संवैधानिक पॉवर पाने के लिए अब नगर पार्षद चलेंगे संषर्घ की राह पर

प्रदेशभर से पार्षद आज भिवानी में जूटेंगे, प्रशासन में अनदेखी से दुखी पार्षद पहुेंंगे मुख्यमंत्री के पास, संघर्ष की बनेगी रणनीति

ईश्वर धामु

हरियाणा में पंचों के बाद अब नगर पार्षद खुल कर सडक़ों पर आ रहे हैं। नगर पार्षदों में सरकार के प्रति रोष स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पार्षद प्रशासन में काम न होने से दुखी हैं। इसीलिए अब कल 15 सितम्बर को प्रदेशभर से पार्षद भिवानी में इकठे हो रहे हैंं। सभी पार्षद मिल कर अपने हकों के लिए संघर्ष की रूप रेखा तैयार करेंगे और तय रणनीति के तहत अगला कदम उठायेंगे। भाजपा के स्थानीय निकाय प्रकोष्ठ के भिवानी जिला संयोजक हर्षदीप डुडेजा का कहना है कि प्रदेशभर के पार्षद इकठे होकर मुख्यमंत्री से भी मिलने का समय मांगेंगे और पूरा स्थिति से उनको अवगत करवायेंगे।

मिली जानकारी के अनुसार पिछले एक सप्ताह से भिवानी के पार्षद आए दिन बैठकें कर रहे हैं और इस मुद्दे पर विचार कर रहे हैं। नगर पार्षदोंं का कहना है कि वें पांच से दस हजार लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन उनकी सुनावाई करने वाला कोई भी नहीं है। पार्षद से मतदाताओं को उम्मीदें ज्यादा रहती है। लेकिन पार्षद की कोई सुनवाई नहीं होती। अब तो हालात यह है कि नगर परिषद में भी पार्षदों के काम नहीं हो पाते।

एक पार्षद ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वें अपने वार्ड की पुलिया, नालों की सफाई और पीने के पानी की समस्या का समाधान नहीं करवा पा रहे हैं। पार्षदों के पास कोई संवैधानिक पॉवर नहीं है और अधिकारी उनको पहचानने से भी इंकार कर देते हैं। लेकिन दूसरी ओर उनके वार्ड के लोग सुबह ही काम लेकर उनके घर पर आ जाते हैं। इतना ही नहीं मतदाता भी पार्षदों की कोई बात सुनने को तैयार नहीं होते। अब तो एक नया ट्रेंड चल पड़ा है। अब लोग काम के लिए खुद फोन न करके अपनी पत्नियों से फोन करवाने लगे हैं। महिलाएं तो पार्षद की कोई बात सुनने व समझने को तैयार ही नहीं होती। फोन करने वाल महिलाएं यंहा तक कह देती है कि उन्होने उसको वोट देकर गलती की। साथ ही कहती हैं कि अगर शिविर का पानी नहीं रोका गया तो अगली बार उनकी गली में वोट मांगने मत आना। एक पार्षद तो ऐसी बातों से इतना दुखी हो गया है कि उसे ल्रगने लगा है कि पार्षद बन कर उसने बड़ी गलती की है।

नगर परिषद के चेेयरमैन का चुनाव सीधा होने के बाद तो पार्षदों का चेयरमैन पर दबाव भी खत्म हो गया। पहले एक साल बाद दो तिहाई बहुमत से चेयरमैन को हटाए जाने का प्रावधान था। इसके चलते चेयरमैन पाषदों के दबाव में रहता था और पार्षदों के नगर परिषद में काम भी हो जाते थे। परन्तु अब चेयरमैन का सीधा चुनाव होने के बाद तो किसी भी पार्षद के नगर परिषद में काम नहीं हो पा रहे हैं। भिवानी से बाहर के एक पार्षद ने एक रोचक किस्सा सुनाया। उन्होने बताया कि वह पहली बार पार्षद बना है। पूरा दिन वह वार्ड में रहता है। उसके वार्ड के एक घर में छोटा बच्चा बीमार था और बच्चे के पिता को दिल्ली जाना पड़ गया। दोपहर को इस व्यक्ति का पार्षद के पास फोन आता है कि उसके बच्चे के अब दस्त लगने शुरू हो गए हैं तो वो उसके बच्चे को डाक्टर के लेकर चला जाए? इस पार्षद का कहना है कि अब तो मतदाताओं के बच्चों को डाक्टर के पास ले जाने का काम भी पार्षदों का रह गया है। ऐसी बातों से दुखी होकर हरियाणा के पार्षदों ने इकठा होने का निर्णय किया है। पार्षदों का कहना है कि वें चुने हुए जन प्रतिनिधि है पर उनकी निरंतर उपेक्षा हो रही है। जबकि चुनाव के समय वोटों के लिए प्रत्याशी पार्षदों के चक्कर लगाते हैं। पार्षद सरकार से पूछना चाहते हैं कि चुने हुए जन प्रतिनिधि होने के नाते उनको जिला प्रशासन में सम्मान क्यो नहीं मिल पाता? अब पार्षद एक सूर में संवैधानिक पॉवर की मांग करेंगे ताकि छोटे छोटे कामों के लिए उनको विधायक या सांसद के पास न जाना पड़े।

भिवानी में कल 15 सितम्बर को प्रदेशभरके पार्षदों की होने वाली बैठक में तय किया जा सकता है कि अगर उनको पॉवर नहीं मिलती तो क्या वें सामुहिक त्यागपत्र मुख्यमंत्री को दें? अब देखने वाली बात यह रहेगी कि लोकसभा के चुनाव समीप आ गए हैं तो सरकार का इन पार्षदों के प्रति क्या रूख रहेगा? निसंदेह पार्षदों के पास वोट तो हैं ही, जो उनके कहने पर किसी भी दल को जा सकते हैं। ऐसे में इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पार्षद अपने क्षेत्र में चुनाव का मोड बदल सकते हैं। तो क्या पार्षदों को लोकसभा चुनावी समय का लाभ मिलेगा?

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