-कमलेश भारतीय

अभी अभी लौटा हूं चार दिन हरिद्वार, ऋषिकेश , कैम्पटी फाॅल और सहस्त्रारा से ! पूरे चार दिन रहा उत्तराखंड के इन नगरों में । बरसों पहले शो मैन राजकपूर ने फिल्म बनाई थी -राम तेरी गंगा मैली । वह एक व्यावसायिक फिल्म थी लेकिन बात बिल्कुल सच थी, खरी थी । यानी एक फिल्ममेकर भी गंगा के मैली होने पर चिंतित था और यह नायिका की दुखद कथा के लिये प्रतीकात्मक भी था । आखिर इतने वर्षों से गंगा को शुद्ध करने के अभियान का क्या हुआ ? क्या अपने पाप उतारने के नाम पर हम गंगा को मैली करते रहेंगे और कब तक ? हरिद्वार में गंगाजल आज भी भर भर कर लेकर जा रहे हैं लोग ! यह हमारी आस्था का , विश्वास का आधार है । हालांकि जल उतना शुद्ध नहीं यह सब जानते हैं और देखते हैं !

ऋषिकेश और कैम्पटी फाॅल ही नहीं बल्कि सहस्त्रारा जाकर दिल धक् से रह गया । मन से आवाज आई कि हम अपनी नदियों को न केवल मैला करने में जुटे हैं बल्कि इनका बाजारीकरण भी करने मे लगे हैं ! बरसों बाद जाने पर इन तीनों जगहों को तो मैं जैसे पहचान ही न पाया । ऋषिकेश के लक्ष्मण झूले तक , कैम्पटी फाॅल के प्राकृतिक रूप को और सहस्त्रधारा के उस निर्मल जल को देखने को तरस गया । बल्कि ऐसे लगा जैसे ये जगहें अब बाजारीकरण की भेंट चढ़ चुकी हैं । कहीं नैसर्गिक सौंदर्य नहीं दिखा । सब जगह बाजार ही बाजार बल्कि सहस्त्रधारा के किनारे एक विज्ञापन पढ़कर हैरान रह गया -भारत फैमिली तालाब ! अरे ! दिल बैठ गया यह विज्ञापन पढ़कर! क्या सहस्त्रधारा अब बाजारीकरण की भेंट चढ़ कर सिर्फ एक तालाब बन कर रह गयी ? लगा जैसे ये नदियां या जल स्त्रोत कहीं खो गये हैं ! अब तो सिर्फ मैले पानी की धाराएं ही दिख रही हैं । दूर तक दुकानें ही दुकानें ! गाड़ियां ही गाड़ियां! ऋषिकेश से थोड़ा बाहर एक सीक्रेट फाॅल बताया गया वहां पानी पूरी तरह स्वच्छ और निर्मल था और जैसे जैसे इस सीक्रेट फाॅल का सीक्रेट दुनिया को पता चलेगा वैसे वैसे यहां भी बाजार पांव फैला लेगा ! अभी तो सिर्फ एक ही दुकान है जिससे चाय पकौड़े मिल सकते हैं ! शायद दो चार साल बाद जब फिर जाने का अवसर मिले तो यह सीक्रेट फाॅल भी उतना ही मैला मिले ! नदियों में कूड़ा कर्कट डालना आम बात है ! या इन पहाड़ों पर हम स्वच्छता का कोई ध्यान नहीं रखते । जिसका जहां मन आया है चिप्स के लिफाफे फेंक कर आगे बढ़ जाता है । प्लास्टिक के लिफाफे यहां वहां हवा में उड़ते दिखाई देते हैं ! जैसे हम यह इन नदियों से कोई बदला लेने जाते हैं ! यह सिलसिला कब थमेगा ? चिंता की बात है ।

आज सुबह सुबह खूब बारिश हुई । कहूं कि हमारी तीनों सुबह बारिश से ही शुरू हुई । इस जोरदार बारिश में ही एक अनजान होटल मिल गया जिसे अमृतसर के सज्जन चलाते हैं और एक छोटी सी लड़की सर्व करती रही दौड़ दौड़कर ! लजीज आलू के परांठे ! मज़ा आ गया । बाहर मूसलाधार बारिश और अंदर लजीज गर्मागर्म परांठे ! पत्नी नीलम ने कहा उस सज्जन से कि पूरी यात्रा में पहली बार ऐसा नाश्ता मिला ! बाद में नवोदित प्रवाह के संपादक रजनीश त्रिवेदी के घर पहुंचे । वे छाता लेकर घर के बाहर खड़े इंतजार कर रहे थे जैसे बाहें फैलाये ! हम आधा घंटा ही बैठ पाये और मैंने ‘नयी प्रेम कहानी’ और उन्होंने नवोदित प्रवाह का वार्षिक अंक भेंट किया जिसे लौटते समय काफी पढ़ गया । इसमें सुभाष पंत की कहानी -पहाड़ की सुबह पढ़कर आनंद आ गया । उन्होंने इसका जिक्र भी किया था कल और आज ही पढ़ने को मिल भी गयी ! आधे घंटे बाद सहस्त्रधारा की ओर बढ़े ! सारिका के साथ जुड़े रहे सुरेश उनियाल भी दिल्ली से अपने घर देहरादून आये हुए थे लेकिन फोन पर ही बातचीत कर निकल लिया !

खैर ! दिल ढूंढता है फिर वही
फुर्सत के रात दिन

गाते गुनगुनाते सीधे सहस्त्रधारा से चले और हिसार लौट आये, रास्ते में सहारनपुर के आमों का स्वाद लेने का मोह न छोड़ पाये !
फिर कभी की उम्मीद में !
पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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