यह राहुल गाँधी का मोदी मोमेंट है 
2024 में कांग्रेस अगर एक मजबूत विपक्ष के लिए अगर नीतीश को प्रधानमंत्री पद पर सत्ता में आना चाहती है,
तो शायद ये कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक भूल होगी
राहुल की छवि नौसिखिए राजनेता जैसी दिखाने के लिए मीडिया के कुछ पत्रकारों और संपादकों ने काफी मेहनत की
लोकतंत्र के नाम पर विधानसभाओं और संसद में पहुंचने वाले लोगों को डरा कर सत्ता पर बने रहने का ख़तरनाक खेला जारी

अशोक कुमार कौशिक 

2012 के सर्दियों का दौर याद कीजिए नरेन्द्र मोदी गुजरात चुनाव जीतने बाद को दिल्ली आने के लिए छटपटा रहे थे। पुण्य प्रसून उनसे पूछ रहे थे कि आपको दिल्ली आने से कौन रोक रहा है तो वो मुस्कुरा के सवाल टाल गए , वो एक ऐसा दौर था जब मोदी का बाहर क्या. अंदर भी भारी विरोध हो रहा था। मोदी बिलकुल अकेले पड़ गए थे उनके साथ था तो केवल  उनकी विचारधारा पर कमीटेड कैडर, अडानी अंबानी और ज़मीनी कार्यकर्ता …

मोदी का विरोध आडवाणी से लेकर अनंत तक कर रहे थे। आडवाणी स्वयं के अलावा  सुषमा और शिवराज में भी संभावना तराश रहे थे। यहां तक कि अरुण जेटली औऱ गडकरी जैसे सीजनल पॉलिटिशियन भी अपनी पसिबलटीज को रूल आउट नही कर रहे थे। रमन और वसुंधरा को भी दबी जबान में मोदी का विरोध करते सुना था। मतलब मोदी को कोई भी दिल्ली में नही आने देना चाहता था। नीतीश तो आडवाणी के इशारे पर सरकार को दांव लगा दिये थे। ममता,केजरीवाल औऱ यहां तक शिवसेना भी मोदी के विरोध में थी। लेकिन मोदी अड़े हुए थे वो देश की हवा भाप चुके थे वो जानते थे कि इस बार चुके तो कभी प्रधानमंत्री नही बन पाएंगे …

अब 2022 सर्दियां का दौर शुरू हो चुका है देखिये राहुल गाँधी का सबसे ज्यादा वो विरोध कौन कौन कर रहे है जो उस विचारधारा का झंडाबरदार बनते है। जिसके सहारे उन्होंने अपने महल बनाए है। आज राहुल का विरोध भगवा ब्रिगेड के साथ ममता, पवार ,केजरीवाल और G23 और वो तमाम नेता कर रहे है जिनकी स्वयं की इच्छा देश की प्रधानमंत्री बनने की है या कभी रही है। मोदी की तरह राहुल गाँधी बिलकुल अकेले पड़ गए है और 2013 कि तरह उनके साथ भी केवल कॉंग्रेस की विचारधारा का कमिटेड कार्यकर्ता खड़ा है। 

राजनीति में संकेतों को पढ़ना एक कला होती है औऱ मैं उन्हें बहुत बारीकी से फॉलो करता हूँ यह राहुल गाँधी का मोदी मोमेंट है । आप सोचिये सारी ताकते उन्हें क्यो टारगेट क्यो कर रही है। क्या आप इसे महज संयोग मान रहे है तो आप चूक रहे है। आज राहुल गाँधी के पास वैसा मौका है जो 2013 में मोदी के पास था। उन्होंने अपनी इस सबसे बड़ी कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाया था। अगर ऐसा ही कुछ राहुल गाँधी कर लेते है तो 2024 में वो प्रधानमंत्री बने या न बने लेकिन इस देश के सबसे बड़े नेता जरूर बन जायँगे ।

