–कमलेश भारतीय- हरियाणा में चौ. भजनलाल एक ऐसे व्यक्ति रहे जो अपने ही ढंग से राजनीति में उठे और मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री तक अनेक पदों पर रहे । “बिश्नोई-रत्न” बने और समाज के लिए बहुत कुछ किया । उनके दो बेटे हैं -चंद्रमोहन व कुलदीप बिश्नोई । पहले चौ. भजनलाल ने चंद्रमोहन को सन 1993 में राजनीति में उतारा और कालका के उप-चुनाव में विधायक बनवाया, जहां से वे चार चार बार विधायक चुने गये और उप-मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे । बेशक वे यदि अनुराधा बाली उर्फ फिजां के चक्कर में चांद मोहम्मद न बनते तो और ऊंचाई तक राजनीति में जा सकते थे । आजकल वे अपने बेटे सिद्धार्थ के लिए राजनीति में जगह बनाने व खोजने में लगे हुए हैं । दूसरा और छोटा बेटा है, कुलदीप बिश्नोई जिसका राजनीतिक करियर चौ. भजनलाल ने आदमपुर से ही शुरू करवाया और खुद उंगली थाम कर जीत दिलवाई । फिर भिवानी के लोकसभा चुनाव में इसी कुलदीप बिश्नोई ने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों सुरेंद्र सिंह व अजय चौटाला को हरा दिया और चर्चा में आ गये । धीरे धीरे बात बनने लगी लेकिन सन् 2005 में जब कांग्रेस हाईकमान ने चौ. भजनलाल को विधायक दल का नेता नहीं बनाया यानी मुख्यमंत्री पद से वंचित कर दिया, तब कुलदीप बिश्नोई को गुस्सा क्यों आया , यह बड़ी आसानी से समझा जा सकता है । कुछ देर मन ही मन नाराज रहने के बाद कुलदीप बिश्नोई ने 2 दिसंबर, 2007 को “हरियाणा जनहित कांग्रेस” का गठन कर लिया, जिसका मुख्य आधार था – “नान जाट राजनीति” और काफी समर्थन भी मिला । बडे बड़े नेता कुलदीप बिश्नोई को सुप्रीमो मान कर बड़ी बड़ी आशाओं के साथ आए । लेकिन जल्दी ही करिश्मा खत्म होने लगा । जो जितनी तेजी से हजकां में आए थे , वे उतनी ही तेजी से अलग अलग दलों में चले गये, क्योंकि कांग्रेस में जाने के दरवाजे बंद कर आये थे । कुलदीप बिश्नोई ने पहले भाजपा और फिर बसपा से गठबंधन किया यानी नये-नये अनुभव प्राप्त किये । दोनों गठबंधन कारगर न रहे और आखिरकार कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस में वापसी की और अपनी पार्टी हजकां का विलय भी कांग्रेस में कर दिया । ये भी अनुभव ही कहे जा सकते हैं, जो काफी बड़ी कीमत चुका कर प्राप्त किये गये । शून्य में तो तब भी नहीं थे । अनुभव ही अनुभव थे । भाजपा को काफी बुरा भला कहा और भाजपा नेताओं को भी कोसा, जो स्वाभाविक था । अब इनके पुराने बयान दिखाये जा रहे हैं, जिनका कोई फायदा नहीं । कांग्रेस में आए और हिसार लोकसभा क्षेत्र से युवा दुष्यंत चौटाला से हार गये । इस तरह सबसे कम उम्र के सांसद बने दुष्यंत । यह भी प्रचारित किया गया कि भिवानी में कुलदीप के हाथों हुई, अपने पिता की हार का बदला ले लिया । कुलदीप ने अपनी पत्नी रेणुका को भी राजनीति में उतारा और वे हांसी से विधायक बनीं । भव्य को भी लोकसभा हिसार क्षेत्र से उतारा, लेकिन वह सफल न हुए । भाजपा के बृजेंद्र सिंह सांसद चुने गये । भाजपा की ओर से अनुभव यह मिला कुलदीप को, कि भव्य की