-डॉ सत्यवान सौरभ कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट, दादा बरगद-सा रखे, सौरभ सबका ध्यान।जिसे जरूरत जो पड़े, झट लाते सामान।। गाकर लोरीं रोज ही, करतीं खूब दुलार।दादी से घर में लगे, खुशियों का दरबार।। बुरे वक़्त का ध्यान से, करता पूर्व विचार।गिरिधर ने कैसा दिया, दादा ये उपहार।। दादा-दादी बिन हुआ, सूना-सूना द्वार |कौन कहानी अब कहे, दे लोरी का प्यार ।। दादा-दादी बन गए, केवल अब फरियाद।खुशियां आँगन की करे, रह-रह उनको याद।। रो ले, गा ले, हँस ले, दादा-दादी साथ।ये आँगन से क्या गए, जीवन हुआ अनाथ।। दादा -दादी देखते, परिवारों में जंग।आँखों से चश्मा गिरा, जीवन है बदरंग।। धूल आजकल फांकता, दादी का संदूक।बच्चों को अच्छी लगे, अब घर में बंदूक।। छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन से सब चाव।दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव।। दादा-दादी दिवस पर, रचे न झूठा स्वाँग।करे बुजुर्गों की सदा, मन से पूरी माँग।। Post navigation 12 सितंबर – दादा-दादी दिवस…….दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी बोलते समय इतनी पॉलिश क्यों दिखाई देती है?