कमलेश भारतीय

शायद सुपर स्टार राजेश खन्ना की आखिरी सफलतम फिल्म अवतार थी । इसमें संतान द्वारा अशक्त पिता को घर से निकल जाने के लिये मजबूर होना पड़ा और एक नौकर सचिन ने सहारा दिया । बाद में अवतार के दिन फिरे । इसी तरह सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की फिल्म बागवान भी खूब पसंद की गयी और यह भी वृद्धावस्था पर ही केंद्रित रही । इसमें अपने समय की स्वप्न सुंदरी व मथुरा से सांसद हेमा मालिनी की भी उसी तरह जबरदस्त भूमिका रही जैसी अवतार में शबाना आजमी की ! दोनों फिल्में हमारे ही समाज का आइना हैं , यह कहने में कोई संकोच नहीं !

ऐसा इसलिये कहना पड़ा क्योंकि हरियाणा के चरखी दादरी में एक वृद्ध दम्पति ने आत्महत्या कर ली । यह नोट लिखकर कि हमें तीन दिन पुरानी खट्टी दही और बासी रोटियां खाने को दी जा रही थीं । पहले छोटे बेटे के पास रहते थे लेकिन उसने घर से निकाल दिया तो बड़े बेटे के पास रहने आ गये । कुछ समय तक तो उनसे अच्छा व्यवहार किया गया लेकिन फिर दो दिन को बासी रोटी और तीन दिन पुरानी खट्टी दही दी जाने लगी । यह मीठा जहर हम कब तक खाते ? इससे अच्छा एक ही बार जहर खा लें और हमने सल्फास की गोलियां खा लीं । गोलियां खाते ही पुलिस को 112 नम्बर पर फोन भी कर दिया और सुसाइड नोट भी अपने हाथों थे दिया ! लेकिन अस्पताल में इन्हें मृत घोषित कर दिया गया ! पिता ने यह भी सच लिखा कि मेरे बेटे के पास तीस करोड़ रुपये की सम्पत्ति है । हमारा एक पोता आईएएस है तो दूसरा आईपीएस ! फिर भी हमें देने के लिये दो रोटी भी नहीं इनके पास ! दो बेटों , पुत्रवधू और भतीजे से परेशान होकर यह कदम उठाया है ! जितने जुल्म इन चारों ने हम पर किये हैं , उतने जुल्म कोई भी संतान अपने माता पिता पर नहीं कर सकती ! सरकार इन्हें दंड दे , तभी हमारी आत्मा को शांति मिलेगी ! इन सबके खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है !

इस तरह चरखी दादरी का यह भयावह कांड मदर्स डे और फादर्स डे की पोल खोलने के लिये काफी है । तभी तो लोग सोशल मीडिया पर पूछते हैं कि यदि इतना ही प्यार आता है अपने माता पिता पर फिर वृद्धाश्रमों में किनके मां बाप हैं ? वृद्धावस्था पर अनेक लोककथायें भी हैं । एक छोटी सी कथा है कि अपने मां बाप को छोटी सी टोकरी में बिठा कर और अपने बेटे को कस्सी थमा कर एक आदमी जंगल में ले गया । एक बड़ा सा गड्ढा खोदकर उसमें मां बाप समेत टोकरी रख दी और ऊपर से कस्सी से मिट्टी भरने लगा । तब छोटे से बालक ने कहा कि पिता जी ! वह टोकरी तो निकल लीजिए ! पिता ने पूछा -टोकरी का क्या करना है ? बेटे ने कहा कि आखिर आपको भी तो एक दिन जंगल में छोड़ने आऊंगा तब टोकरी काम आयेगी ! ये सच्चाई सुनते ही पिता ने मां बाप को निकाला और घर वापिस ले आया लेकिन यह घोर कलयुग है । अब यह सिर्फ कहानी में रह गयी सुखद अंत की बात ! अब कोई वापिस नहीं लाता बल्कि समय से पहले खुद ही आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं मां बाप !

यह हमारे नये समाज की झांकी है । प्रसिद्ध लेखक भीष्म साहनी की कहानी चीफ की दावत भी इसी का खूबसूरत उदाहरण है । इसमें चीफ को रात्रिभोज के लिये आमंत्रित करते हैं ताकि प्रमोशन हो सके । चिंता सताती है कि बूढ़ी मां को कहां छिपायें ! आखिर स्टोर में छिपा देते हैं । सब कुछ ठीक से निपट जाता है लेकिन ऐन बाॅस की विदाई के समय बूढ़ी मां प्रकट हो जाती है और उससे बात करने लगते हैं बाॅस ! मां के क्रोशिये में रूचि दिखाते हैं और वही मां बाॅस को प्रभावित करती है ! इस तरह बूढ़ों को अनदेखा न करो ! क्या पता वही आपके काम आ जायें ! मैंने भी ऐसी कहानी लिखी है-दरवाजा कौन खोलेगा ? जो मां बाप बच्चों के लिये अपने दरवाजे खोलकर रखते है , वही बच्चे अपनी बारी आने पर उनके लिये अपने दरवाजे बंद कर देते हैं । बस इसीलिये चरखी दादरी के वृद्ध मां बाप ने यह आत्महत्या जैसा कदम उठाया !

काश ! यह आखरी घटना हो । काश ! फिर कोई ऐसी खबर पढ़ने को न मिले ! यही दुआ है !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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