घोटाले और चुनाव का संगम ?

कमलेश भारतीय

क्या घोटाले और चुनावों का कोई संगम है ? क्या राजनीति और घोटाले एक दूसरे के बिना अधूरे हैं ? राजनीति में सदाचार की बजाय भ्रष्टाचार ही मुख्य मुद्दा बन गया है ? राजनीति की गंगा को मैली करने में घोटालों का कितना योगदान है ? बहुत सारे सवाल सामने हैं ।

याद आता है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनसभाओं में कहते थे कि टू जी , थ्री जी और जीजाजी यानी राबर्ट बाड्रा पर ये आरोप लगाये जाते थे । अब खूब चर्चित और ट्रांस्फर्ज का रिकार्ड बनाने वाले आईएएस अशोक खेमका ने एक बार फिर राबर्ट बाड्रा की कम्पनी स्काईलाइट और डीएलएफ के बीच हुए जमीन के सौदे की म्यूटेशन रद्द करने के मुद्दे को लेकर भाजपा पर सवाल उठाते सोशल मीडिया पर पूछा है कि क्या घोटाले चुनावी मुद्दे तक सीमित रहेंगे ? जो घोटाले सन् 2014 में मुख्य चुनावी मुद्दे बने , उनके आधार पर नौ साल बाद किसे सजा दी गयी ? आयोग पर करोड़ों रुपये खर्च किये गये और नतीजा क्या ? खेमका आगे कहते हैं कि जिन्हें कटघरे में होना चाहिए था , वही हाकिम बने हुए हैं ! इस मामले की जांच एसआईटी कर रही है और खेमका की आशंका है कि कहीं पुलिस जांच का भी हश्र पहली जांच जैसा हो ? दूसरी ओर राबर्ट बाड्रा ने हाईकोर्ट में दिये गये पुलिस के शपथपत्र के बाद कहा कि मै इसमें आने की किरण देख रहा हूँ ! मेरे बिजनेस में कुछ गलत लैन दैन नहीं हुआ । उम्मीद है कि ऐसा किसी के साथ नहीं होगा । पुलिस ने शपथपत्र में कहा है कि यह डील सही है । अशोक खेमका ही वे अधिकारी थे जिन्होंने यह डील रद्द की थी । इसी डील को दिल्ली के चुनाव में अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी खूब भुनाया था और वे कागज तक लहराते दिखाई देते थे । इस डील से जुड़े नेताओं ने अब राहत की सांस ली है ।

इसी तरह संचार विभाग के घोटाले में नाम आने पर पूर्व संचार मंत्री और हिमाचल के दिग्गज नेता पंडित सुखराम का राजनीतिक करियर खत्म कर दिया था । वे एक समय वीरभद्र सिंह के सामने मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे । अब हिमाचल के मंडी में उनके बेटों की राजनीति भी फीकी पड़ती जा रही है ।

असल में सन् 2014 में भाजपा आईटी प्रकोष्ठ ने घोटालों की ऐसी धूम मचाई कि ऐसे लगा जैसे घोटालों के सिवाय सरकार ने कुछ किया ही नहीं । हजारों हजारों करोड़ों के घोटाले ! इससे जनता कांग्रेस से दूर होती चली गयी ।

अब कांग्रेस वही हथियार भाजपा के खिलाफ चलाने जा रही है जिसका नाम है अडाणी का कारोबार ! संसद इसी मुद्दे को लेकर ठप्प रही और राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के पीछे भी कोर्ट से ज्यादा दोष अडाणी प्रकरण को बताया जा रहा है ! हकीकत क्या है ? ऊपर वाला जाने या कोर्ट जाने ! हमें क्या !

खेमका ने सवाल उठाये तो ध्यान आया कि इतने बड़े बड़े जो नौकरियों के लेन देन के घोटाले और भ्रष्टाचार सामने आये , क्या वे भी विधानसभा चुनाव में मुद्दे बनेंगे या भुला दिये जायेंगे ?

अब यह तो आने वाले विधानसभा चुनाव ही बतायेंगे लेकिन राजेश खन्ना की रोटी फिल्म का गाना बहुत याद आ रहा है :

ये जो पब्लिक है सब जानती है
अन्दर क्या है , बाहर क्या है
यह सब कुछ पहचानती है
ये जो पब्लिक है ,,,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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