इस प्यार को क्या नाम दें?

हरियाणा के कुछ धुरंधर आईएएस अधिकारियों को करीब छह महीने और देश-प्रदेश की सेवा करने का सुवअसर प्राप्ता हो सकता है। अब ये कार्यक्रम कैसे होगा, इसकी स्क्रिप्ट लगभग लिखी जा चुकी है। इस बारे में जारी सरकारी आदेशों में चाहे एक्सटेंशन लिखा जाए या फिर रिर्इंप्लायमेंट,या फिर किसी अन्य शब्द से इन अफसरों की प्रतिभा को प्रौत्साहन दिया जाएगा। मुख्यमंत्री मनोहरलाल की पिछले दिनों केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह से हुई मुलाकात को भी इसी संदर्भ में जोड़ कर देखा जा रहा है। जिन अधिकारियों की प्रतिभा की सरकार कद्र करने जा रही है उनकी जल्द ही रिटायरमेंट होने जा रही है। ऐसा माना जाता है कि इनको और छह महीने की सरकारी सेवा का अवसर देने के बाद भी सरकार इनका आसानी से पीछा नहीं छोड़ने वाली। इनको फिर से कोई न कोई सरकारी दायित्व निर्वहन करने के लिए पेश किया जा सकता है। आप मान कह सकते हैं कि सरकार हाथ धो कर इनके पीछे पड़ गई है। एक कल्याणकारी राज्य का ये भी तो दायित्व है कि वो अपनी नागरिकों की प्रतिभा को पंख दे। उनको उड़ने के लिए उचित माहौल और सभी जरूरी साजो सामान उपलब्ध करवाए। अगर सरकार अपने नागरिकों की कद्र करेगी, तभी तो नागरिक भी सरकार की कद्र करेंगे।

पहाड़ों की रानी

उत्तराखंड के शहर मंसूरी को पहाड़ों की रानी भी कहा जाता है। हर पहाड़ी राज्य में कम से कम एक रानी तो उपस्थित है ही। जैसे कि हिमाचल प्रदेश में शिमला को भी इसी खिताब से जाना पहचाना जाता है। एक शादी समारोह में हाल ही में मंसूरी जाने के अवसर को हमने हाथों हाथ लपका। देहरादून तक तो सफर ठीक रहा,लेकिन उसके बाद मंसूरी की यात्रा कष्टदायक रही। कई घंटे जाम में फंसे रहना पड़ा। मंसूरी पहुंच कर भी ये पीड़ा कम नहीं हुई,बल्कि बढ गई। यहां माल रोड़ के आसपास भारी भरकम जाम लगा ही रहता है। जाम में फंसने वाले ज्यादातर पर्यटक होते हैं। पुलिस वालों की यातायात प्रबंधन में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वो अनमने मन से अपनी डयूटी कर रहे थे। जब कभी वो किसी वाहन चालक को कुछ कहते तो उनकी कोई सुनवाई नहीं करता। वाहन चालक उनके कहे को जानबूझ कर अनसुना कर देते। उसके बावजूद पुलिस वाले हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहते। कई उस्ताद प्रवृति के वाहन चालक ऐसे भी मिले जिन्होंने चलती सड़क पर अपनी गाड़ी पार्क कर दी और खुद पतली गली से निकल लिए। इस से ट्रैफिक जाम की समस्या विकराल हो गई।

ये विडंबना ही है कि मंसूरी में ही लाल बहादुर शास्त्री अकादमी है, जो आईएएस अफसरों को ट्रेनिंग करने का हसीन कार्य करती है। यानी मंूसरी में ही ट्रेनिंग लेने वाले कुछ अफसरों की मंसूरी में ही पोस्टिंग भी होती है। उन अफसरों का भी इस जाम की समस्या से आए दिन सामना होता है। हमारे पहाड़ी पर्यटक स्थलों में ट्रैफिक जाम की ये समस्या कुछ बरसों से विकराल रूप धारण करती जा रही है। ये दुखदायी है कि सरकारें आती और जाती रहती हैं,लेकिन इस समस्या के स्थाई समाधान की तरफ ज्यादा गौर नहीं करती। जाम से न केवल प्रदूषण की समस्या बढती है,बल्कि,पैट्रोल डीजल का अपव्यय भी होता है। लोगों का बेशकीमती समय जाम में बर्बाद होता है। राष्ट्रीस संपदा और राष्ट्रीय संसाधनों का अपव्यय घोर जुर्म है। अधिकारियों को जरूर चाहिए कि वो इस तरह की समस्यों के समाधान की दिशा में अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल करें। उनका अफसर बनना तभी सार्थक होगा जब वो जनसाधारण के जीवन में सकारात्मक बदलाव कर पाएंगे। फाइल को ऊपर भेज दिया-नीचे भेज दिया-माल कमा लिया ये तो जीवन भर होता ही रहेगा। अफसरों को जीवन में कुछ काम ऐसे जरूर करने चाहिए जो वो खुद और लोग जिंदगी भर याद रखें। उनको खुद पर गर्व करने की अनुभूति प्रदान करें। आखिर इस तरह की समस्याओं का समाधान क्या है?

