अमृत महोत्सव का जश्न हर घर तिरंगा की बजाय हर घर आजादी का लड्डू भी खिलाया जा सकता था
हर गांव की पंचायत पर पूरे गांव के साथ एक खादी का झंडा लहराया जा सकता था 
आपने तो तिरंगे को दही बनाकर रख दिया है
चुनावी भाषणों के वादों पर लट्टू हुई जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है
हकीकत बयां करने का साहस नहीं कर पा रही है

अशोक कुमार कौशिक 

आज के आलेख में हम दो बातों का समावेश करेंगे पहली बड़ी घटना आरएसएस की डीपी में तिरंगा लगाने की घटना है तो दूसरी बात पॉलिस्टर का तिरंगा वितरण का मुद्दा है। आज की आरएसएस के तिरंगे को डीपी बनाने की घटना को मामूली मत समझिये । इसे महज़ एक सोशल मिडिया इवेन्ट समझने की भूल मत कीजिये। यह एक बहुत बड़ा राजनीतिक परिवर्तन है, जो इस देश की राजनीति में राहुल गाँधी के बढ़ते हुए प्रभाव को दर्शाता है ।

राहुल गाँधी 2004 से ही संघ का विरोध बड़ी बेबाकी और बहादुरी से कर रहे है। तब वो यह नही सोच रहे थे कि वो हारेंगे या जीतेंगे । वो सोच रहे थे कि कैसे संघ को बताया जाए कि अहिंसा, सत्य और आंदोलन की ताकत कितनी बड़ी होती है।  कैसे सत्य के आग्रह से असत्य के दुराग्रह को दूर किया जाता है। कैसे अहिंसा को हिंसा से बड़ा हथियार बनाकर दुश्मनों को हराया जा सकता है।

आज संघ ने अपनी डीपी में तिरंगा लगा कर मजबूरी में मान लिया है की यह देश महात्मा गाँधी का है, गोडसे जैसे गुलामो का नही है। यह देश आंदोलनों से जन्मा है। तिरंगा इस देश के डीएनए में है। राहुल और पूरी कांग्रेस ने एक महीने से ज्यादा समय तक बिना किसी से डरे जो अभियान आंदोलन चलाया उससे संघ और सरकार की नींद उड़ गई थी। संघ के कर्णधारों को समझ मे आ गया था कि वो सबसे लड़ सकते है लेकिन अगर वो तिरंगे से लड़ेंगे तो यह देश उन्हें कभी स्वीकार नही करेगा ।

2014 चुनाव के बाद की इस सबसे महत्वपूर्ण घटना ने तिरंगे की ताकत और लोकतंत्र की पकड़ को सबसे ऊपर कर दिया है । राहुल ने बता दिया कि यह देश हिटलर का नही, गाँधी जैसे कलंदर का है। जब जब कोई तानाशाह इस देश के सत्य, अहिंसा और धर्मनिरपेक्षता की ताकत का मजाक उड़ाएगा, तब तब यह देश उसे लोकतंत्र मतलब समझायेगा। आज केवल राहुल गाँधी की जीत नही हुई है, आज हर उस भारतीय की जीत हुई है जो अहिंसा, सत्य और तिरंगे  की ताकत पर भरोसा करता है। यह भारत की जीत है, यह महात्मा गाँधी के विचार की जीत है। लगता है सोहनलाल द्विवेदी ने आज के ऐतिहासिक दिन के लिए ही लिखा था…

खड़ा हिमालय बता रहा है

डरो न आंधी, पानी में, 

खड़े रहो अपने पथ पर 

सब कठिनाई तूफानी में! 

अचल रहा जो अपने पथ पर 

लाख मुसीबत आने में, 

मिली सफलता जग में उसको 

जीने में मर जाने में!

दुसरा मुद्दा रिलायंस पाॅलिस्टर बनाने की सबसे बड़ी कंपनी है। एक तिरंगा पाॅलिस्टर का यदि कम से कम 25 रुपए का तो केवल  20 करोड़ का दाम जोड़कर देखो फ्रैंड्स कितना होता है  ?

अरबों का कारोबार पाॅलिस्टर कंपनी की करवाने की योजना तो नहीं है हर घर तिरंगा की मुहिम?  

