— जो दुसरो की मदद और दया भाव रख हर पल परमात्मा की याद रहता है; उसके सारे काम अपने आप ही सिद्ध हो जाते हैं: कंवर साहेब
— मन वचन और कर्म से किसी को दुख मत दो, भक्ति का आनंद आ जाएगा।
हुजूर कंवर साहेब कहां: यही संदेश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी तीन बंदरो के माध्यम से दिया।

चरखी दादरी-फतेहाबाद जयवीर फौगाट

12 फरवरी, सतगुरु मिलने से जीव के तीनों ताप के दुख खत्म हो जाते हैं। कोई तन से तो कोई मन से कोई कोई तो दुसरो के सुख से दुखी है। इन दुखों से छुटकारा केवल सतगुरु शरण से मिलता है। गुरु गुरु में भी फर्क है। मां के गर्भ से जन्म लेते ही हम अनेकों गुरु धारण करते जाते हैं जो हमें सांसारिक ज्ञान का दान देते हैं लेकिन सतगुरु इन सब गुरुओं से अलग है। सतगुरु तो चार खान में उलझी इस सुरत को उसकी समस्त उलझनों से मुक्त कर के चौथे लोक का भेद बता कर उसके आवागमन को खत्म करते हैं। यह सत्संग वाणी परम संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने फतेहाबाद के सिरसा रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में हजारों की संख्या में जुटी साध संगत के समक्ष फरमाई। गुरू जी ने कहा कि जिसको देखो वही बुराई से लिपटा पड़ा है। हर कोई दुनियादारी की चीजों में उलझा हुआ है। जीवन की बर्बादी को सुख मान कर इंसान गाफिल है। हर कोई केवल दुसरो के दोष ही देख रहा है जबकि सबसे ज्यादा दोष तो उसके अपने अंतर में है। पूरी दुनियां जीवन रूपी चौपड़ के खेल में फंसे हुए हैं लेकिन कोई भी इस बाजी को जितना नहीं चाहता। इस बाजी को केवल वो ही जीत सकता है जिसने पूर्ण सतगुरु को खोज लिया हो। बिना सतगुरु के तो रावण जैसे महाबली भी मिट्टी में मिल गए। हुजूर ने कहा कि सतगुरु पूरा उसको जानिए जिससे भ्रम मिट जाए। दुनियादारी की विद्या तर्क और बुद्धि तो बढ़ा सकती है लेकिन यह विद्या अभिमान भी पैदा करती है और यह अभिमान आपके कर्म का लेखा बढ़ाता जाता है। यह लेखा तो सतगुरु के दर्शन और सत्संग से ही मिट सकता है। गुरु जी ने कहा कि संग्रह तो मन को बेकाबू करता है। इस मन की गति बड़ी तेज है। एक पल में यह राजा बन जाता है तो अगले ही पल भिखारी। इस मन को काबू में तो केवल सतगुरु के शरनाई ही कर सकती है। केवल सतगुरु ही काग रूपी इस मन को हंस रूप कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मन चाह पैदा करता है और सतगुरु उसी चाह से इंसान को बेपरवाह करके उसे शाहो का शाह बना देते हैं। 

जो दुसरो की मदद और दया भाव रखता है और हर पल परमात्मा की याद रहता है; उसके सारे काम अपने आप ही सिद्ध हो जाते हैं: कंवर साहेब 

