राहुल गांधी एक बात सही कहते हैं जो निडर हैं उनकी जगह कांग्रेस में है
जो भाग रहे हैं निश्चित ही वे भाजपा के साए से डर कर भाग रहे हैं
राहुल को पार्टी रुपी नदी की सारी कीचड़ और गंदगी साफ कर देना चाहिए
क्यों जी-23 के कांग्रेस जन निर्भय होकर किसी का नाम प्रस्तावित नहीं कर पाते?
क्यों दिग्गजों के अलावा युवा नेता भी कांग्रेस से दूरी बनाते रहे हैं

अशोक कुमार कौशिक 

कांग्रेस के युवा नेता जयवीर शेरगिल के बाद गुलाम नबी आजाद ने भी पार्टी छोड़ने का फैसला किया। दोनों नेताओं ने पार्टी में समस्याओं को गिनाया। साथ ही उन्होंने गांधी परिवार के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस मुक्त भारत से शुरू हुआ अभियान अब तक सफल हो चुका होता यदि कांग्रेस में चंद नेताओं के हौसले ने कार्यकर्ताओं में उम्मीद की किरण ना दिखाई होती। जी 23 के नेताओं की मांग पर विचार नहीं हुआ ऐसी बात नहीं उनमें से बड़ी संख्या में नेता आज भी कांग्रेस के साथ हैं। 

जहां तक कांग्रेस अध्यक्ष पद की बात है सोनिया गांधी को इन्हीं सभी नेताओं की मान मनौव्वल ने बनाया था। उनके पास कोई बड़ा अनुभव नहीं था लेकिन उसके बावजूद उनका प्रर्दशन ठीक रहा है। जहां तक राहुल गांधी का सवाल है उन्हें जब उपाध्यक्ष बनाया गया तब तो कोई गिला शिकवा नहीं सामने आया। उन्हें अध्यक्ष भी बनाया गया किंतु उनके अच्छे प्रदर्शन नहीं होने की वजह से हटा भी दिया गया। तभी से सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष हैं राहुल अध्यक्ष बनने तैयार नहीं हैं। ऐसा लंबे समय से चल रहा है। जी-23 के कांग्रेस जन निर्भय होकर किसी का नाम प्रस्तावित नहीं कर पाते हैं इसे क्या कहा जाए। चोरी चोरी चुपके चुपके कांग्रेस की बी टीम बनाने की कपिल सिब्बल की तैयारी टांय टांय फिस्स हो गई। जिन्होंने समाजवादी पार्टी से राज्यसभा में प्रवेश ले लिया।

आलेख की तस्वीर को गौर से  देखिये, कौन है यह आदमी ? वो ही न जिन्होंने 0 लास की थ्योरी दी थी औऱ कांग्रेस का बेड़ा गर्क कर दिया था .जिसे मीडिया ने दिन रात चलाया औऱ अण्णा जैसे आन्दोलनजीवी को सँजीवनी दे दी और पूरा करप्शन का परसेप्शन यूपीए के विरूद्ध बन गया ,पहचाना की नही।

यह वो ही कपिल सिब्बल है जिनके उलूल जुलूल बयानों से कांग्रेस गाहे बगाहे परेशानी में फंसती रहती है। जिन्होंने दिल्ली के एक लोकसभा सीट को छोड़कर कभी जमीनी राजनीति नही की । जिन्होंने अपना प्रोफेशन राजनीति के लिए कभी नही छोड़ा । जिन्होंने केवल अपने लोकसभा सीट के गणित के लिए  पूरी कांग्रेस की तुष्टीकरण की तरफ मोड़ दिया । आज वो भगवा पगड़ी पहने कांग्रेस को सेक्युलिरिज्म सीखा रहे है।

अब जरा आगे चलिये आपको महाज्ञानी आनंद शर्मा दिखेंगे जिन्होंने शायद ही कभी लोकसभा चुनाव लड़ा हो लेकिन वीरभद्र सिंह जैसे खांटी ज़मीनी नेता को सदा राजनीति के पाठ पढ़ाते रहते थे। कांग्रेस ने उनको हिमाचल प्रदेश जैसी छोटी प्रदेश के बाद राज्यसभा सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बनाया, वो आज कांग्रेस को बंगाल में राजनीति का ककहरा सीखा रहे है। यह इतने दोगले है कि इन्हें केरल में मुस्लिम लीग से गठबंधन नजर नही आ रहा था लेकिन वाम दलों का आईएसएफ को सीट देना आज अखर रहा है ।

