·        प्रदेश पर कुल लोन और देनादारियां मिलाकर 4 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज, श्वेत पत्र जारी करे सरकार- हुड्डा

·        लोन की विकास दर प्रदेश की आर्थिक विकास दर से कहीं ज्यादा- हुड्डा

·        सरकार द्वारा पेश किया गया प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा भ्रामक, जिलावार ब्यौरा जुटाए सरकार- हुड्डा

चंडीगढ़, 3 अप्रैल: बजट और कर्ज को लेकर सरकार जानबूझकर गोलमोल और भ्रामक आंकड़े पेश कर रही है ताकि जनता को असली स्थिति का पता ना चल पाए। यह कहना है पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का। हुड्डा ने आज पत्रकार वार्ता में आंकड़ों के जरिए सरकार के दावों को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि खुद सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों में बड़ा विरोधाभास देखने को मिलता है। 

उदाहरण के तौर पर 2020-21 में सरकार ने 1,55,645 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट पेश किया। बाद में इसे संशोधित करके 1,53,384 करोड़ कर दिया गया। वास्तविक बजट को और घटकर 1,35,909 करोड़ कर दिया गया। इसी तरह 2022-23 में अनुमानित बजट 1,77,235 करोड़ था, जो संशोधित होकर 1,64,807 करोड़ रह गया। 

लोन की बात की जाए तो 2020-21 में सरकार ने बताया कि प्रदेश पर 2,27,697 करोड़ रुपये का कर्ज है। जबकि सीएजी रिपोर्ट में 2,79,967 करोड़ कर्ज बताया गया और आरबीआई के मुताबिक यह कर्ज 2,62,331 करोड़ था। इसी तरह 2022-23 में सरकार ने प्रदेशभर 2,43,701 करोड़ रुपए का कर्ज दिखाया जबकि आरबीआई के मुताबिक यह कर्ज 2,87,266 करोड़ था। यानी कि सरकारी आंकड़ों में ही 44,513 करोड़ का अंतर देखने को मिला। इसी तरह जब सीएजी की रिपोर्ट आएगी तो उसमें और अंतर देखने को मिल सकता है। ऐसे में यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पर लोन के भिन्न-भिन्न आंकड़े पेश करने का आरोप लगाते हैं। जबकि सरकार जानबूझकर खुद भिन्न-भिन्न आंकड़ों के फेर में उलझी हुई नजर आती है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि आज भी अपनी बात पर कायम हैं। प्रदेश पर आंतरिक कर्ज और तमाम दिनदारियां मिलाकर 4 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्जा है। क्योंकि सरकार ने खुद 2023-24 के बजट में बताया कि प्रदेश पर 2,85,885 करोड़ का कर्ज है। सीएजी की रिपोर्ट में 36,809 करोड़ रुपए (पब्लिक अकाउंड डिपोजिट, स्माल सेविंग्स, मार्च 2022 तक) बताई गई जोकि हर साल 3000 से 4000 करोड बढ़ जाती है। इसलिए जो बढ़कर 31 मार्च 2024 तक करीब 44,000 करोड़ हो जाएगी।

इसी तरह हरियाणा सरकार के विभिन्न विभागों को 40,193 करोड़ रुपए डिस्कॉम्स को बिजली बिल और अनपेड सब्सिडी का देना है। यह देश में तमाम राज्यों से ज्यादा देनदारी है। स्टेट पब्लिक एंटरप्राइजेज पर 47,211 करोड़ रुपए का कर्ज है। यानी हरियाणा पर तमाम तरह की देनदारियों को मिलाकर कुल 4,23,229 करोड़ रुपए लोन बनता है।

इसलिए कांग्रेस बार-बार सरकार से श्वेत पत्र की मांग कर रही है। इसमें 31 मार्च 2023 तक प्रदेश पर कुल आंतरिक कर्ज, पब्लिक अकाउंट डिपॉजिट (स्मॉल सेविंग्स), पब्लिक एंटरप्राइजेज द्वारा लिया गया कर्ज, एडिशनल लायबिलिटीज (सरकार द्वारा सभी सर्विस प्रोवाइडर्स और सप्लायर्स को देय) का जिक्र हो। 

