स्वामी श्रद्धानन्द के जीवन से युवाओं को प्रेरणा लेने के लिए किया प्रेरित।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 25 दिसम्बर : किसी राष्ट्र के निर्माण और उन्नति में संस्कारवान् युवाओं की अहम भूमिका है और युवाओं को संस्कारवान् गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति से ही किया जा सकता है क्योंकि प्राचीनकाल से ही गुरुकुल संस्कारित और अनुशासित शिक्षा के केन्द्र रहे हैं। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने देश में लुप्तप्रायः हो चुकी गुरुकुल शिक्षा पद्धति को न केवल पुनर्जीवित किया बल्कि समाज में फैली अनेक बुराइयों को दूर करने का भी भरसक प्रयास किया। हमें स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। उक्त शब्द आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र में आयोजित स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस समारोह को सम्बोधित करते हुए गुरुकुल के संरक्षक एवं गुजरात के महामहिम राज्यपाल आचार्य श्री देवव्रत जी ने कहे। इस अवसर पर गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, मुख्य अधिष्ठाता दिलावर सिंह, निदेशक कर्नल अरुण दत्ता, प्राचार्य सूबे प्रताप, डाॅ. राजेन्द्र विद्यालंकार, व्यवस्थापक रामनिवास आर्य, मुख्य संरक्षक संजीव आर्य सहित भारी संख्या में अभिभावकगण उपस्थित रहे। समारोह में पहुंचने पर प्रधान राजकुमार गर्ग ने आचार्यश्री का पुष्प-गुच्छ भेंट कर अभिनन्दन किया। वहीं मुख्य संरक्षक संजीव आर्य द्वारा गुरुकुल कुरुक्षेत्र के ‘फर्श से अर्श’ तक के सफर को दर्शाता गीत ‘कुरुक्षेत्र का यह गुरुकुल हमें प्राणों से भी प्यारा’ पर श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा पंडाल गुंजायमान कर दिया।

राज्यपाल आचार्य श्री देवव्रत जी ने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने ही वर्ष 1912 में गुरुकुल कुरुक्षेत्र की स्थापना की थी, जो वर्तमान में हरियाणा ही नहीं वरन् देश का अग्रणी शिक्षण संस्थान है। हाल ही में एजुकेशन वल्र्ड ने गुरुकुल कुरुक्षेत्र को ‘देश की धरोहर’ श्रेणी में शामिल किया है जो पूरे गुरुकुल परिवार के लिए गर्व की बात है। स्वामी जी का सम्पूर्ण जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा-पुंज के समान है जिस प्रकार से उन्होंने अपने जीवन में व्याप्त बुराइयों को दूर कर समाज में ज्ञान की ज्योति जगाई एवं समाज को नई दिशा प्रदान की, इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण उनके जैसा नहीं मिलता। उनके द्वारा 1902 में हरिद्वार में एक छोटी-सी झोपड़ी में शुरु की गई पाठशाला आज गुरुकुल कांगड़ी विश्ववि़द्यालय के रूप में देश नहीं दुनिया भर में शिक्षा का अद्भुत केन्द्र है। इसके साथ ही उन्होंने गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति के विस्तार के लिए गुरुकुल कुरुक्षेत्र, गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ सहित अनेक गुरुकुलों की स्थापना की। उन्हीं के पद्चिन्हों पर चलते हुए गुरुकुल कुरुक्षेत्र परिवार शिक्षा के क्षेत्र में नित नये आयाम स्थापित कर रहा है। गुरुकुल कुरुक्षेत्र के ब्रह्मचारी प्रतिवर्ष एनडीए, आईआईटी, पीआईएमटी सहित मेडिकल परीक्षाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी वर्ष गुरुकुल के 60 छात्रों ने एनडीए की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर नया रिकार्ड कायम किया है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल में एक नियमित दिनचर्या के तहत छात्रों का सर्वांगीण विकास किया जाता है ताकि एक सुरक्षित माहौल में विद्यार्जन कर वे न केवल अपने भविष्य का निर्माण करें बल्कि राष्ट्र के निर्माण में भी भूमिका अदा करने में सक्षम हों। उन्होनें अभिभावकों को प्राकृतिक खेती करने के लिए भी प्रेरित किया।

राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने अभिभावकों को आश्वस्त किया कि गुरुकुल परिसर में उनके बच्चे पूरी तरह सुरक्षित हैं और कठिन परिश्रम कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना ही उनके जीवन का ध्येय है जिसके लिए पूरा गुरुकुल परिवार वचनबद्ध है। अभिभावकों के इसी भरोसे और विश्वास को कायम रखते हुए गुरुकुल नीलोखेड़ी, गुरुकुल चमनवाटिका और गुरुकुल ज्योतिसर के बाद करनाल में जल्द ही एक नये गुरुकुल का शुभारंभ किया जाएगा जिसमें कक्षा 4 से कक्षा 8 तक के विद्यार्थी प्रवेश ले सकेंगे। अभिभावक इस बात को भली-भांति समझ लें कि उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हाथों में है, क्योंकि गुरुकुल परिसर में शिक्षा के साथ-साथ छात्रों के शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक विकास पर ध्यान दिया जाता है, यही कारण है कि गुरुकुल के छात्र आज प्रत्येक क्षेत्र में दूसरों छात्रों से दो कदम आगे हैं। इससे पूर्व कर्नल अरुण दत्ता ने गुरुकुल की विभिन्न उपलब्धियों के बारे में अभिभावकों को विस्तृत जानकारी दी। समारोह में गुरुकुल के संगीत के विद्यार्थियों ने समूहगीत की शानदार प्रस्तुति दी। वहीं अलग-अलग भाषाओं में ब्रह्मचारियों ने स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन पर भाषण प्रस्तुत किये। मंच का सफल संचालन मुख्य संरक्षक संजीव आर्य एवं रवि शास्त्री जी द्वारा किया गया।

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