हुजूर ने कहा कि जीवन को इस तरह से जियो कि दुसरो को आपसे सहायता मिले। जो दुसरो की मदद करता है दूसरे के प्रति दया का भाव रखता है। जो उठते बैठते सोते जागते खाते हमेशा परमात्मा को याद करता है उसके तो सारे काम भी अपने आप ही सिद्ध हो जाते हैं। उन्होंने राका और बाका का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि ये पति पत्नी सब से बेखबर संतोष का जीवन जी रहे थे। लकड़ी काट कर अपना जीवन यापन कर रहे थे। उनकी दयनीय हालत को देख कर विष्णु भगवान से लक्ष्मी जी बोली कि आपके भक्तों को इतना कष्ट हैं आप इन्हे दूर क्यों नहीं करते। विष्णु भगवान ने कहा कि ये उसी में खुश हैं। लक्ष्मी जी के बार बार आग्रह करने पर विष्णु जी ने कहा कि आप ऐसे नहीं मानेगी आप खुद देख लो। विष्णु जी ने उनके रास्ते पर सोने की मोहरें बिखेर दी। आगे आगे पति चल रहा था उसने मोहरे देखी तो उसके मन में आया कि कहीं इन मोहरों को देख कर कहीं मेरी पत्नी का मन ना भरमा जाए। इसीलिए उसने अपने पैरो से मिट्टी डाल कर उन्हे ढक दिया। पीछे पत्नी ने देख लिया वो हंस कर बोली कि क्यों मिट्टी पर मिट्टी डाल रहे हो। विष्णु भगवान ने कहा कि देखा जिसके पास संतोष है उसको किसी और धन की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके विपरित आज हर कोई दुसरो की तुलना में अपने जीवन को दुखी कर रहा है। अपने सामर्थ्य से अधिक दुनियादारी के काम करता है। उन्होंने कहा कि दया रख कर और धर्म को पालकर दुनियादारी की चीजों में अपना मन ना दो। दूसरे की पीड़ा को अपना समझ कर उसकी मदद यदि कोई करता है तो उससे परमात्मा दूर भी नहीं है। 

मन वचन और कर्म से किसी को दुख मत दो, भक्ति का आनंद आ जाएगा।

हुजूर कंवर साहेब ने कहा : यही संदेश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी तीन बंदरो के माध्यम से दिया।

मन वचन और कर्म से किसी को दुख मत दो आपको बिना किसी प्रयास के ही भक्ति का आनंद आना शुरू हो जाएगा। यही संदेश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी तीन बंदरो के माध्यम से दिया। गुरु जी ने कहा परमात्मा के भक्त तो किसी चीज की परवाह नहीं करते। कष्ट उनको होता है जो गुरु की आज्ञा में नहीं चलते। गुरु का वचन शिष्य के लिए हर तरह से हितकारी होता है लेकिन शिष्य अपने स्वार्थ में उस वचन को नहीं समझ पाता है। उन्होंने कहा कि परमात्मा कहीं ना होकर भी हर जगह मौजूद है। वो सबको देख रहा है। उसकी करोड़ो आंखे और हाथ हैं। इसलिए कभी कोई गलत काम मत करो। नियमबद्ध होकर उसको हमेशा हाजिर नाजिर मानो। किसी और के लिए नहीं अपने लिए अच्छा करो। इधर उधर नही अपने अंतर में झांको। जो बीत गया उसे भूल जाओ जो आगे बचा है उसका ख्याल करो। परमात्मा की भक्ति और अपने आप को सुधारने के लिए कभी मत सोचो कि आप लेट हो गए या चूक गए। ये काम तो आप कभी भी शुरू कर सकते हो। गुरु जी ने कहा कि मन की खटपट मिटा लो परमात्मा के दर्शन झटपट हो जाएंगे। परमात्मा आपको कसौटी पर तौलता है वो आपको तपाता भी है तौलता भी है अगर आप अपने धर्म पर अडिग रहते हो तो वो आपको निहाल भी एक पल में कर देता है। उन्होंने कहा कि सद्गुण और सदकार्य कभी नहीं मिटते। आज लाखो हजारों साल बीत जाने पर भी अच्छे गुणों वाले को याद किया जाता है। उन्होंने कहा कि अपने बच्चो को अच्छे संस्कार दो क्योंकि उनकी उन्नति और तरक्की आपको भी इस समाज में जिंदा रखेगी। सज्जन व्यक्ति के तो मुंह से हर वक्त अच्छी बात ही निकलेगी। उन्होंने पांच कोष का वर्णन करते हुए कहा कि आपका अन्नमय कोश ही आपके मनमय, ज्ञानमय और विज्ञानमय कोष को ठीक करके आपके आनंद में वृद्धि करता है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज का तो यह आम चलन है कि जब बच्चा पैदा होता है तो उसको पहली घुट्टी परिवार में सबसे सज्जन व्यक्ति से दिलवाई जाती है। उन्होंने फरमाया कि आपकी वाणी अनमोल है इसलिए इसको हमेशा विवेक के तराजू पर तौल कर बाहर निकालो। बड़े बुजुर्गो का आदर मान करो। मां बाप की सेवा करो।

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