प्रदेश पर कर्ज के आंकड़े इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि 2014-15 से लेकर 2022-23 तक राज्य पर कर्ज का बोझ 4 गुना तक बढ़ गया है। जबकि इस दौरान एसजीडीपी में सिर्फ 2.1 गुना की ही बढ़ोतरी हुई है। यानी लोन की विकास दर प्रदेश की आर्थिक विकास दर से कहीं ज्यादा है। 

प्रदेश का राजकोषीय घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। 2013-14 में यह एसजीडीपी का 2.07% था जो 2022-23 में बढ़कर 3.29% हो गया। वास्तविक खर्च में यह बढ़कर 3.35% तक हो सकता है। इसी तरह कर्ज और जीएसडीपी का अनुपात भी चिंताजनक है। 2013-14 में जो 15.1% था, वह 2022-23 तक बढ़कर 25.78% हो गया। अगर संशोधित राज्य कर्ज, पब्लिक अकाउंट डिपॉजिट(स्माल सेविंग्स) और स्टेट गारंटीड लोन भी जोड़ दिया जाए तो यह बढ़कर 32.47% हो जाता है।

खुद सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सरकार के पास दैनिक खर्च चलाने लायक भी बजट नहीं है। क्योंकि 2023-24 के बजट से पता चलता है कि सरकार के पास कुल 1,09,122 करोड़ रुपए कि आय है। जबकि खर्च ₹1,26,071 करोड़ रुपये है। यानी 16,949 करोड़ रुपए का रिवेन्यू डिफिसिट है। आंतरिक कर्ज के भुगतान पर होने वाला खर्च भी लगातार बढ़ता जा रहा है। 2023-24 में सरकार द्वारा 64,840 करोड़ रुपए का लेना अनुमानित है। जबकि पहले से लिए गए कर्ज और उसके ब्याज के भुगतान पर 56,470 करोड़ रुपए (मूल- 35,220 करोड़ + ब्याज- 21,250 करोड़) खर्च होना है। यानी सरकार के पास कुल लोन में से खर्च के लिए महज 8,370 करोड़ रुपए ही बचते हैं।

बजट में सरकार ने पूंजीगत आय के आंकड़े भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए हैं। उदहारण के तौर पर 2019-20 में पूंजीगत आय 1778 करोड़ रुपये दिखाई थी, जबकि सरकार को सिर्फ 54 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए। इसी तरह 2020-21 में सरकार ने अनुमानित आय 3750 करोड़ रुपये दिखाई लेकिन सरकार को सिर्फ 63 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए। 2021-22 में अनुमानित आय 5000 करोड़ रुपये दिखाई लेकिन सरकार को सिर्फ 67.5 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए। सरकार ने 2022-23 में 5394 और 2023-24 में 5200 करोड़ रुपये की अनुमानित पूंजीगत आय दिखाई है। लेकिन पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मुश्किल से 50-60 करोड़ ही होगी। इससे स्पष्ट है कि सरकार के पास पूंजीगत विकास के लिए कोई पैसा नहीं है।

मुख्यमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि सरकार 57,879 करोड रुपए जोकि कुल बजट का 31.5% है, उसे पूंजीगत संपत्ति निर्माण पर खर्च करेगी। जबकि सरकार के ही मुताबिक लोन के भुगतान में 35,220 करोड़ और लोन और एडवांसिस के भुगतान में 4,198 करोड़ रुपए खर्च हो जाएंगे। यानी सरकार के पास सिर्फ 18,460 करोड़ रुपया ही पूंजीगत संपत्ति निर्माण के लिए बचेगा। जोकि बजट का महज 10% है। ऐसे में 31.5% का दावा सिर्फ हवाहवाई साबित होता है।

