कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम के अलावा कुछ नहीं मंजूर
क्या केन्द्र सरकार फैसले से राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली पुरानी पेंशन योजना की तरह आकर्षक हो जाएगी ?
राजस्थान ने राइट टू हेल्थ लागू करके भाजपा को डाल दिया मुश्किल में

अशोक कुमार कौशिक 

हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकारों की ओर से ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली, उत्तर प्रदेश, गुजरात समेत देश के अलग-अलग राज्यों से ओल्ड पेंशन स्कीम की लगातार उठ रही मांग के बीच केंद्र सरकार ने नेशनल पेंशन स्कीम की समीक्षा के लिए वित्त सचिव की अध्यक्षता में जो कमेटी बनाई है, इसके परिणाम क्या होंगे? कमेटी क्या रिपोर्ट देगी? कब तक देगी? इसका फिलहाल तो पता नहीं लेकिन सरकार की इस घोषणा के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ जानकार इसे सिर्फ छलावा बता रहे हैं तो कुछ मानकर चल रहे हैं कि केंद्र सरकार कर्मचारियों के हित में कुछ न कुछ नया करेगी। उधर कांग्रेस का राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल का लागू किया जाना भाजपा के लिए नई सिरदर्द बन रहा है।

क्योंकि ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग लगातार बनी हुई है. क्या केंद्र सरकार पर बढ़ा दवाब? कर्मचारियों का विरोध लगातार चल रहा है। बताया यह भी जा रहा है कि सरकार अब दबाव महसूस करने लगी है।

केंद्र सरकार ने न्यू पेंशन स्कीम को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। वित्त मंत्री मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में वित्त विधेयक 2023 को प्रस्तुत करते हुए कहा कि न्यू पेंशन स्कीम में सुधार के लिए वित्त सचिव की अध्यक्षता में समिति गठित की जाएगी। ये समिति राजकोषीय पहलू को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों के हितों का ख्याल रखेगी। वित्त मंत्री ने लोकसभा में ये कहा कि एनपीएस को लेकर नयी व्यवस्था बनाई जाएगी, जिसे केन्द्र और राज्य सरकार दोनों अपना सकें. वित्त मंत्री मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को पुरानी पेंशन योजना की तरह आकर्षक बनाने की बात कही गई है।

अभी पुरानी पेंशन योजना किन राज्यों में लागू है

राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना को बदलने का अपना फैसला केंद्र सरकार को सुना दिया है। इन सभी राज्यों की सरकार ने केंद्र सरकार से एनपीएस के तहत जमा निधि राशि को लौटाने का अनुरोध भी केन्द्र सरकार को भेजा था. देश में नई पेंशन स्कीम को एक जनवरी 2004 में लागू किया गया था।

वहीं केंद्र ने कुछ दिन पहले लोकसभा में ये ऐलान किया था कि 1 जनवरी 2004 के बाद भर्ती हुए केन्द्र सरकार कर्मचारियों के मामले में ओपीएस बहाली करने की किसी भी मांग पर विचार नहीं किया जाएगा। सभी राज्य सरकारों को कड़ी आपत्तियों के साथ चेतावनी पत्र भी भेजा था। वहीं नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी भी कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को दोबारा शुरू करने पर चिंता जता चुके हैं।

पीएफआरडीए (पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल को छोड़कर 26 राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएस को अधिसूचित और लागू किया है।

एनपीएस के दायरे से कौन है बाहर

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली और अटल पेंशन योजना के प्रबंधन के तहत 4 मार्च, 2023 तक खर्च हुई कुल संपत्ति 8.81 लाख करोड़ रुपए थी। एनपीएस को 1 जनवरी 2004 को या उसके बाद केंद्र सरकार में शामिल होने वाले सशस्त्र बलों के कर्मचारियों को छोड़कर सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किया गया है. अधिकांश राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने भी अपने नए कर्मचारियों के लिए एनपीएस को अधिसूचित कर दिया है।

क्या है पुरानी पेंशन योजना

2004 से पहले तक कर्मचारियों के रिटायरमेंट पर वेतन की आधी राशि पेंशन के तौर पर दी जाती थी। ये नियम पुरानी पेंशन योजना के तहत ही लागू होते थे. इस योजना में रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने के बाद उसके परिवार को भी पेंशन की राशि मिलती थी। इसके अलावा हर 6 महीने बाद बढ़ने वाले DA का भी प्रावधान भी इस योजना के तहत था।

