भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। पिछले काफी समय से स्थानीय निकायों में भ्रष्टाचार के समाचार आते रहे हैं और सरकार ने भी इसे माना तथा सभी चेयरमैन्स की डीडी पॉवर समाप्त कर दी। और आज तो रेवाड़ी में कष्ट निवारण समिति की बैठक में राज्यमंत्री ओमप्रकाश यादव ने पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा कि निकायों में भ्रष्टाचार है। ठेकेदारों की फाइलों पर हस्ताक्षर करने के पैसे लिए जाते हैं। गुरुग्राम को भी सारे हरियाणा से अलग रखकर नहीं देख सकते। कह सकते हैं कि गुरुग्राम हरियाणा का सबसे धनाड्य निगम है। अत: संभव हो सकता है कि वह भ्रष्टाचार में भी सबसे आगे हो। गुरुग्राम नगर निगम के चुनाव शीघ्र होने वाले हैं। अत: गुरुग्राम में चुनाव लडऩे के इच्छुक सक्रिय हो रहे हैं और गुरुग्राम निगम में भ्रष्टाचार की बातें भी उभरकर सामने आ रही हैं। गुरुग्राम नगर निगम की कोई भी बैठक शांतिपूर्वक नहीं संपन्न हुई। हर बैठक में अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही रहे। कुछ बैठकों में तो निगम की मेयरों पर भी सवाल खड़े किए गए और यह सवाल तो सबसे बड़ा बना ही रहा कि वित्त एवं संविदा कमेटी में कम से कम पांच मैंबर होने चाहिएं लेकिन पांच वर्ष पूर्ण हो गए पर वह कमेटी गठित ही नहीं हुई। एक बैठक में यह प्रस्ताव पास हुआ था कि हर पार्षद को उसके वार्ड में क्या-क्या और कितने रूपए के काम हुए, इसकी सूचना पार्षदों को दी जाए परंतु वह मामला उसके बाद हवा-हवाई हो गया। कुछ निगम में चर्चाएं होती रहती हैं कि यहां तो भ्रष्टाचार के रंग में सभी रंगे हुए हैं। चर्चाकारों का कहना है कि निगम के भ्रष्टाचारों में जिसका दांव लगता है, वही सम्मिलित है और यह कहावत चरितार्थ हो रही है कि तुम मेरी कमर खुजाओ और हम तुम्हारी खुजाएंगे तथा बातें छिपाएंगे। चर्चाकारों का यह भी कहना है कि कभी-कभी जो निगम के भ्रष्टाचार की बातें सामने आती हैं, वह इसलिए नहीं आतीं कि कोई भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहता है। वह इसलिए आती हैं कि बंदरबांट में विवाद हो जाता है और फिर जब जांच की बात आती है तो इस डर से कि हमाम में सब नंगे, कहीं फंस न जाएं, इसलिए आपस में फैसला हो जाता है। अहीरवाल के राजा राव इंद्रजीत केंद्र में मंत्री भी हैं और गुरुग्राम के सांसद भी हैं लेकिन इन सबसे बड़ी बात यह है कि यह निगम जब बना तो चुनाव समय से ही वह सरकार से टक्कर ले अपने उम्मीदवार जिताने में लगे रहे और कामयाब भी हुए। याद कीजिए, उस समय राव इंद्रजीत का कुछ ऐसा ब्यान आया था कि आन-बान-शान का सवाल है, मेयर तो हमारी मर्जी के ही बनेंगे और उन्होंने अपनी आन-बान-शान कायम रखी तथा अपनी मर्जी की मेयर टीम बनवाई। अब प्रश्न यह उठता है कि आन-बान-शान का सवाल क्या केवल मेयर टीम बनवाने तक ही था या गुरुग्राम की जनता के हितार्थ उनके टैक्स के पैसे का सदुपयोग कराने का भी था? जो बातें आम जनता में, सभी पार्षदों में, सभी अधिकारियों में, विधायकों में और सरकार में चर्चा में हैं, उनसे राव इंद्रजीत सिंह अनभिज्ञ हों ऐसा संभव लगता नहीं। नगर निगम चुनाव में अनुमान है कि फिर राव इंद्रजीत सिंह अपनी मर्जी से निगम की टीम बनाना चाहेंगे तो क्या निगम पर चुप्पी साधे रखकर यह संभव हो पाएगा? यह राव इंद्रजीत को सोचना है। Post navigation ब्रांडेड कंपनी के नाम पर पानी और पाउच सेल पर छापा साधना बनी सर्वश्रेष्ठ योगिनी, विपिन्न यादव ने जीता सर्वश्रेष्ठ योगी का अवार्ड