• पेपर लीक के कारण युवाओं में पैदा हो रहा है सिस्टम के प्रति अविश्वास: अनुपम

दिल्ली | रोज़गार आंदोलन के राष्ट्रीय युवा नेता अनुपम ने कहा है कि जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होगी, पेपर लीक की घटनाएं बंद नहीं होंगी। देशभर में पेपर लीक पर छिड़ी बहस के संदर्भ में ‘युवा हल्ला बोल’ आंदोलन की तरफ से अनुपम का बयान जारी किया गया है।

बेरोज़गारी के खिलाफ चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व करने वाले अनुपम ने कहा, “लंबे समय से युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। लेकिन सत्ता में बैठे नेताओं को पेपर लीक का दर्द महसूस नहीं होता। पेपर लीक का दर्द समझना हो तो उस माँ बाप से पूछिए जो पेट काटकर अपने लाडले को दूर शहर पढ़ने भेजते हैं। उन बेरोज़गार युवाओं से पूछिए जो एक अदद नौकरी के सपने के लिए वर्षों तक तैयारी करते हैं। यह दर्द उन लोगों को तो कभी समझ नहीं आएगा जो आज जाति, धर्म और पार्टियों में बंट गए हैं। भारत को युवा देश कहने वाले नेताओं को यह क्यों नहीं दिखता कि युवा आज इस कदर मानसिक अवसाद में है कि आत्महत्या करने लगा है? युवाओं का भविष्य अंधकारमय होने का मतलब है कि देश का भविष्य अंधकार में है। फिर भी हमारी सरकारें इतने गंभीर विषय पर ध्यान क्यों नहीं देती?

अच्छी बात है कि हाल के दिनों में हुए प्रदर्शनों के बाद पहली बार पेपर लीक पर एक राष्ट्रीय बहस छिड़ी है। हर सरकार इस विषय पर कुछ न कुछ करते दिखना चाहती है। बेरोज़गार युवाओं के गुस्से को ठंडा करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने आनन फानन में ‘नकल विरोधी कानून’ बना डाला। राजस्थान की सरकार ने भी पेपर लीक को लेकर टास्कफोर्स की घोषणा की। उत्तर प्रदेश में पहले से ही पेपर लीक को संगठित अपराध की श्रेणी में रखा गया है। लेकिन सवाल है कि क्या इससे पेपर लीक की घटनाएं बंद हो जाएंगी? क्योंकि कानून तो हमारे देश में पहले से ही बहुत हैं। पुलिस प्रशासन और सरकारों को ताकत की कोई कमी तो है नहीं। तो ऐसे में एक और कानून या एक और टास्कफोर्स से क्या हो जाएगा?

पूछने वाले तो यह भी पूछ सकते हैं कि भ्रष्टाचार विरोधी कानून से क्या भ्रष्टाचार खत्म हो गया? बलात्कार विरोधी कानून से क्या महिलाएं सुरक्षित हो गयी? तो नकल विरोधी कानून से ही नकल बंद कैसे हो जाएगा? इसका मतलब है कि हमारे देश में कानून से ज्यादा जरूरी है कानून लागू करने वालों की जवाबदेही तय होना। जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होगी, पेपर लीक नहीं रुक सकता। सरकारों में राजनीतिक इच्छाशक्ति तभी आएगी जब जनदबाव बने और इसके लिए ज़रूरी है जनांदोलन।

पेपर लीक की समस्या एक राज्य तक सीमित नहीं है। चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ में सब एक हैं। देशभर में व्याप्त इतनी गंभीर समस्या के बावजूद प्रधानमंत्री इसपर एक शब्द नहीं बोलते। ‘परीक्षा पे चर्चा’ नामक इवेंट आयोजित करके करोडों खर्च किया जाता है। जितना पैसा ऐसे एक इवेंट में खर्च होता है, उतना तो एक केंद्रीय विद्यालय या नवोदय विद्यालय का वार्षिक बजट होता है। प्रधानमंत्री तरह तरह की बातें करते हैं लेकिन परीक्षा के सबसे महत्वपूर्ण पहलू पर कुछ नहीं कहते। लगातार हो रही पेपर लीक के कारण युवाओं का सिस्टम के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है। समस्या से निजात पाना इसलिए भी ज़रूरी है कि ताकि सिस्टम के प्रति युवाओं का भरोसा बहाल हो। अब जब पहली बार इस विषय पर राष्ट्रीय बहस छिड़ गयी है तो इसे अंजाम तक ले जाने की ज़रूरत है।”

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