-कमलेश भारतीय

पत्रकारिता की राह आसान नहीं है । यह तो एक प्रकार से नट जैसा जीवन है । एक भी पल इधर उधर हुए नहीं कि जान जोखिम में गयी ! पत्रकारिता के क्षेत्र में अब तक कितने लोग कितनी तरह के माफियाओं के शिकार हुए हैं । कभी शराब , कभी कोयले खदान तो कभी भू-माफिया ! और नहीं तो पाखंड और शोषण उजागर करने पर भी पत्रकार रामचंद्र छत्रपति जैसे लोग गोलियों से छलनी कर दिये जाते हैं । अभी नया मामला महाराष्ट्र के रत्नागिरी से है कि भूकंप माफिया ने एक पत्रकार को कार से कुचल कर मार डाला ! मराठी पत्रकार शशिकांत वारिशे को पेट्रोल पंप के पास कार से कुचल कर मार दिया गया । कोल्हापुर के अस्पताल में बाद में उसकी मौत हो गयी । बेशक पुलिस ने वैसे चालक को गिरफ्तार कर लिये है , यह साफ है कि वह भू माफिया का मोहरा मात्र होगा । मीडिया संगठनों ने इस कांड की जांच करवाये जाने की मांग की है ।

यह अकेला मामला नहीं ।
रामचंद्र छत्रपति ने तथाकथित बाबा का पाखंड और साध्वी यौन शोषण ही तो उजागर किया था जो उसके घर के बाहर गोलियों से मार गिराया गया था । कितनी लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद बेटे अंशुल ने सजा तो दिलवाई लेकिन राजनीति ने सजा को भी फूलों की सेज में बदल दिया । पैरोल पे पैरोल ! जितना महापाप उतनी बड़ी पैरोल ! धन्य है राजनीति का खेल ! पत्रकार से समाज का सच बयान करने की उम्मीद कैसे ? पत्रकार जान पर खेल कर सच लिखे और राजनीति इसे वोट का खेल बना दे ! कभी बिहार के पप्पू यादव ने भी पत्रकार को शहीद किया था लेकिन जेल में उसकी बादशाहत को कोई फर्क नहीं पड़ा था । यूपी के राजा भैया के क्या ठाठ रहे !

पत्रकारिता को , पत्रकार को सलाम और कबीर के शब्दों में
जो घर फूंके आपणा, वो चले हमारे साथ !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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