कार्यशाला में राज्य द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों के पीआईओ और अपीलेट अधिकारियों ने लिया भाग
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चंडीगढ़, 4 जनवरी – हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद (एचएसईसी) द्वारा 3 जनवरी को पंचकूला में आरटीआई के दुरुपयोग को कम करने के लिए एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला को संबोधित करते हुए एचएसईसी के अध्यक्ष प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून नागरिकों को सरकार की गतिविधियों के बारे में जानकारी देने के लिए एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम है। इस कानून के कारण एक आम नागरिक को यह अधिकार मिला है कि वह किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी प्राप्त कर सकता है। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा कदम है, जो सरकार के काम या प्रशासन में और भी पारदर्शिता लाने का काम करता है। लेकिन आरटीआई का गलत माध्यमों के लिए दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
प्रो. बृज कुठियाला ने सुझाव दिया कि परिषद् में एक समिति गठित की जा सकती है। इसमें पीआईओ, प्रथम अपीलेट अधिकारियों, सूचना अधिकार कार्यकर्ता, अधिवक्ता शामिल होंगे। यह समिति सूचना अधिकार से संबंधित समस्याओं पर राज्य के विश्वविद्यालयों को सलाह देगी।
कार्यशाला में एचएसएचईसी के उपाध्यक्ष डॉ. कैलाश चंदर शर्मा, एचएसएचईसी विशेषज्ञ वक्ता श्री अजय जग्गा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय और पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व राज्य सूचना आयुक्त हरियाणा श्रीमती उर्वशी गुलाटी ने 15 राज्य द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों के जन सूचना अधिकारियों (पीआईओ) और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को संबोधित किया।
डॉ. कैलाश चंदर शर्मा ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के लाभों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह नागरिकों को उनके सवालों के जवाब पाने और बेहतर जानकार नागरिकों का निर्माण करने का अधिकार देता है । उन्होंने कहा कि आरटीआई का उपयोग ब्लैकमेलिंग और दुरुपयोग के इरादे से नहीं किया जाना चाहिए और इस बात पर जोर दिया कि आरटीआई अधिनियम की प्रक्रिया पीआईओ और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को अच्छी तरह से समझा लेना चाहिए।
श्री अजय जग्गा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने प्रतिभागियों को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 का अर्थ, उद्देश्य, महत्वपूर्ण प्रावधान और सर्वोच्च न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय बताते हुए आरटीआई अधिनियम के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केवल यथार्थ आरटीआई आवेदनों पर ही आगे कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कुछ सामान्य मुद्दों के लिए राज्य सरकार द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाई जा सकती है ।
श्रीमती उर्वशी गुलाटी ने समापन उद्बोधन में सूचना के अधिकार अधिनियम की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह लोकहित और पारदर्शी व जीवंत लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों के बुनियादी नियम सार्वजनिक होने चाहिएं। संस्थाएं जितनी पारदर्शी होंगी उनमें उतने ही कम सूचना के अधिकार से संबंधित मामले आयेंगे और संस्थाओं का इस माध्यम से उत्पीड़न भी कम होगा। उन्होंने कहा कि पीआईओ और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को सूचना के अधिकार अधिनियम के बारे में जागरूकता व जानकारी रखनी चाहिए और मामलों को संभालते समय लोकहित को दृष्टि में रखना चाहिए। अधिनियम में इसके गलत इस्तेमाल से बचने के प्रावधान हैं। उन्होंने ये सुझाव दिया की पीआईओ और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को सुझाव व सलाह देने से बचना चाहिए।