पूजा गुप्ता

भारत के पुरुष प्रधान देश में विकास के साथ-साथ तकनीकी विकास भी बहुत हो रहा है। अब बारी नारी प्रधान देश बनाने की। आर्थिक, राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं के हाथ में पहले किसी प्रकार की कोई शक्ति प्राप्त नहीं थी उन्हें केवल घर तक सीमित कर दिया जाता था, लेकिन आज महिलायें तकनीकी विकास में और आजादी की सभी लड़ाईयों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है। यदि हम किसी प्रकार की स्वतंत्रता की बात करते हैं तो महिलाओं को मिलने वाले स्वतंत्रता के अधिकार बहुत कम है, लेकिन यदि किसी प्रकार की कोई गुणगान करने की बात है उसमें महिलायें पिछड़ी हुई है।

परिवारिक प्रजातंत्र की मुखिया महिलायें होती हैं महिलाओं के बिना एक भारत श्रेष्ठ भारत की हम कल्पना नहीं कर सकते हैं। यदि एक पारिवारिक प्रजातंत्र की बात आती है तो हम एक महिला के बगैर इसकी चर्चा नहीं कर सकते हैं। गृहस्थी का ताना-बाना बनाकर सभी का ख्याल रखने वाली महिलायें आज भी प्रजातंत्र को संभालती है। सभी के खान-पान से लेकर सेहत का ख्याल रखने तक हर छोटे-बड़े गुस्से के पी जाने से लेकर उसके बलिदान भूल जाने तक महिलायें घर के बागडोर को को सहजता से संभाल लेती है। चाहे राजनीतिक प्रजातंत्र हो आज चारदीवारी से बाहर निकलकर सभी महिलायें अपनी एक पहचान बना रही हैं।

यदि हम उदाहरण के रूप में देखें तो हमारी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ले सकते हैं आज केंद्र के सबसे शीर्ष पद पर आसीन द्रौपदी मुर्मू भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है। वहीं संसद में महिलाओं का प्रतिशत भी बीते कुछ सालों में 12% के करीब आया है और मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है और अब यह 65% के पार पहुंच गया है यह आंकड़ा राजनीतिक गतिविधियों में महिलाओं को भागीदारी को प्रदर्शित करता है। आज के कारोबारी जगत में प्रजातंत्र में महिलायें काफी हिस्सा ले रही हैं राजनीति के बाहर भी महिलायें अपना व्यापार में भी योगदान दे रही हैं।

खेल जगत में महिलाओं अपना परचम लहराती दिखाई दे रही है 2022 में संपन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में 104 महिला एथलीट शामिल हुई थी। महिला एथलीटों ने शानदार प्रदर्शन के साथ कई पदक अपने नाम किए। क्रिकेट में मिताली राज से लेकर आज की कप्तानी संभाल रही हरमन प्रीत कौर, उपकप्तान स्मृति मंधाना खेल जगत में नाम कमा रही हैं।

आज लेखन के क्षेत्र में भी महिलायें बहुत आगे हैं। लेखन में सदियों से महिलाओं ने अपना जो योगदान दिया है वह हमारे वैदिक काल में लोपामुद्रा गार्गी और मैत्री से होता हुआ आज के आधुनिक युग में वर्ल्ड बुकर पुरस्कार तक पहुंच गया है। साहित्य जगत में सर्वश्रेष्ठ ज्ञानपीठ पुरस्कार पानी वाली कवयित्री अनामिका, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका सुधा मूर्ति भी बखूबी भारत को एक मजबूत प्रजातंत्र बनाने में योगदान दे रही है।

हमारे सैन्य शक्ति को संभालती हुई युद्ध के मैदान में भी महिलायें रानी लक्ष्मीबाई की तरह युद्धाभ्यास में पारंगत हुई है। अब भारतीय सेना में परमानेंट कमिशन का हक महिलाओं को दे दिया है। वह बात अलग है कि यह हक उन्हें बहुत देर से मिला पर गनीमत है कि मिल ही गया।

