मुकेश शर्मा

लोमेश कुमार

मध्यप्रदेश में हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई आरम्भ होने के साथ ही हिंदी भाषा एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में आ गई है। इस विषय को लेकर हिंदी सेवी लोमेश कुमार ने विश्व भाषा अकादमी (रजि.),भारत के चेयरमैन श्री मुकेश शर्मा से बातचीत की।

:मध्यप्रदेश में हिंदी में मेडिकल की शिक्षा शुरु होने को आप किस नजर से देखते हैं?

मध्यप्रदेश में हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का शुरु होना एक शुभ संकेत है।इसके लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बधाई के पात्र हैं।ऐसा किए जाने से जिन भारतीय विद्यार्थियों को मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी में करने में भाषा सम्बन्धी दिक्कतें आ रही थीं,उन सभी के लिए यह एक अच्छा कदम है।अब उन्हें भी मेडिकल, शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा।

यूपीएससी की परीक्षाओं में आप हिंदी की क्या स्थिति देखते हैं?

वर्ष 2019 में यूपीएससी की परीक्षाओं के परिणाम में 829 सफल उम्मीदवारों में से हिंदी माध्यम से सफल उम्मीदवारों की संख्या तीन प्रतिशत से भी कम थी।यह दुर्भाग्यपूर्ण है।भारत में जहां 75 फ़ीसदी लोग हिंदी समझते हैं, बोलते हैं,पढ़ते हैं,जबकि गांवों में तो 80 फ़ीसदी से भी अधिक लोग ऐसे हैं,जो अंग्रेजी नहीं समझते हैं, ऐसे देश में जहां हिंदी को इतने बड़े पैमाने पर समझा जाता हो,वहां हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है।

यूपीएससी की परीक्षाएं देने के लिए जो सामग्री उपलब्ध है,उसमें अंग्रेजी में वह सब सहज उपलब्ध है,अधिक मात्रा में उपलब्ध है।जबकि उनका जो हिंदी अनुवाद है,वह क्लिष्ट हिंदी में है। जिस कारण मजबूरी में विद्यार्थियों को अंग्रेजी भाषा का विकल्प लेना पड़ता है। भारतीय और अप्रवासी भारतीय लोग सरल हिंदी को ही अपना रहे हैं, व्याकरण वाली क्लिष्ट हिंदी को नहीं।

अन्य भाषाओं के शब्दों को हिंदी क्षेत्र में स्वीकार्यता मिलने पर आप क्या कहना चाहेंगे?

भाषा के उचित विकास के लिए हिंदी भाषा की खिड़कियां, दरवाजे खोल देने चाहिएं। अन्य भाषाओं के जो शब्द हिंदी में प्रचलित हो चुके हैं,उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए।जैसे भारत में या विश्व में लॉकडाउन लगा तो लोगों ने उसे ‘लॉकडाउन’ ही कहा, ‘तालाबंदी’ नहीं कहा।

इसी प्रकार से ‘क्वारंटाइन’ हो जाना,जिसका हिंदी अर्थ है ‘एकल वास’। चाहे लोगों से क्वारंटाइन शब्द ठीक से बोला नहीं गया,किंतु ‘एकल वास’ प्रचलित नहीं हो पाया। इसी तरह जो लोग हिंदी लिखना चाहते हैं, यदि उनसे कोई मात्राओं की गलती हो जाती है तो उन्हें हतोत्साहित न करें। ग़लती की विनम्रता से जानकारी देना अलग बात है।

हिंदी को और लोकप्रिय बनाने के लिए आपका कोई सुझाव?

जब आप सोशल मीडिया में ‘सर्च’ ऑप्शन पर जाएंगे तो वहां पर आपको सभी विकल्प अंग्रेजी भाषा में दिखायी देंगे।अब जबकि हिंदी बोलने वालों की संख्या इतनी बड़ी हो चुकी है तो ये विकल्प अब हिंदी भाषा में भी होने चाहिएं।

इसी तरह से हिंदी भाषा की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए ऑनलाइन डिक्शनरी बनाई जानी चाहिए ताकि किसी भी शब्द का यदि हिंदी अर्थ देखना हो तो वह ऑनलाइन डिक्शनरी से देखा जा सके।

विदेशों में आप हिंदी की क्या स्थिति देखते हैं?

विदेशों में हिंदी की स्थिति उत्साहजनक है। न्यूजीलैंड से पहला हिंदी अखबार ‘अपना भारत’ का प्रकाशन होना ऐसा ही एक शुभ संकेत है।अब न्यूजीलैंड के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में हिंदी को वैकल्पिक विषय बनाया जाए,इस पर भी काम हो रहा है।

इसी प्रकार से विदेशों में जो विद्यार्थी हिंदी पढ़ना चाहते हैं,उनके पास सरल हिंदी भाषा में शिक्षण सामग्री का अभाव है। यदि भारत सरकार अपने दखल से वहां सही शिक्षण सामग्री उपलब्ध करवाने में  सहयोग कर दे तो वहां पर हिंदी की जो स्वीकार्यता है,वह और अधिक बढ़ेगी। वहां के परिवेश के मुताबिक ही पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाए।

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