अब बात करे “गुलाम” साहब की जिन्होंने पूरी जिंदगी नेहरु और गांधी की कृपा से निकाल दी लेकिन आज इनके अंदर का लोकतंत्र जग गया है इन्हें कांग्रेस का वंशवाद नजर आ रहा है गुजरात दंगो के समय साहब में इनको शैतान नजर आ रहा था अब एक राज्यसभा की सीट के लिए भगवान नजर आ रहा है मतलब जिस पार्टी ने आपको बनाया उसे ही नीचे दिखा रहे है ऐसी नकली आजादी से पार्टी की गुलामी ही ठीक है।

कांग्रेस को इस मामले में बीजेपी से सीखना चाहिए वो वक्त पड़ने पर जसवंत सिंह और कल्याण सिंह जैसे नेताओं को निकाल बाहर कर देती है। सत्ता में हो या न हो लेकिन अनुशासन से कोई समझौता नही करती है। अब समय आ गया है राहुल गाँधी को पार्टी रुपी नदी की सारी कीचड़ और गंदगी साफ कर देना चाहिए. देर से ही सही इस सुखी नदी में निर्मल और स्वच्छ जल तो आएगा।

अब तक जो शूरवीर कांग्रेस के रणछोड़ बने हैं उनमें चाहे सिंधिया हों ,आनंद शर्मा हों या गुलाम नबी आजाद सबकी चाहत मुख्यमंत्री बनने की रही है। इसलिए कांग्रेस से तमाम पद और सम्मान लेने के बाद यह मानते हुए कि कांग्रेस डूबता जहाज है उससे किनारा करते जा रहे हैं। सिंधिया आज तक मुख्यमंत्री बनने की चाहत लिए हुए हैं । हिमाचल में कांग्रेस बढ़त की ओर है पर आनंद भाजपा की ओर देख रहे हैं। यही हाल गुलाम साहब का है। कश्मीर मुख्यमंत्री की तमन्ना ने उनका ये हाल किया है। राहुल गांधी एक बात सही कहते हैं जो निडर हैं उनकी जगह कांग्रेस में है। भाजपा ने जिस तरह ईडी ,सीबीआई, आईटी को विरोधियों के पीछे लगाया हुआ है इनसे ये सब डरे हुए हैं  इनका दामन निश्चित साफ़ नहीं होगा ।

 2017 में जब राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपी गई थी तो वे नेहरू गांधी परिवार के पांचवें ऐसे शख्‍स बन गए थे जो कांग्रेस अध्‍यक्ष बने। 

राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद पद छोड़ा तो फिर सोनिया गांधी को ही कमान सौंपी गई। लोगों का यह भ्रम है कि कांग्रेस यानि नेहरू गांधी परिवार।  आईए एक नजर आज़ादी के बाद अब तक कांग्रेस के अध्‍यक्ष पद पर रहे नेताओं पर।

पहले भोगराजू पट्टाभि सीतारामय्या, पुरुषोत्तम दास टंडन, जवाहरलाल नेहरू,यू एन ढेबरी, इंदिरा गांधी,नीलम संजीव रेड्डी, के कामराज,निजलिंगप्पा,,जगजीवन राम, शंकरदयाल शर्मा,, देवकांत बरुआ, इन्दिरा गांधी,,राजीव गांधी,पी वी नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष। अब केसी वेणुगोपाल ने एलान किया कि 28 अगस्त को अध्यक्ष पद चुनाव की तारीख पर मुहर लगेगी। इस समय अध्यक्ष पद के लिए दो नाम आगे चल रहे हैं। इसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ है।

सोनिया गांधी को जी 23 के तमाम लोगों ने 1998 में अध्यक्ष बनाया तब कांग्रेस के विखंडन और मज़बूती के लिए गांधी परिवार का सहारा लिया। जबकि वे राजनीति में आने बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसके बाद राजनैतिक झंझावातों का दौर शुरू हुआ। भाजपा सत्ता रुढ़ हुई। क्यों और कैसे सभी जानते हैं। इस बीच सिर्फ राहुल गांधी ही अपने चंद मित्रों के साथ आज तक पूर्ण निष्ठा से आंदोलनरत पीड़ितों के दुख दर्द में शामिल हैं।आज राहुल सदन में अध्यादेश फाड़ने वाले से बहुत आगे निकल कर एक बहुत गंभीर और सुलझे व्यक्तित्व से आम जन को लुभा रहे हैं। जनता का संबल भी उन्हें मिल रहा है। जो भाग रहे हैं निश्चित ही वे भाजपा के साए से डर कर भाग रहे हैं।