राहुल गांधी का जज़्बा

पिछले लगभग दो दशकों से राहुल गांधी की छवि नौसिखिए राजनेता जैसी दिखाने के लिए मीडिया के कुछ सेलिब्रिटी पत्रकारों और संपादकों ने काफी मेहनत की। सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के काम में लगाए गए लोगों ने भी इसमें ख़ूब मदद की। उनके वीडियो और तस्वीरों को कभी काट-छांट करके, कभी छेड़छाड़ करके जनता के बीच इस तरह पेश किया गया, जिसमें राहुल गांधी कमअक्ल वाले दिखें, इसके लिए पप्पू जैसा शब्द भी उनके नाम के लिए इस्तेमाल किया गया। इसके बाद भी राहुल गांधी की भारतीय राजनीति में मौजूदगी से घबराहट होती रही तो फिर उनके चरित्र पर उंगलियां उठाई जा सकें, ऐसी तस्वीरें और वीडियो भी प्रचारित-प्रसारित किए गए। ठीक यही काम महात्मा गांधी और पं.नेहरू के साथ भी खूब किया गया और उनसे खौफ़ खाने वाले लोग अब भी ऐसा करने से बाज़ नहीं आते हैं। इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी और संजय गांधी, इनके रिश्तों को लेकर भी बहुत सी मनगढ़ंत कहानियां भारतीय राजनीति के गलियारों में घूमती रही हैं। ये सिलसिला अब भी जारी है। बल्कि कुछ दलाल किस्म के पत्रकार इस पर प्राइम टाइम करने से भी पीछे नहीं हटते।

देश के राष्ट्रपिता, पूर्व प्रधानमंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं के ख़िलाफ़ इस तरह की साजिश कई दशकों से चल रही है, क्योंकि इन लोगों की दूरदृष्टि, उदार सोच और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगाने का जज्बा संकुचित मानसिकता के लोगों की समझ से परे है। गुलामी के दौर में भी इस तरह के वैचारिक टकराव होते थे। अंग्रेजों को गांधीजी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांत अपनी सत्ता में बाधा की तरह दिखते थे और गरीबों के लिए उनकी व्याकुलता पागलपन लगती थी। इसलिए चर्चिल जैसे विद्वान राजनेता ने गांधी के लिए अधनंगा फकीर जैसे अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्हें अंग्रेज़ों ने कई बार गिरफ़्तार किया, उनके आंदोलनों को हिंसक तरीके से कुचलने की कोशिशें हुईं, लेकिन गांधीजी को अंग्रेज़ अपने आगे झुका नहीं पाए। यही हश्र अंग्रेज़ों का नेहरूजी के सामने हुआ। अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए अपने जीवन के करीब 9 साल उन्होंने जेल में बिताए, लेकिन कभी भी डर कर पीछे नहीं हटे, सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

देश की आज़ादी के लिए गांधी-नेहरू की तरह अनगिनत लोगों ने बलिदान दिया है, लेकिन गांधी-नेहरू का भारतीय राजनीति पर एक अलग प्रभाव रहा, उनकी एक अलहदा छाप रही, क्योंकि उनकी व्यापक सोच और भारत के उत्थान के लिए उनका नजरिया अद्भुत रहा। आज़ादी के बाद भारत को जिस तरक्की की राह पर बढ़ा, उसके पीछे नेहरू जी की दूरदृष्टि और विद्वता का योगदान रहा। उनके मार्गदर्शन में देश ने अर्थव्यवस्था, विज्ञान, चिकित्सा, शिक्षा, अधोसंरचना, जैसे तमाम क्षेत्रों में आत्मविश्वास से भरे कदम उठाए, जिसका नतीजा ये रहा कि तीसरी दुनिया के कई देश जब बदहाली से परेशान हैं या किसी विकसित देश के पिट्ठू बनने को मजबूर हैं, तब भारत ने दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है। अगर नेहरूजी ने भी सत्ता की खातिर या विरोधियों की आलोचना से बचने के लिए अलोकतांत्रिक और संकीर्ण मानसिकता से ओतप्रोत ताकतों के आगे झुकना मंजूर किया होता, अपने सिद्धांतों को राजनैतिक लाभ-हानि के तराजू में रखते हुए समझौते किए होते, तो भारत की तस्वीर इस वक्त विकासशील, लोकतांत्रिक देश की नहीं होती।

गांधी-नेहरू के सिद्धांत सत्यमेव जयते की तरह स्पष्ट थे और आज कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने उन्हीं के अंदाज़ में अपने विरोधियों को जवाब दिया है। संसद में पत्रकार सत्तापक्ष के वरिष्ठ नेताओं से ज्यादा राहुल गांधी से सवाल पूछने में यकीन रखते हैं। शायद उन्हें भी पता है कि सत्तापक्ष सवालों को पसंद नहीं करता। और राहुल गांधी से सवाल पूछने पर उन्हें किसी बात पर घेरने का मौका भी मिल सकता है। प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी से लगभग सौ और राहुल गांधी से लगभग डेढ़ सौ घंटों की पूछताछ की, लेकिन फिर भी एजेंसी के हाथ खाली हैं। इसके बाद ईडी ने नेशनल हेराल्ड के दफ्तर पर छापेमारी की और उसकी इमारत में स्थित यंग इंडिया के दफ्तर को सील किया। इसके साथ ही कांग्रेस मुख्यालय और राहुल गांधी के आवास के इर्द-गिर्द पुलिस बल की मौजूदगी देखी गई। 

