राहुल गांधी ने क्या कहा है इंग्लैंड में, इस पर उनसे सवाल पूछा जाना चाहिए?
ब्यान में क्या था? जिससे उन्हे लग रहा है कि, देश का अपमान हुआ है और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ी है
आमतौर पर सदन में प्रतिपक्ष की बुलंद आवाज़ अक्सर कार्रवाई बाधित करती थीं किंतु सत्तावादी सांसद ये आचरण करेंगे इतिहास में पहली बार ये देखा गया 
यह हंगामा इस बात का प्रमाण है कि सरकार सच नहीं सुनना चाहती
ये कैसी सरकार है जिसे चुने सांसदों से डर लगता है, जैसे वे अपराधी हैं 

अशोक कुमार कौशिक 

संसद का म्यूट हो जाना, एक संयोग भी हो सकता है तो इसे एक संदेश भी समझा जाय और यह एक प्रयोग का संदेह भी, उपजाती है। अहंकारी सत्ताएं,  समय समय पर अपने समर्थकों को इस तरह का संदेश देने की कवायद करती रहती हैं। 

वह भाषण किसे असहज कर रहा था, कौन सबसे अधिक उस भाषण के बाद, पानी पर पानी पी रहा था। इसे देश और दुनिया ने देखा, और बाद में जब यह पता चला कि, वह भाषण जिसमें कुछ कठिन सवालात थे, तो उस पन्ने को फाड़ दिया गया। 

जो कभी मशविरे दिया करते थे कि, मुश्किल सवाल पहले हल किए जाने चाहिए, वे उन मुश्किल सवालों का सामना करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाए। राहुल गांधी ने क्या कहा है इंग्लैंड में, इस पर उनसे सवाल पूछा जाना चाहिए? यदि उनका बयान, कुछ विधि विरुद्ध हो तो विधि सम्मत कार्यवाही करने की शक्तियां और अधिकार सरकार को है। 

पर सत्ता पक्ष माफी मांगने की बात तो कर रहा है, पर यह नहीं बता रहा है कि, बयान में ऐसा क्या था, जिससे उन्हे लग रहा है कि, देश का अपमान हुआ है और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ी हैं। शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सरकार मुंह न छुपाए, संचार क्रांति और सोशल मीडिया की पत्रकारिता के दौर में, गोएबेलवादी दुष्प्रचार, जितनी तेजी से पनपता है, उतनी ही तेजी से, वह बेनकाब भी हो जाता है।

इतिहास में पहली बार ये देखा गया कि आमतौर पर सदन में प्रतिपक्ष की बुलंद आवाज़ अक्सर कार्रवाई बाधित करती थीं। किंतु सत्तावादी सांसद ये आचरण करेंगे कि लगातार पांचवें दिन प्रतिपक्ष की आवाज़ बंद करने सत्ता समर्थित सांसदों ने जो किया वह विपक्षी सांसदों के साथ साथ सदन की गरिमा और प्रजातांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। वस्तुत:यह हंगामा इस बात का प्रमाण है कि यह सरकार सच नहीं सुनना चाहती। चाहे वह अडानी का मामला हो या राहुल गांधी का कैम्ब्रिज में दिया प्रजातांत्रिक मूल्यों  व्याख्यान हो।

इस बार स्पीकर ने तो हद कर दी वहां जो थोड़ा सा तीखा संवाद हुआ उस वीडियो की आवाज़ ही उड़ा दी। पहले राहुल के बोलने पर माईक बंद कर दिए जाते थे अब तो तमाम विपक्षी सांसद इस ज़द में आ गए। जबकि राहुल गांधी ने सांसद के नाते स्पीकर से मिलकर अपना जवाब देने की अनुमति भी मांगी थी। यह घटना स्वयं इस बात का जवाब है कि देश की संसद में सांसदों की आवाज़ दरकिनार की जा रही है। राहुल गांधी एक परिपक्व राजनेता बन चुके हैं उन्होंने अब तक जो भी कहा सच साबित हुआ है। इसलिए उनके प्रति अब अन्य दलों के नेताओं का ध्यान गया है वे उनके साथ जुटते जा रहे हैं। इधर राहुल फोबिया बीजेपी पर सवार हो चुका है। जगह जगह राहुल माफी मांगों की बेवजह मांग उठाई जा रही है। 

