भारत सारथी/ कौशिक

राजपूत और गुर्जर समाज के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. आशंका ये है कि कहीं ये तनातनी पश्चिमी यूपी में न फैल जाए. छोटी सी बात को लेकर शुरू हुआ विवाद अब सड़कों पर पहुंच गया है.

ताजा विवाद से बीजेपी टेंशन में है और समाजवादी पार्टी आपदा में अवसर तलाश रही है. सहारनपुर में तो गुर्जर और राजपूत बिरादरी के लोग एक-दूसरे को देख लेने की धमकी दे रहे हैं.

लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के नेता इस विवाद को ठंडा करने में लगे हैं, क्योंकि राजपूत और गुर्जर जाति के लोग पिछले कुछ चुनावों से बीजेपी के परंपरागत वोटर बन गए हैं. अब अगर ये दोनों समाज के लोग आपस में लड़ने लगे तो मिशन 2024 गड़बड़ा सकता है. कई अलग-अलग कारणों से जाट बिरादरी के लोग पहले से ही पार्टी से नाराज चल रहे हैं, जबकि इसी बिरादरी के भूपेंद्र चौधरी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान मोदी सरकार में मंत्री हैं. जाटों का झुकाव राष्ट्रीय लोकदल की तरफ बढ़ता जा रहा है.

सहारनपुर में सोमवार को गुर्जर गौरव यात्रा निकाली गई. पूरे जिले में धारा 144 लागू है. जिला प्रशासन ने इस यात्रा पर रोक लगा दी थी. इलाके के डीएम और एसएसपी अपने अफसरों संग बैरिकेडिंग लगाकर तैनात थे, लेकिन हजारों की संख्या में गुर्जर बिरादरी के लोग बाहर निकले. फिर पुलिस से कहासुनी के बीच यात्रा शुरू हुई. पूरे 25 किलोमीटर तक यात्रा निकली, जबकि करणी क्षत्रिय सेना ने इस यात्रा का विरोध किया था.

गुर्जरों की यात्रा निकलने के बाद करणी क्षत्रिय सेना के लोग विरोध में धरने पर बैठ गए. पुलिस ने समझा बुझाकर धरना खत्म कराया. गुर्जरों की यात्रा को लेकर कुछ इलाकों में कुछ समय के लिए इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई थी. इलाके में अब भी तनाव बना हुआ है.

सम्राट मिहिर भोज को लेकर ठाकुर-गुर्जर में विवाद

राजपूत और गुर्जरों के बीच विवाद नया नहीं है. सम्राट मिहिर भोज ठाकुर थे या फिर गुर्जर? इसी बात को लेकर दोनों समाजों में तनातनी हो जाती है. सहारनपुर का विवाद भी वैसा ही है. कुछ महीने पहले भी नोएडा के दादरी इलाके में इसी बात पर लंबे समय तक तनाव बना रहा. पड़ोसी राज्यों राजस्थान और हरियाणा तक झगड़े की आंच पहुंच गई थी. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दादरी में सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण करना था. ठाकुर समाज के लोग कहने लगे कि मिहिरभोज हमारे हैं तो गुर्जरों का अपना दावा था. उस समय गुर्जरों का पलड़ा भारी रहा.

रह-रह कर अलग-अलग इलाको में ये विवाद शुरू हो जाता है. अब बीजेपी के लिए परेशानी की बात ये है कि झगड़े से अपना दामन कैसे बचाए? न तो खुलकर किसी का समर्थन कर सकते हैं और न ही किसी का विरोध. कैराना से बीजेपी के सासंद प्रदीप चौधरी के बेटे अंशुमन चौधरी गुर्जर गौरव यात्रा में शामिल हुए. मेरठ के सरधना से समाजवादी पार्टी के विधायक अतुल प्रधान भी इस यात्रा में शामिल होने निकले थे, पर पुलिस ने उन्हें रोक लिया.

गुर्जरों की नाराजगी मोल नहीं ले सकती बीजेपी

गुर्जर और जाट पश्चिमी यूपी के दो बड़े वोट बैंक हैं. दोनों ही OBC कोटे से हैं. वोटिंग पैटर्न के हिसाब से आमतौर पर दोनों ही बिरादरी को एक-दूसरे का विरोधी माना जाता रहा है, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों के बाद दोनों बीजेपी के साथ जुट गए. इसीलिए 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की सभी सीटें बीजेपी को मिल गईं. 2017 के विधानसभा चुनाव का भी यही हाल रहा, लेकिन किसान आंदोलन के बाद जाट वोटरों का एक बड़ा तबका आरएलडी के साथ जुड़ गया. महिला पहलवान और ब्रजभूषण शरण सिंह मामले के बाद जाट फिर से बीजेपी के खिलाफ होने लगे हैं. ऐसे में पार्टी गुर्जर वोटरों के नाराज होने का खतरा मोल नहीं ले सकती है.

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