क्या है नई पेंशन योजना

साल 2004 में केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना की शुरुआत की। इस योजना में कर्मचारियों को मिलने वाला पेंशन उनके योगदान के आधार पर मिलता था। इसे ऐसे समझिए कि कर्मचारी का बेसिक वेतन और महंगाई भत्ते 10 फीसदी हिस्सा काट कर पेंशन फंड में इन्वेस्ट किया जाता था।

इस योजना को सुरक्षित नहीं माना जाता है , क्योंकि ये योजना पूरी तरह से शेयर मार्केट के उतार चढ़ाव पर आधारित है‌। नियम के मुताबिक नई पेंशन योजना के तहत पेंशन हासिल करने वालों को नई पेंशन योजना का 40 फीसदी निवेश करना होता है।

न्यू वर्सेज ओल्ड पेंशन स्कीम का गुणा-गणित

पुरानी और नई पेंशन दोनों के कुछ फायदे और नुकसान भी हैं। पुरानी पेंशन स्कीम के तहत रकम का भुगतान सरकार के खजाने से होता है। वहीं, पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारियों के वेतन से कोई पैसा कटने का प्रावधान नहीं है।रिटायरमेंट के समय पुरानी पेंशन के वेतन की आधी राशि कर्मचारियों को पेंशन के रूप में दी जाती है।

क्योंकि पुरानी स्कीम में पेंशन का निर्धारण सरकारी कर्मचारी की आखिरी बेसिक सैलरी और महंगाई दर के आंकड़ों के मुताबिक किया जाता है। जबकि नई पेंशन योजना पूरी तरह से शेयर बाजार पर आधारित है। इसलिए इसमें तय पेंशन की कोई गारंटी नहीं है। इस योजना में बाजार की चाल के मुताबिक भुगतान किया जाता है।

दोनों पेंशन के बीच का अंतर डिटेल में समझिए

ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती थी। वहीं न्यू पेंशन स्कीम में कर्मचारी के वेतन से बेसिक सैलरी+DA का 10 फीसदी कटता है।

ओल्ड पेंशन स्कीम का भुगतान सरकार की ट्रेजरी करती थी, इसलिए ये योजना पूरी तरह से सुरक्षित पेंशन योजना मानी जाती थी । न्यू पेंशन योजना शेयर बाजार आधारित है। यानी शेयर बाजार का उतार -चढ़ाव इसमें नफा-नुकसान तय करता है।

ओल्ड पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय अंतिम बेसिक सैलरी का 50 प्रतिशत तक निश्चित पेंशन के रूप में मिलता था।‌वहीं न्यू पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय निश्चित पेंशन की कोई गारंटी ही नहीं है।

इस अंतर को ऐसे समझिए कि अगर अभी 80 हजार रुपए सैलरी पाने वाला कोई टीचर रिटायर होता है तो ओल्ड पेंशन के हिसाब से उसे 30 से 40 हजार रुपए की पेंशन मिलती थी। वहीं एनपीएस के मुताबिक उस शिक्षक को पेंशन फंड में किए गए अंशदान का शेयर मार्केट में मूल्य के आधार पर मासिक पेंशन तय होगी।

ओल्ड पेंशन स्कीम में 6 महीने के बाद मिलने वाला महंगाई भत्ता लगता है. न्यू पेंशन स्कीम ऐसा कोई नियम नहीं है।

नई पेंशन योजना की शुरुआत कौन सी सरकार ने की थी

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में नई पेंशन योजना को मंजूरी दी गई थी। उस दौरान यूपीए सरकार ने कहा था कि हर साल 5 लाख 76 हजार करोड़ रुपए केवल पेंशन के रूप में राज्यों और केंद्र को भुगतान करना पड़ रहा है.

