-कमलेश भारतीय

पच्चीस छब्बीस साल पहले हिसार में उत्तर भारत के एक लोकप्रिय अखबार के रिपोर्टर के रूप में हिसार क्या आया , सदा के लिये यहीं का होकर रह गया ! सन् 1997 से आने के बाद उस समाचारपत्र से तो विदाई ले चुका हूं लेकिन एक फ्रीलांसर के तौर पर आदमपुर को लगातार देखता आ रहा हूं । कभी चौ भजनलाल के साथ दीपावली और होली मिलन के आयोजन भी देखे तो कभी उनके अस्वस्थ होने के बावजूद चुनाव में उतरने पर लोगों की आखों में उनके लिए प्यार के साथ साथ आंसू भी देखे । मै जब पहली बार आदमपुर गया था तो सचमुच इसकी सड़कें चकाचक थीं चंडीगढ़ की तरह या फिर जैसे कभी लालू यादव ने कहा था -हेमामालिनी के गालों की तरह खूबसूरत ! लेकिन इस बार जब आदमपुर के गांव गांव गया तो सड़क कम और धूल मिट्टी की रोड जरूर दिखाई दी । कोई नेता आरोप लगाये या नहीं । वे जानें। स्कूल बंद होने की शिकायतें मिलीं । बस स्टैंड भी बुरे हाल में और बालसमंद में गवर्नमेंट काॅलेज मंजूर तो हुआ लेकिन अभी तक भवन नहीं बना ।

मैं जिन दिनों चंडीगढ़ से हिसार आया उनके मुख्यमंत्री के शासनकाल की बातें ही सुनीं जबकि वे छाया मंत्रिमंडल बना कर भी फिर ‘पूरो राज’ नहीं पा सके । सन् 2005 मे कांग्रेस भारी बहुमत से सत्ता मे लौटी जरूर लेकिन चौ भजनलाल नहीं लौटे सत्ता में । सत्ता का द्वार बंद हो गया । बेटे कुलदीप बिश्नोई ने नाराज होकर हरियाणा जनहित काग्रेस बना ली । वह दौर भी देखा जब कुलदीप के साथ वरिष्ठ नेता भी आ खड़े हुए । गैर जाट की राजनीति से मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा । कभी भाजपा के साथ गठबंधन तो कभी बसपा के साथ गठबंधन लेकिन सत्ता ऐसी रूठी कि लौट कर चौ भजनलाल के द्वार नहीं लौटी । वे फिर मुख्यमंत्री बनने का सपना लेकर चले गये । कुलदीप बिश्नोई जरूर ‘आदमपुर की चौधर’ लाकर कदमों में रख दूंगा कहकर वोट बटोरते रहे लेकिन जनता विकास से दूर रहती गयी । ठगी गयी । चौबीस साल तक आदमपुर की बहादुर जनता ने कुलदीप बिश्नोई का साथ निभाया लेकिन बदले में मिली बदहाली, उपेक्षा और हर सरकार का आदमपुर की ओर से मुंह फेरे रखने का रवैया । इस आदमपुर की जनत को चौ भजनलाल ने अपने प्यार और व्यवहार से ऐसा दिल जीता जनता का कि यह उनका गढ़ कहलाने लगा । यहां चाहे चौ देवीलाल, चाहे रणजीत चौटाला , प्रो गणेशीलाल या कोई भी नेता उनके सामने चुनाव लड़ने आये सभी चित्त होकर लौटे । ऐसा जादू !

कुलदीप बिश्नोई इस जादू को बरकरार नहीं रख पाये । जहां चौ भजनलाल को राजनीति का चाणक्य कहा जाता था , वहीं कुलदीप इस घूम को ग्रहण न कर सके ! जीत के लिए संघर्ष करने की जरूरत पड़ने लगी । सन् 2009 में यही कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश ने सिर्फ छह हजार से मार खाई और तेरह साल बाद फिर वही कहानी , वही संघर्ष ! हालांकि प्रत्याशी अब बेटा भव्य बिश्नोई है । इसीलिए भाजपा शिविर में कहा जा रहा है कि जयप्रकाश दादा , पिता व पोते यानी तीन तीन पीढ़ियों से हारने का कीर्तिमान बनाने जा रहा है जबकि जयप्रकाश का कहना है कि चौ भजनलाल , कुलदीप और भव्य भी तो हारे हैं और चुनाव में हार जीत तो लगी रहती है । यदि कुलदीप बिश्नोई ने जनता के साथ तालमेल बनाये रखा होता तो आदमपुर की रैली में कुलदीप व भव्य को माफियां मांगने की जरूरत क्यों पड़ी? यानी जो गढ़ था क्या सचमुच उसकी चूलें हिलने लगी हैं ? क्या आदमपुर की जनता बिश्नोई परिवार को ‘जीवनदान’ देगी या सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा देगी ? दलबदल ने भी कुलदीप की छवि को धूमिल किया ।

दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि जिस तरह पूरे मंत्रिमंडल के साथ मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अंतिम दिन आये , उससे चुनाव की गंभीरता का पता चल गया होगा । वैसे तो यह राजनीति है और इसमें सभी हर हथकंडे को आजमाते हैं । आप और इनेलो के प्रत्याशियों को बी टीम के प्रत्याशी और वोटकाटु प्रत्याशी कहा जा रहा है । खैर ! आदमपुर के साथ मेरा भी कलम का नाता है । सफर लम्बा और मज़ेदार है । सदैव आदमपुर का चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन जाता है और सारे राज्य की निगाहें इसके परिणाम पर लगी रहती हैं ! देखिए ! इस बार क्या होता है ,,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी

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