राहुल गांधी पर इल्ज़ाम लगाने वालो सोचो कंटकाकीर्ण पथ पर बचपन से चलने वाला राहुल अब बहुत मज़बूत है। लौह इरादों के साथ संविधान और लोकतंत्र को बचाने प्रतिबद्ध है। यह इतिहास का महत्वपूर्ण समय है कि देश को कट्टरवादियों और कारपोरेट से कैसे  बचाया जाए। जो रण छोड़ रहे हैं उनकी कायरता इतिहास में दर्ज होगी। जहां तक अध्यक्ष पद का सवाल उसे हल सब मिलके कर लेंगे। राहुल अध्यक्ष नहीं बनेंगे यह तय है। लोग कह रहे हैं पार्टी जोड़ों किंतु राहुल भारत जोड़ो अभियान शुरू कर रहे हैं देश में जो साम्प्रदायिक और फासीवादी ताकतें सिर उठा रही है उसके खिलाफ यह यात्रा ज़रूरी और अति महत्वपूर्ण है।एक बात और कांग्रेस में लोकतंत्र की बात करने वालोें को दम खम के साथ सामने आना चाहिए ।

कांग्रेस के एक और युवा नेता जयवीर शेरगिल ने भी पार्टी छोड़ने का फैसला किया। 39 वर्षीय नेता ने पार्टी में चापलूसी जैसी समस्याओं को गिनाया। साथ ही उन्होंने गांधी परिवार के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए।

इससे पहले ‘G-23’ में शामिल वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा जैसे दिग्गज नेता भी संगठन में बदलाव की मांग कर चुके हैं। हाल ही में दोनों नेताओं ने जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पार्टी के अहम पदों से इस्तीफा दे दिया है। कपिल सिब्बल ने भी नेतृत्व पर सवाल उठाए।

कांग्रेस की राजनीति के मौजूदा हाल के अनुसार, दिग्गजों के अलावा युवा नेता भी पार्टी से दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। बीते कुछ सालों में ऐसे कई नेता कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं, जिन्हें पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। 

अशोक तंवर 

राहुल गांधी के करीबी रहे हरियाणा से नेता अशोक तंवर ने पार्टी को छोड़ा । हुड्डा के साथ उनकी रस्साकशी काफी लंबे समय तक चली और जब वह अपने हर प्रयास में विफल होते दिखाई दिए तो उन्होंने कहा कि इस पार्टी को छोड़ दिया। पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए, उसके बाद उन्होंने आप पार्टी का दामन थाम लिया।

ज्योतिरादित्य सिंधिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया अभी भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं। उन्होंने मार्च 2020 में कांग्रेस से 18 सालों का साथ खत्म कर दिया था। कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश के नेतृत्व को लेकर उन्होंने यह फैसला किया था। उस दौरान करीब 20 विधायक उनके साथ आ गए थे, जिसके बाद राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी।

जितिन प्रसाद

उत्तर प्रदेश के बड़े ब्राह्मण चेहरा कहे जाने वाले प्रसाद यूपीए सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने यूथ कांग्रेस से करियर की शुरुआत की और साल 2004 में पहली बार लोकसभा में चुने गए। फिलहाल, वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार का हिस्सा हैं।

गुजरात में पाटीदार नेता पटेल ने 2022 में कांग्रेस से इस्तीफा दिया है। उन्होंने पार्टी छोड़ते वक्त कांग्रेस नेतृत्व और पार्टी की गुजरात इकाई पर जमकर सवाल उठाए थे। साल 2015 में पाटीदार आंदोलन से चर्चा में आए पटेल ने 2019 में कांग्रेस का दामन थामा था, लेकिन लोकसभा चुनाव में खास प्रदर्शन करने में असफल रहे थे।

सुष्मिता देव

कांग्रेस महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकीं सुष्मिता देव ने 2021 में पार्टी की सदस्यता छोड़ दी थी। खास बात है कि उन्हें गांधी परिवार का करीबी माना जाता था। असम कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार देव ने अगस्त 2021 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया था। 2019 लोकसभा चुनाव में सिलचर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

यहां भी परेशानियां

राजस्थान के सचिन पायलट और महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा के भी सुर बदले हुए नजर आ रहे थे। एक ओर जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट के बेटे सचिन जुलाई 2020 में पार्टी के खिलाफ बगावत कर चुके हैं। वहीं, देवड़ा भी भारतीय जनता पार्टी के कई फैसलों की तारीफ कर चुके हैं।

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