सरकार ने ये बताया था कि पंजाब पेंशन पर हर साल 34 प्रतिशत खर्च कर रहा है। वहीं हिमाचल प्रदेश अपने कुल राजस्व का 80 प्रतिशत और बिहार 60 प्रतिशत खर्च कर रहा है। सरकार ने ये तर्क दिया था कि अगर राज्य के खर्च और कर्ज के ब्याज को जोड़ दिया जाए तो राज्यों के पास कुछ नहीं बचेगा।

नयी पेंशन योजना पर होने वाले विवाद की जड़ क्या है

विवाद की वजह नयी पेंशन योजना का शेयर मार्केट पर आधारित होना है। कर्मचारियों का ये तर्क है कि इसमें पेंशन पूरी तरह से निवेश के रिटर्न पर निर्भर करती है। यानी अगर पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न अच्छा रहा तो प्रोविडेंट फंड और पेंशन की पुरानी स्कीम के मुकाबले कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय अच्छी धनराशि भी मिल सकती है , लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न बेहतर ही होगा।

जानकारों का पुरानी पेंशन योजना को लेकर क्या रुख है

पिछले साल एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट लिखी थी , जिसके मुताबिक, पुरानी पेंशन योजना आने वाले समय में इकोनॉमी के लिए घातक साबित हो सकती है। रिपोर्ट में ये बताया गया था कि गरीब जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में सालाना पेंशन देनदारी तीन लाख करोड़ रुपए अंदाजन है।

झारखंड में यह 217 फीसदी, राजस्थान में 190 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 207 फीसदी है। रिपोर्ट में ये सलाह दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित समिति ऐसे खर्चों को राज्य की जीडीपी या राज्य के कर संग्रह के एक फीसदी तक सीमित कर दे।

जानकारों का ये कहना था कि ये राज्य पहले ही कर्ज में डूबे हुए हैं। ऐसे में यह योजना कई तरह की भयानक मुसीबत पैदा कर सकती है , साथ ही सरकार पर बड़ा वित्तीय बोझ बढ़ेगा।

एनके सिंह ने पुरानी पेंशन योजना को देश की अर्थव्यवस्था के लिए अन्यायपूर्ण बताया था। एनके सिंह केंद्रीय वित्त आयोग के चेयरमैन हैं। उन्होंने योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने इस साल जनवरी के महीने में ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर कहा था कि कुछ राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू कर दिया है। ये उन राज्यों के वित्तीय दिवालियापन की रेसिपी है। मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा था कि इस कदम को आगे बढ़ाने वालों के लिए बड़ा फायदा यह है कि दिवालियापन 10 साल बाद आएगा।

ओल्ड पेंशन स्कीम से सरकारी खजाने पर बढ़ेगा वित्तीय बोझ?

केंद्र सरकार का अब तक यही मानना रहा है कि ओल्ड पेंशन स्कीम से सरकार पर बहुत ज्यादा वित्तीय बोझ पड़ेगा। यानी इससे सरकारी खजाने पर ज्यादा बोझ पड़ेगा। रिजर्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने से राजकोषीय संसाधनों पर पड़ने वाला दबाव बढ़ जाएगा और राज्यों की सेविंग पर नेगेटिव प्रभाव पड़ेगा।

बीजेपी का पुरानी पेंशन योजना को लेकर क्या रुख रहा है

पिछले साल संसद में कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू किए जाने को लेकर बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी एक बयान दिया था। इसमें उन्होंने कहा था कि भले ही आज उन राज्यों को दिक्कत न हो रही हो ,लेकिन साल 2034 में इन राज्यों के हालात श्रीलंका जैसे हो जायेंगे। राज्य सरकारों के पास अपना खर्च चलाने के लिए पैसे नहीं रहेंगे और कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं रहेंगे।

हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस की वापसी में ओल्ड पेंशन स्कीम का बड़ा योगदान माना और बताया जा रहा है। साल 2022 के यूपी विधान सभा चुनाव में ओल्ड पेंशन स्कीम का असर बैलेट वोट पर देखा गया था। इस चुनाव में पोस्टल बैलट में कुल 4.42 लाख वोट पड़े थे। इसमें 51.5 % वोट सपा गठबंधन, 33.3 % वोट भाजपा गठबंधन और 11.1 % वोट बसपा को मिले थे। चुनाव से पूर्व सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पुरानी पेंशन बहाल करने की घोषणा कर रखी थी।

