जब तक हमारा भाव अच्छा नहीं तो ना सत्संग फायदा देगा ना कोई मंदिर मस्जिद : परमसंत कंवर साहेब जी

जो अच्छा भाव रखता है उसके लिए तो आज भी सतयुग है।
भक्ति फकीरी से आती है और फकीरी आप घर बैठे भी पा सकते हैं : परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज 
परमात्मा बाहर ढूंढने से नहीं मिलता वो तो आपके विश्वास में बसता है : कंवर साहेब
अपने घरों में प्यार प्रेम बढ़ाओ, बच्चो को अच्छी शिक्षाएं दो, बड़े बुजुर्गो, मां बाप सास ससुर की इज्जत करो : कंवर साहेब 
सहज भाव से ही हम परमात्मा की सच्ची भक्ति कमा सकते : कंवर साहेब
जिस परमात्मा को हम तीर्थ व्रत पहाड़ कंदराओं में ढूंढते हैं वो हमारे अंतर भाव में ही वास करता है।

दिनोद धाम/बरवाला जयवीर फौगाट,

23 जुलाई, अगर आपका यकीन पक्का है तो परमात्मा हर पल आपके अंग संग है। परमात्मा बाहर ढूंढने से नहीं मिलता वो तो आपके विश्वास में बसता है लेकिन इंसान गाफिल हुआ फिरता है। अपनी गफलत को मिटा लो चुटकी बजाते ही परमात्मा के दर्शन हो जाएंगे।

हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि ये काल और दयाल का खेल है। काल ने जब दयाल की भक्ति करके उन्हे खुश किया तो दयाल पुरुष ने ही काल को वरदान दिया कि जो माया और अभिमान में गाफिल हों उन्हें आप लूटो और खाओ। दयाल पुरुष के इस वरदान से रूहें चिंतित हो उठी कि फिर हमारा क्या होगा तब दयाल पुरुष ने संतो को इस धरा पर रूहों के कल्याण के लिए भेजा। उन्होंने फरमाया कि इंसान भिन्न भिन्न वस्तुओ में गाफिल है। इन दुनियादारी की वस्तुओ में फंसकर इंसान स्वयं को ज्ञानी समझता है लेकिन हकीकत में ये उसका अज्ञान ही है। असल ज्ञान तो संत सतगुरु ही इस जीव को देते हैं। ये ज्ञान भी उसे ही मिलता है जिसका भाव बड़ा हो। भाव उसका बड़ा होगा जिसकी भावना शुद्ध होगी। हुजूर ने कहा कि सहज भाव से ही हम परमात्मा की सच्ची भक्ति कमा सकते हैं। जो इंसान मन वचन और कर्म से पवित्र हो जाता है वह सहज स्वभाव का हो जाता है। गुरु जी ने कहा कि हैरानी की बात है कि जिस परमात्मा को हम तीर्थ वर्त पहाड़ कंदराओं में ढूंढते हैं वो तो हमारे अंतर भाव में ही वास करता है। जिसका भाव अच्छा नहीं है उसको ना सत्संग फायदा देगा ना कोई मंदिर मस्जिद। जो अच्छा भाव रखता है उसके लिए तो आज भी सतयुग है।

एक प्रेरक प्रसंग परोसते हुए हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि एक महात्मा भक्ति में लीन रहता था। उसके सामने एक वैश्या ने अपना कोठा बना लिया। “वैश्या के” कोठे से महात्मा की भक्ति में खलल पड़ गया। वो तो हमेशा भक्ति करने के साथ साथ वैश्या को मन ही मन कोसता रहता लेकिन उधर वैश्या अपने कर्म करते करते भी उस महात्मा का चिंतन करती कि मेरे कर्म तो खोटे हैं लेकिन मेरे कितने ऊंचे भाग हैं जो मुझे इस महात्मा के दर्शन होते हैं। दोनो मृत्यु के पश्चात जब यमराज के द्वार पर पहुंचे तो फैसला हुआ कि महात्मा को तो नरक में भेजो और वैश्या को स्वर्ग में। गुरु जी ने कहा कि संत महात्माओं के दर्शन मात्र से ही आई बला टल जाती है। उन्होंने कहा कि दिखावे की भक्ति काम नहीं आएगी क्योंकि परमात्मा की आंखों से कोई नहीं बच सकता। हृदय को कोई साबुन सोडा जल पवित्र नहीं कर सकता बल्कि उसे तो नाम का सुमिरन ही पवित्र कर सकता है। हुजूर ने कहा कि गृहस्थियों के लिए तो संतमत से बढ़ कर कुछ है ही नहीं क्योंकि गृहस्थ धर्म की पूर्ण पालना करते हुए भी संतमत आपको भक्ति करवाता है। संतमत आपको हर चीज से निश्चिंत करता है और यह तय है कि चिंता रहित इंसान ही भक्ति कमा सकता है। महाराज जी ने कहा कि हर पल स्वयं का चिंतन करो कि हमने इस इंसानी चोले को कितना सार्थक किया। हमने कितना परमार्थ किया, कितना परोपकार किया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले निरोगी काया रखो क्योंकि ये सब सुखों का आधार है। सामाजिक प्राणी समाज में रहकर ही अपना जगत, अगत को संवार सकता है। लालच धोखे में मत बहो।

गुरु जी ने कहा कि भक्ति बुद्धि का खेल नहीं है। अगर भक्ति बुद्धि चतुराई के अधीन रहती तो कबीर, दादू, पलटू, नानक, रविदास और संत ताराचंद जैसे भक्तो का कौन नंबर लगने देता। “भक्ति” धर्म-जाति, अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच के अधीन नहीं है। भक्ति किसी जगह विशेष की भी मोहताज नहीं है। भक्ति फकीरी से आती है और फकीरी आप घर बैठे भी पा सकते हैं। गुरु जी ने कहा कि युगों युगों से यही परंपरा है कि जो जन्मा है वो मरेगा भी जरूर फिर किस बात का गुमान। उन्होंने कहा कि जीव के जन्म का पहले से पता चल जाता है लेकिन मौत का तो एक पल पहले भी पता नहीं चलता। रावण जैसे महाबली भी अमर नही रह पाए तो हमारी क्या बिसात है। हुजूर ने कहा कि अभिमान छोड़ो और पवित्र कर्म करके इस आवन जान से छुटकारा पा लो। उन्होंने कहा कि आपके कर्म कभी नहीं मरेंगे। वे जन्म-जन्म तक आपके साथ चलेंगे। आज भी रावण को और दुर्योधन को उनके बुरे कर्मो के कारण नफरत मिलती है और आज भी धुर्व पहलाद को उनके अच्छे कर्मों के कारण पूजा जाता है। हुजूर ने कहा कि जैसे कपड़े पर दाग जब तक नहीं हटता उसे हम साबुन से धोते हैं उसी प्रकार ये मन जब तक पवित्र नहीं हो जाता तब तक उसे नाम रूपी साबुन से धोते रहो। गुरु जी ने फरमाया कि अपने मन में नाम को बसा लो ताकि उसमें कुछ और ना बस सके। उन्होंने कहा कि भक्ति के साथ सही सामाजिक सोच के साथ अपनी रहनी को ठीक रखो। रहनी ठीक रहेगी तो करनी भी ठीक रहेगी। अपने घरों में प्यार प्रेम बढ़ाओ, बच्चो को अच्छी शिक्षाएं दो, बड़े बुजुर्गो, मां बाप सास ससुर की इज्जत करो।

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