अदालत भी अपनी बात कहने का हक देती है पर धन्य है स्पीकर महोदय जो एक सांसद को ये मौका भी नहीं देना चाहते। विदित हो संसद अंग्रेजी शब्द एंग्लो-नॉर्मन से लिया गया है और, जो 11 वीं शताब्दी के पुराने फ्रांसीसी पार्लमेंट, “चर्चा, प्रवचन”, पार्लर से है, जिसका अर्थ है “बात करना”। संसद में ही यदि बात नहीं होगी तो सांसदों का काम ही क्या बचेगा? ये बात और कि केंद्र में मंत्रियों की बड़ी संख्या के बावजूद वे तमाम काम साहिब के दबाव में करते हैं। जैसे केजरीवाल दूसरे विधायकों का हक छीनकर एक मंत्री के सिर 18 विभाग थोप देते हैं जो उनके मुताबिक चलें। आश्चर्य इस बात का देखने को मिला कि सुलझे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को भी रक्षा मंत्रालय के कई काम अडानी को देने वाले मामले में फंसा दिया गया। और वे भी अब अनुराग ठाकुर ,स्मृति ईरानी की तरह अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं।

बहरहाल ऐसी खबरें मिल रहीं हैं कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जिस तरह कोरोना षड्यंत्र से यात्रा रोकने की कोशिश की गई। संसद में बिगड़ती अपनी हालत से लोगों का ध्यान दूसरी ओर मोड़ने के लिए कोरोना के दूसरे वायरस का सहारा लेने की तैयारी में है। यह हंगामा थमने वाला नहीं है, कांग्रेस ने अन्य दलों के साथ सत्याग्रह शुरू कर दिया है। इससे पूर्व भी इन सभी दलों ने संयुक्त रुप से ईडी के दफ्तर में एक ज्ञापन देने की कोशिश की। वहां बड़ी संख्या में पुलिस लगाई गई, ज्ञापन नहीं देने दिया गया। ये कैसी सरकार है जिसे जनता के चुने सांसदों से डर लगता है। जैसे वे अपराधी हैं। ऐसी तौहीन सांसदों की कभी कहीं दुनियां में नहीं देखी गई।

विश्व का  सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत आज किस हालात में इस सरकार ने पहुंचा दिया है। पहले चौथे स्तंभ मीडिया को खरीदा गया, फिर सांसद विधायक, फिर स्वायत्त संस्थाएं ,देश के बड़े रोजगार संस्थानों का निजीकरण ,बैंक लुटवाए अब चंद मज़बूती से खड़े विपक्षी नेताओं को खरीदने की कोशिश जब नाकाम हुई तो संसद ही बंद करवा दी। असंवेदनशीलता तो इतनी कि बीमार सोनिया गांधी को परिवार सहित और लालू यादव को परिवार सहित जबरिया छापामारी और घंटों ऊलजलूल सवालों से गुजरना पड़ा है। इन जुझारू जांबाज राजनेताओं की हिम्मत को बहुत बहुत सलाम। उम्मीद की जानी  चाहिए ऐसे नेताओं, सर्वोच्च न्यायालय और आमजन की ताक़त लोकतंत्र के हत्यारों को समय आने पर सबक सिखाएगी।

पर जनता को, इसे गंभीरता से लेने की इसलिए जरूरत है कि, विपक्ष का जो सबसे महत्वपूर्ण भाषण, फर्जी कंपनियों के द्वारा देश के रक्षा क्षेत्र में, संदिग्ध निवेश की घुसपैठ कराने वाले अडानी बंधु, (विनोद और गौतम अडानी) और पीएम के बीच संदिग्ध मेलजोल के आरोपों का था, को, जानबूझकर, स्पीकर लोकसभा ने, सदन की कार्यवाही से हटा दिया। 

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