माना गया था कि बैलेट वोट में सपा की विजय के पीछे ओल्ड पेंशन स्कीम वापसी की घोषणा मुख्य कारण रही। राजस्थान चुनाव में दिखेगा असर? गुजरात चुनाव में भी ओल्ड पेंशन स्कीम की वापसी की धमक महसूस की गई थी। राज्य कर्मचारी तब भी एनपीएस के विरोध में थे और अब भी वे विरोध कर रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो गुजरात के अफसर बहुत जल्दी पड़ोसी राज्य राजस्थान का दौरा करने वाले हैं। वे यह पता करना चाहते हैं कि सरकार इसे कैसे लागू कर रही है। खबरें यह भी आ रही हैं कि भाजपा के पदाधिकारी भी ओल्ड पेंशन स्कीम के बारे में शीर्ष नेतृत्व को लगातार फीडबैक दे रहे हैं। जिस तरह से कर्मचारियों का विरोध सामने आ रहा है। आशंका यह जताई जा रही है कि इसका नकारात्मक असर किसी न किसी रूप में अगले साल प्रस्तावित लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है और पार्टी ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती।

ओपीएस के बारे में क्या सोचती है भाजपा? कर्नाटक के बाद जिन तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में इस साल चुनाव तय हैं, उनमें एमपी को छोड़ दो राज्यों की सरकारों ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की घोषणा कर रखी है। रही-सही कसर राजस्थान ने राइट टू हेल्थ लागू करके पूरी कर दी है। इस स्कीम को राजस्थान के आमजन हाथों-हाथ ले रहे हैं।

भाजपा हर हाल में राजस्थान, छत्तीसगढ़ जीतने की योजना पर काम कर रही है। एमपी में वापसी को लेकर भी वह आश्वस्त नहीं है क्योंकि आसपास के दोनों राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर रखी है। आशंका इस बात की है कि कहीं हिमाचल प्रदेश की कहानी यहां न दोहरा दी जाए। भारतीय जनता पार्टी और उसके पदाधिकारी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते।

क्योंकि अगले ही साल लोक सभा चुनाव भी है। इन चुनावों में किसी भी तरह की गड़बड़ी का मतलब लोकसभा चुनावों पर असर पड़ सकता है। इन हालात में कोई बड़ी बात नहीं कि केंद्र सरकार की यह कमेटी इन तीनों राज्यों के चुनाव के पहले कोई ऐसी सिफारिश कर दे जिसमें ओल्ड पेंशन स्कीम का नाम न लिया जाए लेकिन किसी और रूप में उसे लागू कर दे। ओल्ड पेंशन स्कीम का नाम लेने से बचने के पीछे एक कारण यह भी है कि केंद्र सरकार लगातार इसका विरोध करती रही है।

हालांकि, जानकार यह कहने से नहीं चूकते कि इसी सरकार ने किसानों के लिए बने कानून लंबे विरोध की वजह से शांति से वापस ले लिए थे। क्योंकि एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान इस समय भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। अगर ये तीनों राज्य जीत जाते हैं तो कांग्रेस की सरकार केवल हिमाचल प्रदेश में बचेगी। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा जल्दी से जल्दी अपने इस नारे को साकार करना चाहती है।

मौका नहीं चूकना चाहेगी भाजपा! यह मौका चूकने का मतलब यह होगा कि भाजपा को लंबा इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि इन तीनों ही राज्यों में चुनाव के समय फिलहाल कांग्रेस-भाजपा ही आमने-सामने रहने वाले हैं। यहां क्षेत्रीय या किसी और राष्ट्रीय दल का प्रभाव नहीं के बराबर है। उधर, प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष कहते हैं कि सरकार की ओर से गठित यह कमेटी कर्मचारियों के साथ छलावा है। हमें केवल पुरानी पेंशन मंजूर है। जब तक नहीं मिलेगी, हरियाणा व यूपी समेत देश के अन्य हिस्सों के राज्य कर्मचारी आंदोलन जारी रखेंगे। वे कहते हैं कि कर्मचारियों को नेशनल पेंशन स्कीम का नाम भी नहीं पसंद है। सरकार को जो मर्जी हो, उसमें संशोधन करे। हमें तो केवल और केवल पुरानी पेंशन ही चाहिए।

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