सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं , सत्ता जनसेवा के लिए ही होती

लोकतंत्र में सबसे बड़ी सत्ता व इस की चाबी आम मतदाता के पास

मतदाता के विश्वास के साथ कभी नहीं होना चाहिये विश्वासघात

हिमाचल के सीएम जयराम ठाकुर ने पादुका पूजन कर लिया आशीर्वाद

फतह सिंह उजाला

गुरुग्राम । सत्ता, धन दौलत और बल इसका कभी भी किसी को अभिमान नहीं करना चाहिए । यह तीनों चीजें किसी के भी द्वारा व्यक्तिगत रूप से अर्जित नहीं की हुई होती । सत्ता की परिभाषा इस प्रकार से है कि एक आम मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर अपना विश्वास किसी भी जनप्रतिनिधि के प्रति अर्पित करता है और चुने हुए किसी भी जनप्रतिनिधि को मतदाता के विश्वास के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए । अभिमान करना ही है तो व्यक्तिगत रूप से किए गए जनकल्याण, जगत कल्याण और नेक कार्यों के लिए किया जाना ही श्रेष्ठ हो सकता है । यह बात काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में त्री दिवसीय श्री शिवशक्ति महायज्ञ में पहुंचने पर हिमाचल प्रदेश के सीएम श्री जयराम ठाकुर को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए कही । यह जानकारी जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्र नंद सरस्वती के निजी सचिव स्वामी बृजभूषण नंद सरस्वती के द्वारा मीडिया के साथ साझा की गई ।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में यज्ञ सम्राट स्वामी हरिओम महाराज द्वारा आयोजित तीन दिवसीय त्री दिवसीय शिवशक्ति महायज्ञ में विशेष रुप से पहुंचे जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद महाराज का हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर में सबसे पहले पादुका पूजन किया । तत्पश्चात पुष्प वर्षा सहित माल्यार्पण कर श्रद्धा पूर्वक नमन करते हुए प्रदेश , देश सहित सभी के स्वस्थ रहने सहित कल्याण के लिए कामना की। इसी मौके पर शंकराचार्य नरेंद्र सरस्वती महाराज ने अपने हाथों से भगवा रंग का दोशाला पहनाकर सीएम जयराम ठाकुर का अभिनंदन करते हुए उन्हें सत्ता संचालन के साथ साथ जन कल्याण के कार्य करने को प्राथमिकता प्रदान करने की बात विशेष रूप कही ।

उन्होंने कहा अभिमान और आत्मविश्वास दोनों में जमीन आसमान और पाताल जितना ही अंतर है । आत्मविश्वास किसी भी व्यक्ति कि अपनी जिंदगी की अनुभव की एक ऐसी पूंजी होती है , जिसे अर्जित करने के लिए वह अपना पूरा जीवन लगा देता है। इसी प्रकार से प्रकांड विद्वान ,ऋषि मुनि, साधु संत व अन्य मनीषी ,तपस्वीयों का भी जीवन होता है । वास्तव में यह मार्ग बहुत ही चुनौतीपूर्ण और कठिन है , लेकिन भारत और भारत की धरती सहित यहां समग्र देवी देवताओं का निवास करना हमेशा से धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित करने वालों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता आ रहा है । काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने बेहद सरल और साधारण व्याख्या करते हुए कहा जब जब भी सत्ता का गुरूर किसी भी व्यक्ति के द्वारा या किसी भी राजा के द्वारा या किसी अन्य के द्वारा सत्ता की ताकत को अपने लिए सब कुछ मान लिया । उसके जो कुछ भी परिणाम अनादि काल से लेकर वर्तमान के दौर में देखने के लिए मिल रहे हैं , यही परिणाम किसी व्यक्ति विशेष के कारण  मानव के लिए बहुत ही कष्टकारी साबित भी होते आ रहे हैं ।

आज जरूरत इस बात की है की सनातन धर्म की रक्षा के लिए जितना अधिक काम किया जाए, प्रचार प्रसार किया जाए, उतना ही वह कम है । हमारी अपनी भारतीय सनातन संस्कृति सभ्यता जीवन शैली पूरी तरह से सनातन धर्म में ही समाहित है। उन्होंने कहा धर्म में राजनीति नहीं होनी चाहिए , लेकिन राजनीति पर धर्म का नियंत्रण होना मानव सहित जगत कल्याण के लिए बहुत जरूरी है । अनादि काल में भी राजा महाराजाओं के दरबार या फिर मंत्रिमंडल में राजगुरु का एक अपना विशेष महत्व रहा है । जो भी कोई कार्य राष्ट्रहित में या जनकल्याण के लिए किए जाते थे, ऐसे तमाम कार्यों में राजगुरु का मार्गदर्शन प्राप्त किया जाता था। लेकिन अब यह सब अनादि काल की चली आ रही परंपरा से राजनीति और राजनेताओं को भी परहेज होने लगा है । उन्होंने बेबाक शब्दों में कहा अपने कथित राजनीतिक हित और स्वार्थ के लिए बहुत से राजनेता यहां वहां भटकते रहते हैं । यदि सही मायने में अपने अंतःकरण में ही ईमानदारी के साथ देखते हुए इस अमूल्य जीवन को प्रदान करने वाले परमपिता परमेश्वर को देखने का प्रयास किया जाए, तो फिर किसी भी प्रकार का डर अथवा भय नहीं बचेगा । शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने कहा सत्ता के शीर्ष पर जो भी कोई व्यक्ति पहुंचता है । उस पद पर पहुंचाने के लिए गरीब और जरूरतमंद लोगों का ठीक उसी प्रकार से विश्वास और भरोसा होता है , जैसे किसी भी आपदा या संकट के समय इंसान भगवान को याद करता है । सत्ता और सत्ता में शीर्ष पर बैठे नेताओं को जितना अधिक संभव हो सके प्रजा के हित में ही जन कल्याणकारी कार्यों को प्राथमिकता जानी चाहिए।

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