धार्मिक कार्यों में संलग्न महिलायें भी सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर धार्मिक कार्यों में लिप्त हो गई है। उन्होंने अपने ज्ञान से आध्यात्मिक क्षेत्र में स्थान पाकर लोगों को जागरूक किया है। जीवन के मूल्यों को समझना और समझाना उनमें संतुलन बनाना आजकल की मानसिक दबाव को झेल रही पीढ़ी को सही दिशा दिखाने में महिलायें आगे बढ़ रही हैं। ब्रह्माकुमारी शिवानी, जया किशोरी आदि इस सूची में शामिल है।

मनोरंजन की दुनियाँ में भी महिलायें अपना परचम स्थापित करती हुई नजर आ रही है। महिला कलाकार मनोरंजन की दुनियाँ में अपनी काबिलियत के बल पर अपना नाम कमाया है। जैसे सुष्मिता सेन, विश्व सुंदरी ऐश्वर्या राय, हॉलीवुड तक पहुंचने वाली प्रियंका चोपड़ा, आशा भोंसले यह सभी महिलायें जिनके नाम शामिल हैं। इसी प्रकार 2022 में सरगम कौशल में अनूठी मिसाल पेश की मिस वर्ल्ड का खिताब जीतकर।

महिलायें दिखावे की जन-प्रतिनिधि न बनेगी अब, बल्कि अपनी सक्रिय सहभागिता से पुरुष प्रतिनिधियों से आगे निकल रही है । भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, प्रगतिशीलता के युग में स्त्री को दूसरी श्रेणी का नागरिक माना जाता है, जबकि ढाई हजार वर्ष पहले ही भगवान महावीर ने स्त्री और पुरुष को समानता की तुला पर आरोहित कर दिया। हमारी संसद में स्त्री के लिए समान पारिश्रमिक के विधेयक स्वतंत्रता के चालीस वर्ष बाद पारित किए गये थे, जबकि स्त्री की रचनात्मक ऊर्जा का उपयोग व्यापक स्तर पर करने की जरूरत है। जिन समुदायों में आज भी स्त्री को हीन और पुरुष को प्रधान माना जाता है और इसी मान्यता के आधार पर परिवार, समाज एवं राष्ट्र के विकास में स्त्री एवं पुरुष की समान हिस्सेदारी नहीं होती, वे समुदाय स्वयं ही अपूर्णता का अनुभव करते होंगे।

भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है। आनंदीबाई गोपालराव जोशी (1865-1887) पहली भारतीय महिला चिकित्सक थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिमी चिकित्सा में दो साल की डिग्री के साथ स्नातक होने वाली पहली महिला चिकित्सक रही है। सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी। हरियाणा की संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह किया। बॉक्सर एमसी मैरी कॉम एक जाना-पहचाना नाम है। हाल के वर्षों में, हमने कई महिलाओं को भारत में शीर्ष पदों पर और बड़े संस्थानों का प्रबंधन करते हुए भी देखा है।

कोविड-19 के दौरान कोरोना योद्धाओं के रूप में महिलाओं डाक्टरों, नर्सो, आशा वर्करों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व समाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की प्रवाह न करते हुए मरीजों को सेवाएं दी है। कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। भारत बायोटेक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन कोवैक्सिन विकसित करने में उनकी शानदार भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। महिमा दतला, एमडी, बायोलॉजिकल ई, ने 12-18 वर्ष की आयु के लोगों को दी जाने वाली कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया। निस्संदेह, महिलायें और लड़कियां समाज में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव की अग्रदूत हैं। स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से महिलाएं न केवल खुद को सशक्त बना रही हैं बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था की मजबुती में को भी योगदान दे रही है।

सरकार के निरन्तर लगातार आर्थिक सहयोग से आत्मनिर्भर भारत के संकल्प में उनकी भागीदारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। पिछले 6-7 वर्षों में महिला स्वयं सहायता समूहों का अभियान और तेज हुआ है। आज देश भर में 70 लाख स्वयं सहायता समूह हैं। महिलाओं के पराक्रम को समझने की जरूरत है, जो हमें महिमा की अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी। आइए हम उन्हें आगे बढ़ने और फलने-फूलने में मदद करें। महिलाओं के सर्वांगीण सशक्तिकरण के लिए ‘अमृत काल’ इन्हें समर्पित हो!

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