकवाद इन सबसे छुटकारा मिल गया होता। साहस एवं सामर्थ्य का प्रतिनिधित्व करने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री ने भारत में बंगाली शरणार्थी को भारत में आने से रोकने के लिए पाकिस्तान पर हमला करके पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराया और बांग्लादेश के निर्माण में सहयोग दिया। इसके अलावा उनके द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल की चर्चा तो आज तक होती है। देश में राजनीतिक सहनशीलताएं पार कर जाने के कारण उनके द्वारा 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई, नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया और मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लगा दी गई थी। सत्तावादी शासन की यह अवधि 1975 से 1977 तक 21 महीने तक चली और इसकी व्यापक आलोचना हुई। लेकिन उनके कार्यकाल को बैंकों के राष्ट्रीयकरण, हरित क्रांति और महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक सुधारों द्वारा चिह्नित भी किया गया जो उस दौर का भारतीय स्वर्णकाल कहा गया। बीबीसी द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में गांधी को “वुमन ऑफ द मिलेनियम” नामित किया गया था और उन्हें ‘आयरन लेडी’ का नाम भी मिला। उन्होंने मात्र आकाश में सफेद कबूतर उड़ाने से आगे बढ़कर परमाणु परीक्षण, अंतरिक्ष में प्रवेश, मिसाइल तकनीक कार्यक्रम और स्वदेशी रक्षा उत्पादन इकाइयों की स्थापना को आकार दिया। इंदिरा जी जैसी मजबूत इरादो वाली, अपनी गुट निरपेक्षता की नीति, पड़ोसी देशों का भारत के प्रति दृढ़ विश्वास पैदा करना यह सब इंदिरा गांधी जी की मज़बूत विदेश नीति का ही असर था। दुर्भाग्य से आज की मोदी सरकार में इंदिरा जी के कद का कोई मज़बूत नेता नही है। उनके बारे में कवि हरिओम पंवार की ये पक्तियां सटीक बैठती हैं.. वो पर्वत राजा की बेटी ऊंची, हो गयी हिमालय से,जिसने भारत ऊँचा माना सब धर्मों के देवालय से!भूगोल बदलने वाली वो इतिहास बदलकर चली गयी,जिससे हर दुश्मन हार गया अपनों के हाथों वो छली गयी!! इंदिरा गांधी को उन्ही के सिख गार्डों ने 30 गोलियां मारी, जिस बेअंत ने राहुल गांधी को बैडमिंटन दिखाया, उसी ने उन्हें पहली गोली मारी थी। आज उनकी 39वीं पुण्यतिथी पर उन्हें स्मरण करते हुए कहा जा सकता है कि लौह पुरूष ही नहीं, स्त्रियां भी लोहे की हुआ करती हैं। उनका सशक्त नेतृत्व अनंतकाल तक, अनगिनत पीढ़ियों को प्रेरित और प्रभावित करती रहेगी। उनका कथन सही ही है की ‘शहादत कुछ ख़त्म नहीं करती, वो महज एक शुरुआत है….!!’ Post navigation हरियाणा कांग्रेस में हुई बड़ी ज्वाइनिंग……. आजादी का अमृत महोत्सव तथा अमृत कलश यात्रा का समापन समारोह