जैसे सामने वाला बोलता है वैसा हम नहीं सोचते । हम विषयों के हर पहलू पर विचार करके अपना विचार रखते हैं । 

हर कलेक्ट्रेट पर तिरंगा लगाकर भी आजादी का जश्न कमतर नहीं रहता , हर स्कुल पर तिरंगा फहराकर बच्चों को लड्डू खिलाकर मनाया जाने वाला आजादी का जश्न सभी घर मना लेते रहे हैं, सभी सरकारी गैर सरकारी संस्थान भी तिरंगा फहराकर आजादी का लड्डू खाते हैं। 

अमृत महोत्सव का जश्न हर घर तिरंगा की बजाय हर घर आजादी का लड्डू भी खिलाया जा सकता था, हर गांव की पंचायत पर पूरे गांव के साथ एक खादी का झंडा लहराया जा सकता था । 

आपने तो तिरंगे को दही बनाकर रख दिया है । नहीं लोगे तो राशन नहीं देंगे, वेतन से पैसे काटकर रिलायंस का पाॅलिस्टर तिरंगा बांटेंगे ।

ताकि सभी पैसों को रिलायंस इंडस्ट्रीज के खाते में पहुंचाया जा सके । योजना का आह्वान करने वाले जानते हैं कि लोग तिरंगा के नाम पर चुपचाप पैसे देंगे ही।

माहौल कुछ इस तरह का बनाया जा रहा है जैसे इसी स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराया जाएगा। ऐसा माहौल वे लोग बना रहे हैं, जिन्होंने 52 साल तक तिरंगे से दूरी बनाये रखी। देशभक्ति इससे सिद्ध नहीं होती कि किसी ने तिरंगा फहराया या नहीं। जिन लोगों ने देश की आज़ादी की लड़ाई से दूरी बनाई रखी, उन्हें कोई हक नहीं है किसी की देशभक्ति पर सवाल उठाने का। स्वतंत्रता दिवस हर साल जोशो खरोश से मनाया जाता रहा है, मनाया जाता रहेगा। देशभक्ति दिलों में होती है, दिखावे में नहीं। तुम करते रहो दिखावा।

साम्राज्यवादी Vs गुलामी:

अमीर वर्ग में मोदी और योगी का जोरदार समर्थन आश्चर्य की बात नहीं है। 

लेकिन गरीब,पिछड़े और वंचितों‌ को जब उनका समर्थन करते देखता हूं तो लगता है, जीवन और व्यवस्था से हारे,छुटकारे के बेचैन हुए इन लोगों में आत्महत्या की इच्छा कितनी तड़प रही है।

नाकामी, हताशा, निराशा, महंगाई, बेरोजगारी, जर्जर अर्थव्यवस्था की गर्भनाल यहां से जुड़ी है। चुनावी भाषणों के वादों पर लट्टू हुई जनता खुद को ठगा हुआ महसूस तो कर रही है, लेकिन हकीकत बयां करने का साहस नहीं कर पा रही है। मुझे जस्टिस मार्कंडेय काटजू का वह बयान याद आता जिसमें उन्होंने कहा था कि नब्बे प्रतिशत भारतीय ‘बेवकूफ’ होते हैं जिन्हें शरारती तत्वों द्वारा धर्म के नाम पर आसानी से गुमराह किया जा सकता है। 

आज यही हो भी रहा है । मंच पर विकास के बड़े-बड़े दावे वादे करने वाले पर्दे के पीछे से धर्म के नाम पर जनता को गुमराह कर रहे हैं । गुमराह हुई जनता सबसे पहले अपनी तर्कशक्ति खो देती है । उसके जेहन में सवाल ही नहीं पैदा होते। उसे जो दिखाया जाता है वही दिखता है। स्वत: देखने की शक्ति खत्म हो जाती है।

 वक्त अभी भी आपके हाथ से निकला नहीं है अपनी ताकत को पहचानिए, सवाल करिए। पूछिए क्या हुआ तेरा वादा। यह भी पूछिए कि नाकाम होने के बाद तुम्हारा “प्लान बी” क्या है?

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