सच्चे मन से किए कर्म से आत्मा, मस्तिष्क एवं हृदय भी शुद्ध होता है : डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि। बीते युगों में वर्षों तक परमात्मा को प्राप्त करने के लिए कठोर तप करना पड़ता था। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक कुरुक्षेत्र, 3 अक्तूबर : गीता की जन्मस्थली, तीर्थों की संगम स्थली एवं धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के अखंड गीता पीठ शाश्वत सेवाश्रम में चल रही देश के लिए शहीद हुए सैनिकों को समर्पित पितृ मोचनी श्रीमद भागवत कथा के छठे दिन व्यासपीठ से महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने कहा कि कलयुग की भी अनेक खूबियां हैं। कलयुग में परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मन तथा आत्मा को शुद्ध होना चाहिए। कलयुग में तो अल्प भक्ति से भी परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। छठे दिन की कथा प्रारम्भ से पूर्व भारत माता एवं व्यासपीठ का पूजन किया गया। कथा व्यास महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि परमात्मा की भक्ति में समर्पण होना चाहिए। किसी प्रकार का छल नहीं होना चाहिए। उन्होंने कथा में विभिन्न युगों में तप एवं भक्ति के साथ मानसिक पुण्य एवं पाप पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि कलयुग में पाप एवं पुण्य का अर्थ अलग है लेकिन अन्य युगों में तो मानसिक पाप का भी फल मिलता था। कलयुग में अनेकों तरह के मानसिक पाप होते हैं। डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने कहा कि अगर स्वयं के व्यवहार में स्वार्थ तथा भ्रष्टाचार है तो कठिन से कठिन भक्ति का भी कोई फल नहीं मिलता है। उन्होंने कहा की निस्वार्थ मन एवं समर्पण के भाव से किए कर्म से पुण्य की प्राप्ति होती है। मन, आत्मा एवं मस्तिष्क भी शुद्ध होता है। इस मौके पर रमेश चंद मिश्रा, शकुंतला शर्मा, राजेन्द्र भारद्वाज, दिनेश रावत, मदन धीमान, भूपेंद्र शर्मा, अजय शर्मा, प्रेम नारायण शुक्ला एवं यमुना दत्त पांडे इत्यादि भी मौजूद रहे। Post navigation शहीद सैनिकों को समर्पित पितृ मोचनी श्रीमद भागवत कथा का पांचवां दिन पर्यावरण बचाने के लिए सामाजिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने की निरंतर आवश्यकताः प्रो. सोमनाथ