-कमलेश भारतीय

मेरे पिता विष्णु प्रभाकर के लेखक बनने में हिसार का ही सबसे बड़ा योगदान है । वे हिसार की ही देन हैं । बेशक यह उनका जन्मस्थान नहीं था लेकिन लेखक के रूप में यहीं जन्म हुआ । इसलिये हिसार हमारे परिवार को बहुत अपना सा लगता है । यह कहना है प्रसिद्ध लेखक विष्णु प्रभाकर के बेटे अतुल प्रभाकर का । वे आजकल नोएडा रहते हैं और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान चला रहे हैं । इसके अतिरिक्त सन्निधि की ओर से गोष्ठियां भी आयोजित करते हैं प्रतिमाह । मुझे भी एक बार इसमें कथा पाठ के लिये आमंत्रित किया ।

-जन्म कहां ?
-दिल्ली ।

-शिक्षा कितनी ?
-एम एस सी गणित तक ।

-कोई जाॅब ?
-शुरू में दो तीन साल मंसूरी के एक स्कूल में अध्यापन किया लेकिन फिर अपना ही बिजनेस । अब पिछले लगभग बारह साल फ्रीलांसर लेखन और पापा की रचनाओं का संकलन ।

-बचपन की क्या याद है पिता के बारे में ?
-हमारा परिवार संयुक्त परिवार था । एकसाथ कम से कम तीस से ऊपर लोग रहते थे । इनके बाकी भाई तो कोई न कोई नियमित काम करते थे लेकिन हमें यह समझ नहीं आता आता था कि हमारे पिता जी क्या काम करते हैं ! बाकी बच्चों की तरह हमें ये समय भी नहीं दे पाते थे ।

-फिर कब समझ आया ?
-धीरे धीरे ! जब स्कूल में अध्यापक हमारे पिता जी के बारे में जानकारी लेते । समाज में इनके महत्त्व का पता लगने लगा । फिर हमारी सोच में बदलाव हुआ ।

-विष्णु प्रभाकर जी से क्या संस्कार लिये ?
-समय के बहुत पाबंद थे । हद दर्जे तक ईमानदार । सत्य के साथ डटे रहते थे । सादा जीवन ।

-जब राष्ट्रपति के यहां आपके साथ प्रवेश नहीं करने दिया गया था । तब की याद क्या है ?
-इनको पद्म विभूषण प्रदान किया गया था -सन् 2004 में । सन् 2005 को छब्बीस जनवरी को आमंत्रित किये गये चाय के लिये राष्ट्रपति आवास पर । लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने कहा कि कार्ड पर श्री व श्रीमती को निमंत्रण है , बेटे को नहीं । इन्होंने कहा कि यदि बेटे को नहीं जाने दोगे तो मैं भी नहीं जाऊंगा और हम लौट आये । इतने में कुछ पत्रकारों ने हमें इस तरह लौटते देखा । दूसरे दिन अखबारों में समाचार था । राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इसका नोटिस लिया और 30 जनवरी को गाड़ी भेजकर ससम्मान आमंत्रित किया और लगभग पौने घंटे तक बातचीत की और अपने सुरक्षाकर्मियों की ओर से माफी मांगी ।

-आपको विष्णु प्रभाकर जी की कौन सी कृति पसंद है ?
-सारा साहित्य तो मैं भी नहीं पढ़ पाया लेकिन तीन चौथाई तो पढ़ा ही है । अलग रंग हैं सब कृतियों में । फिर भी इनकी कृति आवारा मसीहा और कहानी धरती अब भी घूम रही है सर्वाधिक चर्चित हैं । ‘कोई तो’ नाम से उपन्यास भी खूब है ।

-हिसार की कैसी याद है आपको ? आप विष्णु प्रभाकर पुस्तकालय के उद्घाटन पर भी आये थे ।
-हिसार अनेक बार आना हुआ । विष्णु प्रभाकर बनने में हिसार का बहुत बड़ा योगदान है । बेशक यह उनका जन्मस्थान नहीं था लेकिन उनके लेखक का जन्म हिसार में ही हुआ । हमें भी यह शहर अपने शहर जैसा लगता है !

-विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान कब से ?

उनके निधन के बाद(2010) । सन् 2013 से सन्निधि गोष्ठी भी प्रतिमाह । एक बार आपको भी आमंत्रित किया था ।

क्या साहित्य पढ़ा जा रहा है ?
-काफी लोग आज भी साहित्य पढ़ते हैं लेकिन साहित्य से सीधे जुड़ नहीं पा रहे !

-आपने भी लेखन किया है ?
-पिछले वर्ष ही मेरी दो किताबें आई हैं । एक कथा संग्रह तैयार है ।

-क्या कुछ कर रहे हैं विष्णु जी को लेकर ?
-पत्र संकलित किये हैं । स्मृतियों को संजोने में लगा हूं ।

-परिवार ?
-पत्नी अनुराधा । बेटा अंशुमान जो आज तक में एडिटर है । बेटी श्वेताली जिन सबसे आप मिले हैं ।

-क्या लक्ष्य ?
-पिता के साहित्य को आगे बढ़ाता रहूं और अपना लेखन भी करता रहूं !

हमारी शुभकामनाएं अतुल प्रभाकर को ।आप इस नम्बर पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं -98109112876

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