-कमलेश भारतीय

बिहार में फिर नयी सरकार और देखिये कारीगरी कि मुख्यमंत्री वही सुशासन बाबू हमारे आपके नीतिश कुमार । है न कारीगरी और जादूगरी ? सोच रहे हैं चाणक्य अमित शाह कि अब कौन सी चाल चली जाये? क्या ईडी को अब बिहार भेजा जाये ? क्या महाराष्ट्र की तरह सरकार गिराने के लिए कोई एकनाथ छिंदे ढूंढा जाये ? शायद ढूंढ ही रहे थे कि सुशासन बाबू की खबर लग गयी और इससे पहले कि उन्हें हटाया जाता , उन्होंने ही झटका दे दिया और भतीजे तेजस्वी को बुला कर सब नये सिरे से जमा लिया और गठबंधन बदला लेकिन मुख्यमंत्री वही का वही । है न कमाल ?

सुनने में आ रहा है कि महाराष्ट्र जैसे खेल की फिराक में थी भाजपा और खेल हो भी जाता लेकिन नीतीश कुमार रहे घाघ खिलाड़ी । चाक चौबंद पूरे । भाजपा ने जदयू का आधार काफी हद तक कमज़ोर करने में कोई कसर न छोड़ी थी और अगले चुनाव तक जदयू को कुछ न मिलता । दूसरी बात जो सुनने में आ रही है कि बिहार सरकार का पाला बदलते समय कहीं यह डील भी रही कि आपको राष्ट्रपति बनाया जायेगा और जब वक्त आया तब राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू । बहुत बड़ा झटका लगा नीतिश कुमार को । वैसे ही जैसे हमारे लालकृष्ण आडवाणी को लगा था । वे अपने प्रिय शिष्य के होते न तो प्रधानमंत्री बन पाये और न ही राष्ट्रपति और अब तो अज्ञातवास झेल रहे हैं ।

नीतिश कुमार जब तक भाजपा से अलग सरकार चला रहे थे तब तक राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी के बराबर के नेता माने जा रहे थे और आने वाले प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी । बल्कि बताया जा रहा है कि नीतिश कुमार मोदी से भी सीनियर हैं और उनसे पहले मुख्यमंत्री बन चुके थे । फिर भी नीतिश कुमार पहली बार गच्चा खा गये लेकिन महाराष्ट्र जैसे हश्र से पहले ही संभल गये । यह भी बड़ी बात रही और इससे विपक्ष को एक उम्मीद की लौ दिखी है । क्या हरियाणा में जिस तरह से जजपा को भी अंदर ही अंदर से कमज़ोर किया जा रहा है, क्या कोई नया विचार , कोई नयी सोच बन सकती है ? यह एक यक्ष प्रश्न है । या फिर अगले चुनाव तक यह गठबंधन चलता रहेगा ? चौ बीरेन्द्र सिंह तो नारा देकर ही रहे हैं -एकला चलो रे ,,,एकला का मतलब गठबंधन तोड़ कर चलो रे ,,,,देखिए ,,,इतजार कीजिए ,,,
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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