वर्तमान में, 1000 से अधिक केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं मौजूद हैं, जिनमें से अधिकांश भ्रष्टाचार से भरी हुई हैं। वर्तमान योजनाओं में लीकेज का स्तर अत्यधिक उच्च है और ऐसी योजनाओं का कार्यान्वयन भी ख़राब है। बेसिक आय इस ढेर सारे कार्यक्रमों की जगह ले सकता है,  जिससे इससे जुड़ी भ्रष्टता दूर हो सकती है। बेसिक आय  सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों की गरीबी और असुरक्षा को दूर करने में मदद करेगा। यह एक गारंटीकृत आय है, जो विषम परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए एक आधार के रूप में कार्य करती है एवं आर्थिक और वित्तीय सुरक्षा बनाए रखती है।

-प्रियंका सौरभ …………….. रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

बेसिक आय किसी देश के सभी नागरिकों को उनकी आय, संसाधनों या रोजगार की स्थिति की परवाह किए बिना एक निश्चित धनराशि प्रदान करने का एक मॉडल है। बेसिक आय  का उद्देश्य गरीबी को रोकना या कम करना और नागरिकों के बीच समानता बढ़ाना है। आज बेसिक आय की अवधारण को लेकर भिन्न-भिन्न मत दिये जा रहे हैं ऐसे में यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि भारत में यह कितनी व्यावहारिक होगी। लेकिन पहले यह देख लेते हैं कि इस पायलट स्कीम पर कार्य करते हुए मध्य प्रदेश में लोगों के जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? क्या भारत में आय असमानता की चौड़ी होती जा रही खाई को पाट दिया गया है? क्या सबके लिये पीने का स्वच्छ पानी, रहने को घर और खाने को भोजन मिल रहा है? क्या अमीर व गरीब सबके बच्चे एक मानक शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा हैं? यदि इन सभी सवालों का जवाब ‘नहीं’ है तो क्यों न तमाम सामाजिक, आर्थिक मानकों का अध्ययन करते हुए सबके लिये एक ‘बेसिक आय’ की व्यवस्था कर दी जाए।

सभी व्यक्ति लाभार्थी होंगे, इसके माध्यम से गाँवों में लोगों के रहन-सहन के स्तर को सुधारा जा सकता है, उन्हें पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है और बच्चों के पोषण में सुधार भी लाया जा सकती है| एक नियमित बेसिक आय के भुगतान द्वारा भूख और बीमारी से विवेकपूर्ण ढंग से निपटने में मदद मिल सकती है। बेसिक आय, बाल श्रम को कम करने में भी मददगार साबित हो सकता है। इसके ज़रिये उत्पादक कार्यों में वृद्धि करके गाँवों की तस्वीर बदली जा सकती है और यह सतत विकास की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रयास होगा| विदित हो कि बेसिक आय की मदद से सामाजिक विषमता को भी कम किया जा सकता है। यदि एक वाक्य में कहें तो बेसिक आय का यह विचार आय असमानता और इसके दुष्प्रभावों के श्राप से भारत को मुक्त कर सकता।

 वर्तमान में, 1000 से अधिक केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं मौजूद हैं, जिनमें से अधिकांश भ्रष्टाचार से भरी हुई हैं। वर्तमान योजनाओं में लीकेज का स्तर अत्यधिक उच्च है और ऐसी योजनाओं का कार्यान्वयन भी ख़राब है। बेसिक आय  इस ढेर सारे कार्यक्रमों की जगह ले सकता है, जिससे इससे जुड़ी भ्रष्टता दूर हो सकती है। बेसिक आय  सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों की गरीबी और असुरक्षा को दूर करने में मदद करेगा।  (जन-धन, आधार और मोबाइल) बुनियादी फ्रेमवर्क,  बेसिक आय  के कार्यान्वयन को पूरक बना सकता है और अधिक दक्षता और पारदर्शिता ला सकता है। कम वेतन वाले, कम-कुशल काम करने वालों के लिए आज के श्रम बाजार की बढ़ती अनिश्चित प्रकृति में, मजदूरी संबंधी असमानता बढ़ रही है। अत: बेसिक आय  उन श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कदम उठाता है। सामान्य तौर पर, बेसिक आय  स्वास्थ्य, आय और अन्य झटकों के विरुद्ध सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करेगा।

भारत एक विकासशील देश है, जबकि सभी व्यक्तियों के लिये एक निश्चित आय का बोझ कोई बहुत विकसित अर्थव्यवस्था ही उठा सकती है। हम तो बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और आधारभूत ढाँचे का बोझ ही बहुत मुश्किल से उठा पा रहे हैं। ऐसे में बेसिक आय की राह में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ‘बेसिक आय’ का स्तर क्या हो, यानि वह कौन सी राशि होगी जो व्यक्ति की अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर सके?  यूनिवर्सल बेसिक इनकम के साथ प्रमुख चिंता इसके राजकोषीय निहितार्थ हैं। बेसिक आय  योजना को वित्तपोषित करने के लिए बड़ी मात्रा में राजस्व उत्पन्न करना होगा, जिससे करदाताओं पर काफी बोझ पड़ेगा। इस बात की गंभीर चिंता है कि बेसिक आय  श्रम बाजारों को विकृत कर देगा, क्योंकि श्रमिकों को नियमित रूप से प्राप्त होने वाली आसान आय, उन्हें काम करने से हतोत्साहित करेगी। इस नकद हस्तांतरण से श्रम आपूर्ति की मात्रा में कमी आएगी, क्योंकि श्रमिक घरेलू आय को प्रभावित किए बिना अपनी नौकरी छोड़ने का विकल्प चुन सकते हैं।

यह भी डर है कि चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक वर्ग द्वारा इस योजना का दुरुपयोग किया जा सकता है। ऐसा हो सकता है कि सत्तारूढ़ दल मतदाताओं को खुश करने के लिए बेसिक आय  के तहत मूल आय बढ़ा दे, ताकि वह चुनाव जीत सके। इससे सरकारी खजाने पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा और इसलिए योजना का मूल उद्देश्य विफल हो जाएगा। बेसिक आय  को लगभग 78% आबादी को भी लाभ प्रदान करने की आवश्यकता होगी, जो गरीबी वर्ग में नहीं आते हैं। यदि हम अवधारणा की शुद्धता का पालन करते हैं और इसे सार्वभौमिक बनाते हैं, तो भारतीय संदर्भ में प्रत्येक व्यक्ति को मिलने वाली राशि कम होने का बड़ा जोखिम है। इससे कई समूहों का विरोध हो सकता है और गरीबों के लिए समानता और राज्य कल्याण के संबंध में सवाल खड़े हो सकते हैं।

 इस प्रकार की नीति के सफल होने के लिए जनता का समर्थन और सहमति अत्यंत आवश्यक होता है। बेसिक आय का विचार भारत को अपनी जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ उनके जीवन-स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा। लेकिन सबके लिये एक बेसिक आय तब तक सम्भव नहीं है, जब तक कि वर्तमान में सभी योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सब्सिडी को खत्म न कर दिया जाए। अतः सभी भारतवासियों के लिये एक बेसिक आय की व्यवस्था करने के बजाए सामाजिक-आर्थिक जनगणना की मदद से समाज के सर्वाधिक वंचित तबके के लिये एक निश्चित आय की व्यवस्था करना कहीं ज़्यादा प्रभावी और व्यावहारिक होगा।

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