“इस बार विशेष योग में मनाया जाएगा होलिका पर्व”।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र : होली एक राष्ट्रीय व सामाजिक पर्व है। यह रंगों का त्यौहार है। षडदर्शन साधुसमाज के संगठन सचिव वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने होलिका के महत्व में जानकारी देते हुए बताया कि इस बार यह त्यौहार फाल्गुन पूर्णिमा सोमवार 6 मार्च को मनाया जाएगा।

“इस बार विशेष योग में मनाया जाएगा होलिका पर्व”।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त।
नारद पुराण के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि को भद्रारहित प्रदोष काल में होलिका दहन करना चाहिए। होलिका दहन के लिये विशेष मुहूर्त का ध्यान रखना चाहिए।
इस बार होलिका दहन 6 मार्च सोमवार को किया जाएगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त सांय को 6 बजकर 24 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।
क्योंकि पूर्णिमा 7 मार्च को सूर्यास्त से पहले समाप्त हो रही है प्रदोष काल का समय भी 6 : 24 से 8:51 तक है इसी में होलिका दहन करे।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक,संगठन सचिव षडदर्शन साधुसामाज, गोविंदानंद आश्रम पिहोवा।

किस प्रकार भगवान विकट परिस्थितियों में भी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। भगवान के सच्चे भक्तों का त्यौहार है होली। इस पर्व पर आपसी वैर त्याग कर दुश्मन को भी गले लगा लेना चाहिए और जीवन को तनावमुक्त होकर जीना चाहिए। विशेष तौर पर यह त्यौहार भी भगवान के परम भक्त प्रह्लाद से संबंधित है। प्रह्लाद हृण्यकश्यप का पुत्र तथा भगवान विष्णु का भक्त था। हृण्यकश्यप प्रह्लाद को विष्णु पूजन से मना करता था। उसके विष्णु भक्ति न छोडऩे पर राक्षसराज हृण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्रि में न जलने का वरदान प्राप्त था। हृण्यकश्यप ने उस वरदान का लाभ उठाकर लकडिय़ों के ठेर में आग लगाई और प्रह्लाद को बहन की गोद में देकर अग्रि में प्रवेश की आज्ञा दी। होलिका ने वैसा ही किया। देव योग विष्णु कृपा से प्रह्लाद तो बच गया, लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गई और इस प्रकार भगवान ने अपने भक्त की रक्षा की। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक ने बताया कि भक्त प्रह्लाद की स्मृति और असुरों के नष्ट होने की खुशी में इस पर्व को मनाया जाता है। इसी दिन मनु का जन्म भी हुआ था, इसलिए इसे मनुवादितिथि भी कहते हैं।

इस पर्व को नव सम्वत् का आरंभ तथा वसंतागमन के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है।यही एक त्यौहार ऐसा है जिसमें सभी समुदाय के लोग हर प्रकार के गिले-शिकवे दूर कर उत्साहपूर्वक बच्चे, बुजुर्ग व सभी आपस में मिलकर होलिका पर्व मनाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार नारद जी ने महाराज युधिष्ठिर से कहा कि राजन् फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सब लोगों को अभय दान देना चाहिए, जिससे सारी प्रजा उल्लासपूर्वक रहे। इस दिन सभी बच्चे, बड़े गांव व शहरों में लकडिय़ां इकट्ठी कर और गोबर से बने उपले इकट्ठे कर होलिका का पूर्ण सामग्री सहित विधिवत् पूजन करते हैं। माताएं अपने बच्चों की मंगलकामना के लिए कंडी बनाती हैं, जिसे धागे से विभिन्न प्रकार के मेवे व बेर-पताशे इत्यादि से पिरोया जाता है और होलिका पर भी अर्पण किया जाता है। होलिका दहन के समय होलिका के सम्मुख बैठकर पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने वाले व्यक्ति लोक कल्याण के लिए इस पर्व की रात्रि में अनुष्ठान करते हैं। रोग निवारण व नवग्रह शांति के लिए रात्रि में अपने इष्ट के मंत्राजाप से शुभ फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से अकस्मात धन की भी प्राप्ति होती है।

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