ज़मीन पर विचारधारा की लड़ाई लड़ने का समय
कांग्रेस पार्टी के पास अवसर है कि वह अपनी पुरानी गलतियों के लिए प्रायश्चित करे
कम से कम कचरा तो साफ हो जाएगा उनके रहते वे कभी उभर नहीं पाते राहुल
हमेशा आदमी इतिहास से सीखता है और कदम आगे बढ़ाता है

अशोक कुमार कौशिक 

कांग्रेस पार्टी ने भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से होने वाले जन संपर्क के लिए तीन बिंदु सामने रखे हैं – 

1. आर्थिक विषमता, खासतौर पर बढ़ती मंहगाई, बेरोज़गारी, और छोटे एवं मध्यम उद्योगों और कारोबार की दुर्दशा

2. समाजिक विषमता, खासतौर पर सांप्रदायिक उन्माद एवं ध्रुवीकरण

3. राजनीतिक केंद्रीकरण, खासतौर पर राज्यों के अधिकारों का हनन एवं प्रजातांत्रिक संस्थाओं का क्षरण। निश्चित रूप से जो भी लोग भारत और भारत के लोगों के हितैषी हैं, वो इन बिंदुओं पर आज ज़रूर विचार कर रहे हैं। 

यात्रा के क्या परिणाम निकलेंगें – कांग्रेस पार्टी के संगठन के लिए, कांग्रेस के चुनावी भविष्य के लिए, और राहुल गांधी के अपने राजनीतिक भविष्य के लिए, इन विषयों पर बहुत अधिक चर्चा है। दूसरे कुछ विषय बन जा रहे हैं यात्रा की योजना, मार्ग, और व्यवस्थाओं को लेकर। किंतु आर्थिक विषमता, सामाजिक विषमता, और राजनीतिक केंद्रीकरण, इन विषयों पर जितनी चर्चा होनी चाहिए वो नहीं हो रही है। 

कांग्रेस पार्टी संगठनात्मक स्तर पर दलालों की पार्टी बन गई थी। दलाल सिर्फ़ दिल्ली में हथियार की ख़रीद–बेच पर दलाली खाने वाले नहीं, दलाल वो भी जो सत्ता से अपनी नज़दीकी का इस्तेमाल कर जनसुविधाओं के बदले वोटों का सौदा करने वाले। ऊपर से नीचे तक कांग्रेस ने सत्ता की ऐसी व्यवस्था रची जिसमें भ्रष्टाचार एक अनिवार्यता बन गया। ऐसी व्यवस्था को ध्वस्त किया जाना बहुत ज़रूरी था, जिसके परिणाम स्वरूप भाजपा केंद्र की सत्ता में आई और आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ। किंतु सत्ता में काबिज़ होने और सत्ता में बने रहने की भूख ने इन दोनों पार्टियों को भी उसी दलाली की व्यवस्था पर आश्रित बना दिया। अंतर बस इतना हुआ कि दलाली के तौर तरीक़े अब परिष्कृत हो चुके हैं जो आसानी से जनता की नज़र में नहीं आते। हां,अनुभव में ज़रूर आते ही होंगे, लेकिन सूचना तंत्र पर जिन शक्तियों का कब्ज़ा है वो लोगों को अपने अनुभवों के प्रति ही शंका ग्रसित बना दे रही हैं। 

ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कांग्रेस पार्टी के पास अवसर है कि वह अपनी पुरानी गलतियों के लिए प्रायश्चित करे। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस जिन मुद्दों को लेकर यह यात्रा कर रही है, वह भी इस प्रायश्चित के दायरे में हैं। किंतु उस दायरे को बड़ा कर, भविष्य में कांग्रेस किस तरह की व्यवस्था और शासन देगी इसका प्रारूप भी सामने रखना ज़रूरी होगा। हालाकि सत्ता परिवर्तन के साथ, कांग्रेसी दलाल अब भाजपाई बन चुके हैं, कांग्रेस को फिर भी देश की जनता को स्पष्ट बताना होगा कि आगे वह कैसे लोगों को ब्लॉक, जिला, और राज्य के स्तर पर कांग्रेस में पद और सदस्यता देने वाली है? बोलने की स्वतंत्रता, नजरबंदी कानून, और फ़ौज के आंतरिक राजनीतिक मामलों में इस्तेमाल पर किस तरह की नीति अपनाने वाली है? बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक, साम्प्रदायिक मसलों पर स्टैंड लेने के लिए किस तरह का दर्शन अपनाने वाली है? शिक्षा और स्वास्थ मुहैया कराने में राज्य की भूमिका पर क्या स्टैंड लेने वाली है? ये वो सवाल हैं जिन पर कांग्रेस का ढुलमुल रवैया उसकी गलतियों में शामिल है। और इनका स्पष्ट जवाब कांग्रेस की प्रायश्चित की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे। 

आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस के सामाजिक विषमता के मुद्दे में समाजिक न्याय का मुद्दा शामिल नहीं है। या शायद इसमें आश्चर्यजनक कुछ न भी हो। कांग्रेस पार्टी का चरित्र और मानसिकता भी द्विज जातियों वाला ही रहा है। यह इतिहास की क्रूरता है कि पहली  यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस ने कुछ ऐसे कदम जरूर उठाए जिनसे कि सामाजिक न्याय की दिशा में अप्रत्यक्ष किंतु दृढ़ एवं मजबूत प्रभाव पड़ा। लेकिन कांग्रेस ने देर इतनी कर चुकी थी, कि वह पीछे छूट गई। यह कांग्रेस की गलतियों में शुमार होगा कि अपने संगठन में वह समाज के विभिन्न वर्गों को जगह नहीं दे पाई। प्रजातंत्र में प्रतिनिधित्व की अहम भूमिका है। कांग्रेस को अपने प्रायश्चित की दायरे में इस विषय को भी शामिल करना होगा। यदि वास्तव में कांग्रेस अपनी धरोहर को बचाना चाहती है, तो यह एक ऐतिहासिक मौका भी है गांधी के साथ–साथ अंबेडकर के साथ खड़े होने का भी। 

यदि कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से अपने प्रायश्चित को पूरा कर लेती है, और देश की जनता को इस बात का विश्वास भी दिला पाती है, तो न सिर्फ़ कांग्रेस और उसकी धरोहर बचेगी, न सिर्फ़ देश में प्रजातंत्र बचेगा, साथ ही साथ देश में गहरे आर्थिक – सामाजिक परिवर्तनों की नींव भी मज़बूत होगी। जहां कांग्रेस को नेहरू की आधुनिकता का ध्यान रखना है, देशज विचारों से प्रेरित उस आधुनिकता में बदलाव भी करने हैं। यह कहना यहां ज़रूरी है क्योंकि गहरे आर्थिक–सामाजिक बदलाव देशज विचारों की उत्पत्ति और सवारी के नहीं हो सकते। देश की जनता से भी यह आशा ही की जा सकती है कि वह कांग्रेस की यात्रा और प्रायश्चित को खुले मन से एक मौका ज़रूर दे। 

जब राहुल गांधी अपने लंबे यात्रा पर देश में निकले हैं तो कोई न कोई कारक जरूर है कि आखिरकार जो इतनी जद्दोजहद कर रहे हैं। दरअसल राहुल गांधी बेहद सज्जन और अपने पिता की तरह साफगोई इंसान हैं। राहुल से बहुत से पुराने कार्यकर्ता नाराज होकर बाहर निकल चुके हैं। यह शुभ संकेत है पार्टी के लिए। कम से कम कचरा तो साफ हो गया। उनके रहते वे कभी उभर नहीं पाते राहुल। 

हमेशा आदमी इतिहास से सीखता है और कदम आगे बढ़ाता है राहुल ने सबसे पहले इंदिरा जी को मरते हुए देखा फिर बाद में अपने पिता को खो दिया। राहुल के पिता राजीव जी बेहद प्यारे इंसान थे। 

राहुल को वो घटी इतिहास की घटनाएं शक्ति देती है और इसी प्रण को लेकर वो भारत जानने निकले हैं। राजनीति का एक पहला पाठ यात्रा होता है और अपना देश पूरी दुनिया में अलग तरह का देश है जहां प्रति किलोमीटर भाषाएं, खानपान और वेशभूषा बदलता है वहां हमे देश को समझना भी चाहिए। 

महात्मा गांधी भी जब अफ्रीका से लौटे तो पूरे देश का भम्रण किया। और हर एक जगह से लोगों का एक दल तैयार किया।

राहुल में ये छटपटाहट है देश के प्रति। यह शुभ संकेत है।

अभी उन पर बहुत छींटाकशी होगा इससे कतई नहीं घबराना चाहिए। 

मैं फिर कहता हूँ कि बोलने में किसी से भाषाई गलती हो सकता है वह क्षमा के योग्य है। जो सवाल कर रहे हैं उनके अपने बारे में सोचना चाहिए कि वो अभी तक कितना गलती कर रहे हैं या हो चुका है। कम से कम राहुल ईमानदार है जनता की बात बड़े मंच से उठा रहे हैं। 

बाकी जो पप्पू हैं वो अपनी हद्द प्रदर्शित करते रहेंगे। 

राहुल आप अपनी चाल चलिए हाथी की तरह मस्त मस्त। 

एक दिन अन्यायी कुचला जायेगा।

अंत में एक राजनीतिक टिप्पणी यह कि ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में कोई सहमति बन रही है। वह सहमति इस रूप में परिणित होगी जिसमें कांग्रेस 100–120 सीटें प्राप्त कर मज़बूत उभरेगी और बाकी क्षेत्रीय दल भी 150–170 सीटें जुटाकर अगली सरकार की अगुवाई करेंगे। कांग्रेस को इससे राजनीतिक मजबूती तो मिलेगी ही, ज़मीन पर विचारधारा की लड़ाई लड़ने का समय और जगह भी मिलेगी। भारत जोड़ो यात्रा के मार्ग से यह स्पष्ट दिखाई देता है कि कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति फिलहाल समेटने की है, विस्तार की नहीं। अर्थात राजनीतिक विस्तार की नहीं। हालाकि यह टिप्पणी एक तरह से अनुमान आधारित ही है।