आश्रम में कढ़ी चावल और मीठे चावल का भोग लगाया गया और प्रसाद रूप में सभी ने आनंद लिया।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

पिहोवा : पिहोवा के गोविंदानंद आश्रम में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के छठे दिन उनकी छठी पर्व मनाया गया। श्री गोविंदानंद आश्रम में जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर को सुंदर झांकियां महिला कीर्तन, मटकियां फोड़ इत्यादि प्रोग्राम किए गए और आज छठी छह दिन बाद मनाई गई।

श्री गोविंदानंद आश्रम की महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने कृष्ण छठी पूजन की विधि और इसकी पौराणिक मान्यता के बारे में जानकारी देते हुए बताया की श्री कृष्ण का जन्म कारगार में हुआ था और उन्हें वासुदेव ने रातों-रात की यशोदा के घर छोड़ दिया था कंस को जब ये बात पता लगती है तो वे पूतना को श्री कृष्ण को मारने के लिए गोकुल यशोदा के पास भेजता है और ये आदेश देता है कि गोकुल में जितने भी 6 दिन के बच्चे हैं उन्हें मार दिया जाए पूतना के गोकुल पहुंचते ही यशोदा बालकृष्ण को छिपा देती हैं श्री कृष्ण को पैदा हुए छह दिन हो गए थे, लेकिन उनकी छठी नहीं हो पाई थी तब तक उनका नामकरण भी नहीं हो पाया था इसके बाद यशोदा ने 364 दिन बाद सप्तमी को छठी पूजन किया और तभी से श्री कृष्ण की छठी मनाई जाने लगी इतना ही नहीं, तभी से बच्चों की भी छठी की परंपरा शुरू हो गई।

महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने कृष्ण छठी पूजन विधि भी बताई।
श्री कृष्ण छठी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद लड्डू गोपाल को पंचामृत से स्नान कराएं। गोपाल सहस्तनाम से स्नान कराऐ। इसके लिए दूध, घी, शहद, शक्कर और गंगाजल से बने पंचामृत का प्रयोग करें। इसके बाद शंख में गंगाजल भरकर लड्डू गोपाल को फिर से स्नान कराएं।

स्नान कराने के बाद भगवान को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं और उनका श्रृंगार करें। इसके बाद लड्डू गोपाल को माखन-मिश्री भोग लगाएं।

भोग लगाने के बाद भगवान का नामकरण करें। माधव, लड्डू गोपाल, ठाकुर जी, कान्हा, कन्हैया, कृष्णा इनमें से जो भी नाम आपको अच्छा लगे वो चुन लें और भगवन को इसी नाम से पुकारें।

इसके बाद भगवान के चरणों में अपने घर की चाबी सौंप दें और भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करें कि वे सदैव आपके परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखें और सबका पालन-पोषण करें।

इसके बाद लड्डू गोपाल की कथा पढ़ें और इस दिन अपने घर में कढ़ी-चावल अवश्य बनाएं।

महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने लड्डू गोपालजी की कथा सुनाई।
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवन श्री कृष्ण के एक परम् भक्त थे जिनका नाम था कुंभनदास। उनका एक बेटा था रघुनंदन। कुंभनदास के पार भगवान श्री कृष्ण का एक चित्र था जिसमें वह बासुंरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा भगवान श्री कृष्ण की पूजा-आराधना में लीन रहा करते थे। वे कभी भी अपने प्रभु को छोड़कर कहीं छोड़कर नहीं जाते थे। एक बार कुंभनदास को वृंदावन से भागवत कथा के लिए बुलावा आया। पहले तो कुंभनदास ने जाने से मना कर दिया परंतु लोगों के आग्रह करने पर वे भागवत में जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्री कृष्ण की पूजा करेंगे और फिर भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे। इस तरह से उनका पूजा का नियम भी नहीं टूटेगा।

भागवत में जाने से पहले कुम्भनदास ने अपने पुत्र को समझाया कि उन्होंने ठाकुर जी के लिए प्रसाद तैयार किया है और वह ठाकुर जी को भोग लगा दे। कुंभनदास के बेटे ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे प्रार्थना की कि आकर भोग लगा लें। रघुनंदन को लगा कि ठाकुर जी आएंगे और अपने हाथों से भोजन ग्रहण करेंगे। रघुनंदन ने कई बार भगवान श्री कृष्ण से आकर खाने के लिए कहा लेकिन भोजन को उसी प्रकार से देखकर वह दुखी हो गया और रोने लगा। उसने रोते – रोते भगवान श्री कृष्ण से आकर भोग लगाने की विनती की। उसकी पुकार सुनकर ठाकुर जी एक बालक के रूप में आए और भोजन करने के लिए बैठ गए।

जब कुम्भदास वृंदावन से भागवत करके लौटे तो उन्होंने अपने पुत्र से प्रसाद के बारे में पूछा। पिता के पूछने पर रघुनंदन ने बताया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया है। कुंभनदास ने सोचा की अभी रघुनंदन नादान है। उसने सारा प्रसाद खा लिया होगा और डांट के डर से झूठ बोल रहा है। कुंभनदास रोज भागवत के लिए जाते और शाम तक सारा प्रसाद खत्म हो जाता था। कुंभनदास को लगा कि अब रघुनंदन उनसे रोज झूठ बोलने लगा है। लेकिन वह ऐसा क्यों कर रहा है यह जानने के लिए कुंभनदास ने एक योजयना बनाई। उन्होंने भोग के लड्डू बनाकर एक थाली में रख दिए और दूर छिपकर देखने लगे। रोज की तरह उस दिन भी रघुनंदन ने ठाकुर जी को आवाज दी और भोग लगाने का आग्रह किया। हर दिन की तरह ही ठाकुर जी एक बालक के भेष में आए और लड्डू खाने लगे। कुंभनदास दूर से इस घटना को देख रहे थे। भगवान को भोग लगाते देख वह तुरंत वहां आए और ठाकुर जी के चरणों में गिर गए। उस समय ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू जाने ही वाला था। लेकिन ठाकुर जी उस समय वहीं पर जमकर रह गए । तभी से लड्डू गोपाल के इस रूप पूजा की जाने लगी। छठी के दिन इस कथा का पाठ करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

आज गोविंदानंद आश्रम में महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज के सानिध्य में कढ़ी चावल और मीठे चावल का भोग लगाया गया और प्रसाद रूप में सभी श्रद्धालुओं को खिलाया गया आश्रम की महिला मंडली से सत्संग किया और मंगल गीत गाए आश्रम में महोत्सव का आलौकिक ही नजारा देखने को मिला।

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