जनता को बरगलाने के लिए सरकार हर बार बजट के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है, जो बाद में संशोधित और वास्तविक बजट में घट जाता है। उदाहरण के तौर पर 2022-23 में सरकार ने 1,77,256 करोड रुपए का अनुमानित बजट पेश किया, जिसे बाद में संशोधित करके 1,64,807 करोड कर दिया गया। वास्तविक आंकड़े आते-आते यह और कम हो जाएगा। लेकिन सरकार हर बार लोन के आंकड़ों को कमतर दिखाने की कोशिश करती है। 2022-23 में सरकार ने आंतरिक कर्ज 2,43,779 करोड़ रुपए दिखाया था, जो संशोधित बजट में बढ़कर 2,56,265 करोड रुपए हो गया यानी इसमें 12,486 करोड रुपए की बढ़ोतरी हो गई। इस प्रकार बजट 24,932 करोड़ रुपये ज्यादा दिखाया गया, जो कि 14 प्रतिशत है।

मौजूदा सरकार द्वारा हर बार लगभग 15-18% इन्फ्लेटेड बजट पेश किया जाता है। 2015-16 में पेश किया गया बजट वास्तविक बजट अनुमानित बजट का 85% था। 2016-17 का वास्तविक बजट अनुमानित का सिर्फ 83%, 2017-18 का सिर्फ 82%, 2018-19 का 86%, 2019-20 का 83%, 2020-21 का 81.4% और 2021-22 का 86.63% ही था।

राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में बताया कि 2022-23 में जीएसटी संग्रह में 26.53 प्रतिशत और एक्साइज में 22.47 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इसके विपरीत बजट में टैक्स से आय को संशोधित करके 82,653 करोड़ से घटाकर 75,714 करोड़ कर दिया गया। ऐसे में यह समझ से परे है कि राज्य की आय में बढ़ोत्तरी हो रही है तो जीएसडीपी के अनुपात में कर संग्रह कैसे कम हो रहा है? जो कर संग्रह 2020-21 में जीएसडीपी का 8.1 प्रतिशत था, वह 2022-23 में घटकर 7.6 प्रतिशत कैसे रह गया? ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार के कर संग्रह में हेराफेरी हो रही है या सरकार द्वारा दिए गए जीडीपी के आकड़ों में गड़बड़ है।

हुड्डा ने बताया कि सरकार ने शिक्षा पर 20,340 करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया है जो कि जीडीपी का महज 2% है। जबकि नई शिक्षा नीति 6% खर्च करने की सिफारिश करती है। ऐसे में सरकार द्वारा 11 नए मेडिकल कॉलेज खोलने का ऐलान सिर्फ कागजी नजर आता है। इसी तरह सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं पर 9,647 करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया है जोकि बजट का सिर्फ 5.2% है। जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में साल 2020 तक ही स्वास्थ्य सेवाओं पर 8% खर्च की सिफारिश की गई थी।

कृषि क्षेत्र की बात की जाए तो सरकार ने इसपर 7342 करोड़ रुपए खर्चने का ऐलान किया है। यह कुल बजट का सिर्फ 3.9% है जबकि हरियाणा की 60% आबादी कृषि पर निर्भर है। इतनी बड़ी आबादी के लिए 4% से भी कम खर्च करना उसके साथ अन्याय है।

प्रति व्यक्ति आय को लेकर सरकार ने हवा हवाई दावे किए हैं। क्योंकि सरकार ने प्रति व्यक्ति आय 2,96,685 रुपये बताई है। इस हिसाब से प्रत्येक परिवार की सालाना आय 14,83,425 रुपए बनती है। प्रदेश के 30 लाख ऐसे परिवार हैं, जो सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर करते हैं। एनएसएसओ की रिपोर्ट बताती है कि किसान परिवारों की कुल आय 22,841 रुपये महीना यानी 2,75,000 रुपये सालाना से ज्यादा नहीं है। वहीं दूसरी तरफ सरकार दावा करती है कि प्रदेश में 30 लाख परिवार (जिनकी आय 2.50 लाख से कम है) आयुषमान योजना के लाभार्थी हैं। ऐसे में 2,96,685 रुपये प्रति व्यक्ति आय का दावा धरातल पर सही नहीं बैठता। अगर सरकार वास्तविक आय का आंकड़ा जुटाना चाहती है तो उसे जिलावार प्रति व्यक्ति आय का ब्यौरा जुटाना चाहिए।

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