जमानत जब्त हो गयी और आदमपुर हल्के में भी हार हुई । यह भी एक अनुभव से कम नहीं था, जिसे आप अपना मजबूत किला कहते हो , वहीं से हार जाना । हालांकि विधानसभा चुनाव-2019 में कांग्रेस की टिकट पर कुलदीप ने फिर जीत कर विश्वास प्राप्त कर लिया । अब जाकर जब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का मामला आया तब कुलदीप भी एक मजबूत दावेदार थे इस पद के । बड़े जोश ओ खरोश के साथ राहुल गाधी से मिलकर, हाथ हिलाते हुए उनके बंगले से निकले । लगता था कि, बाजी मार ली लेकिन अफसोस यह सपना भी टूट गया और नाराज कुलदीप को राहुल ने मिलने का समय भी नहीं दिया । इस तरह इन्तजार करते करते कुलदीप बिश्नोई की मन की खटास बढ़ती गयी जो राज्यसभा चुनाव में “अंतरात्मा की आवाज तक पहुंच गयी । अंतरात्मा की आवाज” पर भाजपा-जजपा समर्थित प्रत्याशी कार्तिकेय शर्मा को वोट दे दी जिससे कांग्रेस प्रत्याशी अजय माकन को हार का सामना करना पड़ा । कुलदीप ने अनेक ट्वीट किये जिनका सार इतना ही था कि उन्होंने अपने अपमान का बदला ले लिया है और अब वह कांग्रेस में रहने की जरूरत नहीं समझते । फिर आदमपुर जाकर कार्यकर्त्ताओं के बीच तीन चार दिन तक राय ली जाती रही । क्या कदम उठाऊं ? कांग्रेस में रहूं या भाजपा में जाऊं ? जवाब आया कि इस बार धोखा न खा लियो । यानी जनता भी ठगी गयी महसूस कर रही थी । आखिर कुछ दिन फैसला लेने में लगे । कभी किसी डील की बात आती कि हिसार लोकसभा व आदमपुर विधानसभा की सीटें मांग रहे हैं तो कभी, भव्य को मंत्री बनाने की बात, तो कभी कुछ । फिर यह भी लगने लगा कि कहीं बात खटाई में तो नहीं पड़ गयी ? फिर जब कुलदीप ने अपने ट्वीटर से सोनिया गांधी और राहुल गांधी व कांग्रेस की सामग्री हटाई तब सब समझ गये कि अब पंछी कांग्रेस से उड़कर भाजपा की ओर जाने की तैयारी में है । दिल्ली में गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्ढा से मुलाकातों की फोटोज ने सब रहस्य खोल दिया और अब सिर्फ औपचारिक घोषणा बाकी है कि कुलदीप बिश्नोई ने “हाथ” छोड़ कर “कमल” थाम लिया । कुलदीप ने फिर ट्वीट किया है कि इस बार शून्य से नहीं बल्कि अनुभव से यह यात्रा शुरू होगी । पर दोनों बार कुलदीप की नाराजगी बढ़ते जाना और ठंडे मन से शांत बैठकर चिंतन मनन न करना ही सामने आता है । पहली बार जब चौ भजन लाल को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया और दूसरी बार जब हाल ही में कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनाया गया । दोनों बार नाराजगी और गुस्से में फैसले किये गये , अनुभव से सीख कर नहीं । हो सकता है कि कुलदीप इसे ही अनुभव कहें । फैसले उनके हैं , हम पत्रकार तो परिस्थियों का विश्लेषण ही कर सकते हैं । अब क्या अनुभव होगा , यह तो भविष्य ही बतायेगा । फिर भी सहनशीलता और सद्भाव का अनुभव आ जाना चाहिए , ऐसी शुभाशीष है ।-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी. — 9416047075. Post navigation दो देश , दो सबक भाजपा-जजपा सरकार पर सैलजा का वार, कहा किसान को कर्जदार बनाए रखना चाहती है सरकार