-कमलेश भारतीय

लगभग तीन दशक होने वाले हैं हरियाणा में । पंजाब के दोस्त कहते हैं कि ईब तो हरियाणवी हो गये भाई । हां , कभी पंजाबी भंगड़े व मुटियारों के गिद्धे पर पांव अपनेआप थिरकने लगते थे । आज वही पांव ‘तेरी आंख्या का यो काजल’ और ‘गजबन पानी में चाली’ पर थिरकते हैं ! हरियाणवी संस्कृति से भी काफी परिचय हुआ और होता जा रहा है और हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष के रूप में यही जिम्मेदारी मिली थी कि हरियाणवी संस्कृति को फैलाने का काम कीजिए और पुस्तकें भी हरियाणवी संस्कृति पर प्रकाशित कीजिए । कुछ सेमिनार भी करवाये । हरियाणा के सभी विश्वविद्यालयों में भी जाना हुआ । दादा लखमी के गाने के बोल कि ‘ले चलो उस देस जहां संगीत हो’ ने भी इस प्रदेश की छवि बहुत सुथरी बनाई है । प्रसिद्ध एक्टर और हिसार में ही पले बढ़े यशपाल शर्मा ने फिल्म भी बहुत खूबसूरत बनाई है जिसका नाम दादा लखमी है जो हरियाणा दिवस के आसपास नबम्बर में रिलीज होने जा रही है । दादा लखमी , पगड़ी-द ऑनर और सतरंगी फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले , जिससे हरियाणवी फिल्म व संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर गौरव , चर्चा और महत्त्व मिला । राजेश अमरलाल बब्बर ने भी छोरियां , छोरों से कम नहीं ‘ फिल्म और अब ‘काॅलेज कांड’ हरियाणवी वेब सीरीज बनाकर अपना योगदान दिया है ।

इन सबके बावजूद जो इन वर्षों में देखा व सुना वह यह कि हरियाणा कल्चर का नहीं , एग्रीकल्चर का प्रदेश है । इस ताने से पहले पहले देवीशंकर प्रभाकर ने ‘ चंद्रावल’ जैसी सुपरहिट हरियाणवी फिल्म बना कर दूर करने की कोशिश की । इस फिल्म ने हरियाणा ही नहीं उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर में भी सिल्वर जुबली मनाई । फिर इस कोशिश को कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा व सांस्कृतिक विभाग के निदेशक व ‘चंद्रावल ‘ के ‘चंदरिया’ यानी अनूप लाठर ने दूर करने का जी भर प्रयास किया । हरियाणवी आर्केस्ट्रा उन्हीं की देन है तो रत्नावली शुरू करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है जिसकी आज हर कलाकार प्रतीक्षा करता है । इन मंचों से हरियाणा के अनेक कलाकार निकल कर आये । अब इसी पद पर डाॅ महासिह पूनिया भी रत्नावली के धमाल को जारी रखे हुए है और कुछ नया अपनी ओर से भी जोड़ते जा रहे हैं । कमल तिवारी ने भी योगदान दिया । जनार्दन शर्मा का मै छैल गैल्यां जांगी , महावीर गुड्डू का बम भोले छा गया । हरियाणवी सांग को डाॅ सतीश कश्यप और डाॅ संध्या शर्मा ने खूब आमजन तक पहुंचाया । डाॅ जगदीश राठी ने भी हरियाणवी कविता और गीतों को नये आयाम दिये । जगबीर राठी के गाने पर सपना चौधरी भी थिरकती है
बोल तेरे मीठे , मीठे
बात तेरी साची लागै!

इस तरह कितने ही कलाकारों ने हरियाणवी संस्कृति को बढ़ाने में योगदान दिया । उषा शर्मा ने चंद्रावल मे यादगार अभिनय किया तो दरियाव सिंह मलिक व नसीब सिह ने रुंडा, खुंडा के रोल में जान डाल दी । इन्हीं में ‘अम्मा जी’ के रोल से मशहूर मेघना मलिक को भी बहुत प्यार सम्मान मिला । दादा लखमी में भी अम्मा का सशक्त रोल किया है । राजेंद्र गुप्ता ने भी मुम्बई की फिल्मी दुनिया में हरियाणा का परचम फैला रखा है । मनीष जोशी ने आठ दिवसीय थियेटर फेस्टिवल से अपनी जगह बनाई और हरियाणा का नाम रंगमंच में बनाया । विश्व दीपक त्रिखा का गधे की बारात भी चर्चित रहा है । इन दिनों तो सुपवा में गजेंद्र चौहान कुलपति हैं यानी महाभारत के युधिष्ठिर महाराज हरियाणा में आ बिराजे हैं । कुछ उम्मीद लगाई जा सकती है ।
इस सबके बावजूद जब जब कोई बड़ा आयोजन होता है तब तब किलकी कल्चर सामने आता है । मंच पर बोतलें फेंकना और कुर्सियां तोड़कर हुडदंग मचाना आम बात हैं । महावीर स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में चाहे मंदिरा बेदी आई या सुनिधि चौहान या फिर मीका या हरभजन मान सबके कार्यक्रम इस किलकी कल्चर की भेंट चढ़ते पत्रकारिता के दौरान अपनी आंखों के सामने देखे । बोतलें फेंकना और कुर्सियां तोड़ना ही किसी भी सांस्कृतिक संध्या की सफलता का पैमाना बना दिया गया है । क्या पिछले तीन दिनों में हुए हिसार उत्सव का यही हश्र नहीं हुआ ? सिर्फ पहले दिन रीतू पाठक सफलतापूर्वक अपना कार्यक्रम पूरा कर सकी । अगले दो दिन कार्यक्रम हंगामे की भेंट चढ़ गये । सभागार से कार्यक्रम बीच मे छोड़कर ही कलाकारों को जाना पड़ा। क्या हम इन कलाकारों को लाइव सुनने या देखने आये थे या अपना कल्चर दिखाने ?

वीआईपी गैलरी में कूद कर आना और हंगामा करना क्या संदेश देता है कि ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने वाले युवा व कल्पनाशील अधिकारी नीरज चड्ढा फिर ऐसे आयोजन करने से पहले सौ बार सोचें ? यदि हिसार उत्सव को अच्छा रिस्पांस , खासतौर पर कल्चरल इवनिंग को दिया होता तो ये उत्सव हर जिला मुख्यालय पर करने का जोश आता ! क्या हम इसके लिए कोई प्रायश्चित करेंगे यानी अगले उत्सव तक अच्छा रिस्पांस देंगे ? हमें कलाकार की प्रस्तुति का आनंद लेना चाहिए न कि बिघ्न डालना चाहिए । पुलिस भी मुस्तैद रही लेकिन कुछ पुलिसकर्मी भी मस्त होकर अपनी ड्यूटी भूल कर मंच पर ही देखे गये । उनका वहां क्या काम था ? इस पर भी प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए ।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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