5 अगस्त को कांग्रेस महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया। इन तमाम हालात पर सवाल पूछे जाने पर राहुल गांधी ने साफ कहा कि सच्चाई को बैरिकेड नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र की रक्षा और देश का सौहार्द्र बनाए रखना मेरा काम है, वो मैं करता रहूंगा। राहुल गांधी ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि वे किसी से डरते नहीं हैं।

वैसे लोकतंत्र की आदर्श स्थिति तो यही है कि सिवाय कानून के और किसी चीज का भय नहीं होना चाहिए। मगर इस वक़्त हालात ऐसे नहीं हैं। लोकतंत्र के नाम पर विधानसभाओं और संसद में पहुंचने वाले लोगों को डरा कर सत्ता पर बने रहने का ख़तरनाक खेला जा रहा है। जब खेल ही ग़लत है तो कोई नियम भी नहीं हैं। और जो इस खेल का हिस्सा बनने से इन्कार करता है, उसे किसी न किसी तरह दंडित किया जा रहा है। ऐसे में राहुल गांधी का निडरता का जज्बा न केवल कांग्रेस जनों के लिए बल्कि लोकतंत्र और सच्चाई में यकीन रखने वाले तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक है।

2024 में कांग्रेस अगर एक मजबूत विपक्ष के लिए अगर नीतीश को प्रधानमंत्री पद पर सत्ता में आना चाहती है,

तो शायद ये कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक भूल होगी। क्योंकि कांग्रेस अतीत में कुछ ऐसी गलतियां की है बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए जो कांग्रेस के लिए ही भारी पड़ गई।

कांग्रेस को याद रखना होगा की उसे राज्यो में बीजेपी ने नही क्षेत्रीय दलों ने कमजोर किया।

उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यो में कांग्रेस को इन्ही जातिवादी समाजवादियों द्वारा कमजोर हुई।

ये कांग्रेस से तो आराम से लड़ लिए लेकिन भाजपा से ये न लड़  पाए। वही लड़ाई जहां भाजपा बनाम कांग्रेस है वहां आज भी कांग्रेस पक्ष या विपक्ष में है। कांग्रेस भाजपा को हरा सकती है,

और 2014 के बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड जैसे राज्यो में कांग्रेस ने ये करके दिखाया भी है।

बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को आगे किया नतीजा आपके सामने है दिल्ली में कांग्रेस गायब है। पंजाब में सत्ता से बेदखल किया गुजरात और हिमाचल में कांग्रेस को बड़ा नुकसान होने जा रहा है।

कांग्रेस को ये समझना होगा की भाजपा का जो वोटर है वही कांग्रेस का भी है। अभी वो अलग मूड में है अगर वो भाजपा से नाराज होगा तो कांग्रेस के पास ही जायेगा अगर कांग्रेस मजबूत रही। लेकिन कांग्रेस अगर बड़ा थोड़ा स्थिर रही तो ठीक है लेकिन उतावलेपन में आकर नीतीश को आगे किया तो केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस के इज्जत में बट्टा लग जायेगा। नीतीश जो अकेले बिहार तक का चुनाव न जीत सकते जो खुद मोदी  के नीचे पांच साल गुजार भी चुके है। और अब अपनी आखिरी दाव खेलने के लिए महत्वाकांक्षा पाले हुए है, इससे बीजेपी ही मजबूत होगी ।

केंद्रीय स्तर के चुनाव अलग होते है जहां एक ओर एक कभी दो  नही होता, जिसका नतीजा यूपी में सपा बसपा गठबंधन के हार के रूप में देख चुके है ।

कांग्रेस की रणनीति शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे नेताओं को वापस कांग्रेस में लाने पर होनी चाहिए। कांग्रेस के पास अपनी विचारधारा है सबको साथ लेकर चलने की उसे मजबूत करे ऐसे नेताओं पर लगाम लगाए जिससे ये प्रतीत होता है की कांग्रेस हिंदू विरोधी है, क्योंकि इस देश की जनता बहुत भावुक है।

किसी को अंदाजा नहीं है की बीजेपी ने किस हद तक लोगो के दिमाक़ को हाईजैक किया है, एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष के तरह लोगो के समाने आए। तब हारेगी बीजेपी । कांग्रेस आज भी मजबूत है कुछ गलतियां हुई है उसे बस सही कर ले।

error: Content is protected !!