पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर विशेष

सुरेश गोयल धूप वाला

पृथ्वी पर समय-समय पर महान विभूतियां अवतरित होती है जो अपने महान कार्यों व विलक्ष्ण बुद्धि के कारण हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में अमर हो जाते हैं। समाज उनका हमेशा ऋणी रहता है ऐसे ही एक महान विभूति भारत भूमि पर उत्पन्न हुए जिनका भारतीय समाज सदैव ऋणी रहेगा और वे थे प. श्याम प्रसाद मुखर्जी. उन्होंने देश की एकता के लिए अपना जीवन न्यौछावर दिया वे मात्र 33 वर्ष की आयु में कलकता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने व उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया।

डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी महान शिक्षाविद्, महान चिंतक और भारतीय जनसंघ के संस्थान सदस्य थे। उनको एक प्रखर राष्ट्रवादी, कट्टर राष्ट्र भक्त, एक जुझारू एवं कर्मठ राजनेता तथा एकमहान दाशर्निक के रूप में भारत वर्ष के लाखों-करोड़ों लोगों के मन में उनकी गहरी छवि अंकित है। वे भारतवासियों के मन में हमेश एक पथ प्रदर्शक एवं प्रेरणा पुंज के रूप में हमेशा याद किये जाते रहेगें। उन्होंने 6 जुलाई 19०1 को कलकत्ता के अत्न्त प्रतिष्ठित परिवार में जन्म लिया। 1926 में वे इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। उन्होंने अल्प आयु में ही विद्ययापन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महान सेनानियों के साथ कदमताल करते हुए स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। उन्होने धर्म के आधार पर भारत के बंटवारे का पुरजोर विरोध किया। देश की आजादी के बाद कांगे्रस पार्टी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति उन्हें कभी रास नहीं आई। वे चाहते थे कि पूरे राष्ट्र समाज का समान रूप से विकास हो।

उन्होंने अपनी सक्रिय राजनीति की शुरूआत कुछ विशेष आदर्शों और सिद्धांतों के साथ की। उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में महात्मा गांधी, सरदार पटेल व गुरु गोवलकर विशेष रूप से प्रेरणा स्त्रोत रहे। वे गांधी जी व सरदार पटेल के विशेष अनुरोध पर देश के विभाजन के बाद देश की पहली राष्ट्रीय सरकार में उद्योगमन्त्री बने। उन्होंने राष्ट्र हितों की सर्वोच्च मान्यताओं को न मानने के कारण मन्त्रीमण्डल से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने प्रतिपक्ष के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निर्वहन को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। साष्ट्र स्वंय सेवक संघ के सरसंचालक गुरू जी की प्रेरणा से राष्ट्रवादी अलों को मिलाकर एक नई पार्टी बनाई। जो विरोधी पक्ष के रूप मेें सबसे बड़ी पार्टी भी। अक्तूबर 1951 में भारतीय जनतासंघ की स्थापना हुई जिसके प्रथम अध्यक्ष डॉ. मुखर्जी बने।

डॉ. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय वहां का मुख्यमंत्री वजीरेआजम कहलाता था। वहां का झण्डा अलग था। उन्होंने इसके खिलाफ जोरदार नारा बुलन्द किया कि एक देश में दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगें। उन्होंने कश्मीर में धारा 370 का डटकर विरोघ किया। वे 1953 में बिना परमिट लिये कश्मीर की सीमा में घुस गये। इस पर उन्हें कश्मीर सरकार ने गिरफ्तार कर नजरबन्द कर लिया। 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।

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