दंगे में बिखरा जनाधार, किसान आंदोलन से संभली पार्टी भाजपा से गठबंधन को लेकर भी साफ कर दी तस्वीर हरियाणा एमपी में रालोद को साथी की तलाश हरियाणा में कांग्रेसी के साथ हो सकता है गठबंधन अशोक कुमार कौशिक राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान एक बार फिर से जयंत चौधरी को सौंप दी गई है। यूपी से बाहर जाटलैंड वाले राज्यों में जयंत चौधरी ने रालोद के विस्तार और 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन को लेकर अपना एजेंडा साफ कर दिया है। राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में उन्होंने चुनाव लड़ने के संकेत दिए तो यूपी में भाजपा के साथ गठबंधन की संभावना से साफ इनकार कर दिया है और सपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने की हुंकार भर दी है। इस तरह से जयंत अब छोटे चौधरी से बड़े चौधरी बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। राजस्थान रालोद ने पिछला विधानसभा चुनाव राजस्थान में कांग्रेस के साथ गठबंधन में दो सीटों पर चुनाव लड़ा। इसमें भरतपुर में जीत हासिल की. यह सीट लगातार दो बार बीजेपी के पास रही थी, वहीं मालपुरा सीट पर रालोद दूसरे नंबर पर रही थी। भाजपा की तरह जयंत चौधरी खास रणनीति के तरह गुर्जरों को भी साधने की कवायद में जुटे हैं। जिसके चलते चंदन चौहान को रालोद युवा की कमान सौंपी गई है तो मदन भैया को विधायक। इसके अलावा मुस्लिम के पास सियासी विकल्प न होने के चलते उनके साथ रहना मजबूरी है तो त्यागी समाज को भी जोड़ने की कवायद की जा रही है। इस तरह से आरएलडी जाट-मुस्लिम-गुर्जर-दलित संयोग के साथ अन्य समाज को जोड़कर बीजेपी के सामने चुनौती खड़ी करना चाहती है। जयंत की कोशिश किसानों के मुद्दे पर ही अपनी राजनीति को रखने का है ताकि बीजेपी को ध्रुवीकरण करने का मौका न मिल सके। अजित चौधरी की जयंती के उपलक्ष्य में नारा दिया गया है- भाजपा की विफलताएं हजार, लोकदल चला जनता के घर द्वार। इस अभियान के जरिए किसानों के गन्ना भुगतान से लेकर एमएसपी गारंटी कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। यूपी में अमूमन हर प्रमुख दलों से हाथ मिला चुका राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) अब सपा संग ही आगामी चुनावों की रणनीति साधने में जुटा है, वहीं राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पर ही भरोसा जताया है। इसका ऐलान खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने दिल्ली में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में किया. वहीं जयंत अब अपने पिता और दादा की विरासत के विस्तार पर भी मंथन कर रहे हैं। इसके लिए वो पहले मध्यप्रदेश-हरियाणा में समान विचारधारा वाले साथी की तलाश में हैं। अब मध्य प्रदेश और हरियाणा पर नजर रालोद के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी ने कहा कि पार्टी दूसरे राज्यों में भी अपना विस्तार कर रही है। इसके लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने पदाधिकारियों को साफ निर्देश दिए हैं।अभी रालोद की नजर मध्य प्रदेश और हरियाणा में राजनीतिक साथी की तलाश में है। समान विचारधारा वाले दल के साथ गठबंधन किया जाएगा। मध्यप्रदेश में चौधरी अजीत सिंह के नेतृत्व में रालोद पहले भी वीपी सिंह और चंद्रशेखर के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुकी है। उधर चर्चा है कि रालोद मध्य प्रदेश में सपा-कांग्रेस के साथ मिलकर मैदान में उतर सकती है, वहीं हरियाणा में कांग्रेस को अपना साथी चुन सकती है। आरएलडी का राष्ट्रीय अधिवेशन मंगलवार को नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित किया गया, जिसमें कई राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस बैठक में ही जयंत को अध्यक्ष के तौर पर एक और कार्यकाल सौंपा गया। साथ ही जयंत ने 2024 लोकसभा चुनाव के साथ-साथ हरियाणा और राजस्थान में भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। उन्होंने 2024 के चुनाव का अपना एजेंडा भी साफ कर दिया, जिसमें किसान-नौजवान को प्रमुखता से जगह दी गई है। चौधरी चरण सिंह के सियासी फॉर्मूले जाट-मुस्लिम के साथ गुर्जर और दलित मेल बनाने पर भी जोर दिया गया है। जाटलैंड में पैर पसारने की तैयारी जयंत चौधरी ने राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान जिस तरह से यूपी से बाहर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया, उससे साफ है कि उनकी नजर जाटलैंड वाले राज्यों पर है। चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजित सिंह के सियासी नक्शे कदम पर चलते हुए जयंत चौधरी ने कहा कि उनका गठबंधन राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा सहित कुछ और राज्यों में भी चुनाव लड़ने की योजना बना चुका है। वे गठबंधन के साथ इन राज्यों के चुनावी रण में उतरेंगे और जीत हासिल करेंगे। राजस्थान में आरएलडी का एक विधायक है और पार्टी गहलोत सरकार को समर्थन कर रही है। जयंत चौधरी और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद एक साथ कई बार राजस्थान का दौरा कर चुके हैं। उनके बीच सियासी समझ भी काफी बेहतर है। इस तरह से जंयत की कोशिश जाट-दलित वोटों के साथ गुर्जर समुदाय को लेने की है, जिसके चलते गुर्जर समुदाय से आने वाले चंदन चौहान को रालोद युवा विंग का अध्यक्ष बनाया गया। इस संयोग के जरिए राजस्थान ही नहीं, बल्कि हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी किस्मत आजमाने का रणनीति है। हरियाणा में जाट राजनीति पहले से ही स्थापित है, जिसके चलते रालोद अपनी जड़े नहीं जमा सकी है जबकि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कोई खास प्रभाव नहीं है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में इसी साल चुनाव होने हैं। भाजपा को इनकार, सपा से इकरार 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त बाकी है, लेकिन रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने यूपी में अपने गठबंधन को लेकर तस्वीर साफ कर दी है। जयंत ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि भाजपा और उनके बीच गठबंधन की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान अमित शाह ने एक रैली के दौरान आरएलडी के साथ गठबंधन करने का ऑफर दिया था। इसके बाद जयंत चौधरी को लेकर काफी असमंजस की स्थिति बन गई थी और मतदाताओं में भी उन्हें संदेह की नजर से देखा जाने लगा था। ऐसे में जयंत चौधरी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर साफ इनकार कर दिया है। जयंत ने कह दिया है कि उनके दरवाजे भाजपा के लिए हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं और दोनों दलों के साथ आने की कोई संभावना नहीं है। सपा के साथ ही मिलकर यूपी में 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि सपा के साथ गठबंधन को रखने के लिए एक समन्वय समिति बनाई गई है जो बातचीत करती रहती है। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ेंगे यह तय है, लेकिन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे यह नहीं कहा जा सकता है। इसके अलावा, जयंत ने चंद्रशेखर आजाद को भी साथ रखने की बात कही है। दंगे में बिखरा जनाधार, किसान आंदोलन से संभली पार्टी, जानें कैसा रहा गठबंधन का असर पश्चिमी यूपी के जाटलैंड में सियासी आधार माने जाने वाली रालोद एक लंबे दौर तक किंगमेकर की भूमिका अदा करती रही, वहीं मुजफ्फरनगर दंगे से पार्टी के जाट-मुस्लिम समीकरण बिगड़ गए। इस बीच क्षेत्र में जाटों के बीच भाजपा को बढ़त मिल गई। इसकी पुष्टि चुनावी परिणामों ने भी की, वहीं किसान आंदोलन ने एक बार फिर जाट-मुस्लिम करीब आए साथ ही रालोद ने सपा से गठबंधन कर चुनाव में उतरने का फैसला किया। 2022 विधानसभा चुनाव में 33 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 8 पर जीत हासिल की। इसके अलावा खतौली उपचुनाव जीत कर कुल 9 विधायक हो गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के साथ मिलकर पार्टी ने दांव खेला था। रालोद के खाते में जाटों के दबदबे वाली बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा सीटें आईं, लेकिन तीनों पर गठबंधन को पराजय का सामना करना पड़ा था। जयंत चौधरी की सोशल इंजीनियरिंग जयंत चौधरी भले ही अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते हों, लेकिन यूपी उनके मुख्य एजेंडे में है। इसकी वजह यह है कि पार्टी का सियासी आधार पश्चिमी यूपी में ही है। जयंत चौधरी खतौली में जिस सोशल इंजीनियरिंग के जरिए भाजपा को मात देने में सफल रहे हैं, उसी फॉर्मूले पर 2024 के चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि दलित अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वाले युवा नेता चंद्रशेखर आजाद के साथ उनका सहयोग जारी रहेगा। Post navigation अब अंबाला, हिसार और करनाल जैसी पुरानी रेंज के पुलिस कर्मियों को जल्द ही गुरुग्राम और फरीदाबाद के बराबर पदोन्नति मिलेगी – गृह मंत्री अनिल विज तुरंत प्रभाव से 3 आईएएस और 5 एचसीएस अधिकारियों के स्थानांतरण एवं नियुक्ति आदेश जारी