इस बारे में एक्सपर्ट से बात की गई तो उनका कहना है शहर में कई स्थानों में बहुमंजिला वाहन पार्कि ग बनाई जानी चाहिए। स्विटजरलैंड की तर्ज पर रोप वे-केबल कार को बढावा दिया जाना चाहिए। ट्रैफिक प्रबंधन मुस्तैदी से किया जाना चाहिए। जहां वन वे संभव हो, वहां वन वे ट्रैफिक किया जाना चाहिए। बैटरी चालित वाहनों को बढावा दिया जाना चाहिए। उच्चकोटि के सरकारी ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि लोग निजी वाहनों को कम तरजीह दें। आप जानते हैं कि क्यों शासक लोग अपनी जनता की इस तरह की रोजमर्रा की समस्याओं के निराकण के लिए ठोस पहल नहीं करते?क्योंकि हम सब इसके आदी हो चुके हैं। इन समस्याओं से हमारा खून नहीं खौलता। हम ये सवाल नहीं उठाते कि आखिर ये नौकरशाही किस काम का वेतन ले रही है? सरकार हमारे लिए कर क्या रही है? हमारे लिए बेहतर आधारभूत ढांचा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाए क्यों नहीं हैं? हम जात, मजहब, हिंदू, मुसलमान और भारत पाकिस्तान में फंसे रहते हैं। उलझे रहते हैं। नेता लोग मौज करते हैं। इसी हालत पर यही कहा जा सकता है कि..
राजा चैन से इसलिए सोया था,क्योंकि वह जानता है कि जुगनुओं का विद्रोह चाहे कितना ही प्रबल क्यों न हो, जंगल नहीं जला सकता

ट्रैफिक जाम

ऐसा नहीं है ट्रैफिक जाम की समस्या सिर्फ पहाड़ों में ही है। अपना हरियाणा भी इस गतिविधि में पूरे गाजे बाजे के साथ शामिल है। मसलन जीटी रोड़ को ही लें। दिल्ली से हरियाणा में घुसने और फिर सोनीपत और आगे के हिस्से तक ट्रैफिक जाम की भयंकर समस्या है। यहां पर एनएचएआई की ओर से जीटी रोड़ को चौड़ा किए जाने का काम सुस्त गति से चल रहा है। इस से ये समस्या और ज्यादा बढ गई है। ना तो दिल्ली और न ही हरियाणा की तरफ से तैनात पुलिस वालों की ट्रैफिक प्रबंधन में कोई दिलचस्पी है। वो तो जीटी रोड़ पर खड़े होते ही हैं ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करने वाले शिकारों को दबोचने के लिए। उनसे माल वसूलने के लिए। वो ऐसे किसी पेड़ या ऐसे ही किसी स्थान पर ओट में खड़े होते हैं,जहां से वाहन चालकों को नजर नहीं आते। अगर किसी वाहन चालक से जाने या अंजाने में ट्रैफिक रूल्ज की अवहेलना हो गई तो वो अचानक से प्रकट हो जाते हैं। फिर कानून की रक्षा की खातिर-नाम पर, सीधे सौदेबाजी पर उतर आते हैं। अदालत और मौटे चालान की राशि का डर दिखा कर वाहन चालकों से उगाही कर ले जाते हैं।

जीटी रोड़ महत्वपूर्ण कनैक्टिंग मार्ग है। होना तो ये चाहिए कि यहां युद्ध स्तर पर काम हो कर ये रोड़ कभी का दुरूस्त हो चुका-कर दिया होता। हो रहा उल्टा है। हरियाणा सरकार को भी इस मामले को केंद्र सरकार के साथ उठा कर यहां होने वाले तमाम काम जल्दी से जल्द पूरे करवाने चाहिए। बेशक सरकारों को सही कहा ज्यादा सा रास नहीं आया करता, फिर भी हम तो यहीं कहेंगे कि…

जो तेरे ऐब बताता है उसे मत खोना
इस जमाने में कहां मिलते हैं आईना दिखाने वाले

हाथ की सफाई

कुछ खेल इतनी सफाई से होते हैं आखिर तक ये भेद नहीं खुलता कि ये हुआ तो, हुआ कैसे? जैसे कि हरियाणा राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के किस विधायक का वोट रद्द हुआ? इस सवाल के अनेकों जवाब हैं। लोग अपने अपने तुक्के मार रहे हैं। ज्ञान पेल रहे हैं। कांग्रेसी विधायकों से लेकर राज्यसभा चुनाव में आलाकमान के प्रतिनिधि विवेक बंसल की भूमिका पर उंगलियां उठा रहे हैं। जितने मुंह, उतनी बातें हो रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के आवास पर कुछ कार्यकर्त्ता टाइप नेतागण मौजूद थे। वहां एक विधायक जी भी हाजिर थे। कईयों को ऐसा लगता है कि इन विधायक जी ने ही राज्यसभा चुनाव में खेला किया है। खैर विधायक जी को भी पहले से अंदेशा था कि अगर कहीं कोई चूक हो गई तो ठीकरा उन पर ही फूटना है। सो वो इस हालात से निपटने के लिए अग्रिम तैयारी किए हुए थे। विधायक जी कहने लगे कि मुझे पहले से ही ये अंदाजा था कि अगर कहीं उन्नीस इक्कीस हो गई तो लोग मेरा नाम इस विवाद में पक्का ही घसीटेंगे, सो मैं जब चुनाव में अपना वोट डालने गया तो मैंने कई दफा विवेक बंसल को अपना वोट दिखाया। जब विवेक बंसल ने हाथ जोड़ कर कहा कि मेरी तसल्ली है, आप अपना वोट डाल दो,तभी अपना मतपत्र उनके चेहरे के सामने से हटाया। इस हालात पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां कही जा सकती है..

संघर्षो की समर भूमि में, हम से पूछो हम कैसे हैं
काल चक्र के चक्रव्यूह में,हम भी अभिमन्यु जैसे हैं

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